Tuesday, February 26, 2008

एक सिम्पल मैन का बीवीनामा

महिलाओं को शादी के बाद अपना सारा व्यक्तित्व, अपनी सारी काबिलीयत पति- बच्चे और परिवार पर न्यौछावार कर देनी चाहिए। देश कोई चीज नहीं हैं या... चलिए देश की बात छोड़ भी दें, तो क्या आदमी का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता ... अपनी कोई पहचान नहीं होती है... जब पुरूषों को अपनी पहचान, अपना अस्तित्व प्यारा होता है... तब महिलाएं क्यू अपना अस्तित्व, अपना वजूद बनाए...


तथाकथित पुरूष अपनी पत्नियों के खुलेपन से डरते हैं। उन्हें स्त्री के, अपनी स्त्री के अपवित्र हो जाने की चिंता सताती है। हम कहते हैं कि आपकी यह चिंता उस वक्त कहां जाती है, जब यह गुनाह, आप खुद करते हैं। स्त्री को अपवित्र करने का।...


बीवी कैसी हो... पति कैसा हो...
ये दो सवाल... हैं तो बहुत सिम्पल... और इनके जवाब भी लोग बहुत सिम्पल से ही देते हैं। बीवी सुंदर होनी चाहिए, सुशील होनी चाहिए। पति और परिवार का ख्याल रखने वाली होनी चाहिए। कामकाजी यानी नौकरीपेशा भी होनी चाहिए। साथ ही खास बात यह है कि पत्नी नौकरीपेशा होते हुए भी पतिव्रता और पारंपरिक होनी चाहिए।... इस बात पर ज्यादा जोर दिया जाता है। ठीक उसी तरह पति की बात करें तो, पति ऐसा होना चाहिए, जो पत्नी का ख्याल रखें।

मगर हम यहां इन सब बातों बारे में चर्चा नहीं कर रहे हैं... । बात करते हैं विषय पर, बीवी कैसी हो... इस सिम्पल से सवाल का जवाब कुछ हो सकता है।... जवाब किसका है। पहले आप यह भी जान लीजिए। जवाब भी एक सिम्पल मैन का है। जिसकी एक सिम्पल-सी सोच है। मगर इस सिम्पल सोच में कई बड़ी बातें छिपी हुई है।

... चलिए सब्जेक्ट पर लौटते हैं। बीवी कैसी हो... तो बीवी ऐसी हो, जिसकी अपनी कोई पहचान हो, या फिर पहचान बनाने की ललक हो, कॅरियर बनाने की लगन हो, देश की जिम्मेदार नागरिक बनने की चाहत हो। देश के लिए अपना तुच्छ या बहुमूल्य योगदान देने का जज्बा हो।

हमारे इस जवाब के पक्ष-विपक्ष में कई सवाल उठ सकते हैं। पहला सवाल विपक्ष से। ये पहचान और नाम या होता है... और आप बीवियों से यह उम्मीद यों करते हो कि उनका कुछ नाम- धाम और पहचान-वहचान हो। तो जनाब, यों न उम्मीद करें...। आप क्या समझते हैं (खासकर पुरूष मानसिकता वाले व्यक्तियों से) नाम-पहचान सिर्फ पुरूषों की बपौती है क्या...।

महिलाओं को शादी के बाद अपना सारा व्यक्तित्व, अपनी सारी काबिलीयत पति- बच्चे और परिवार पर न्यौछावार कर देनी चाहिए। देश कोई चीज नहीं हैं या...। चलिए देश की बात छोड़ भी दें, तो याँ आदमी का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता ... अपनी कोई पहचान नहीं होती है... जब पुरूषों को अपनी पहचान, अपना अस्तित्व प्यारा होता है... तब महिला यूं न अपना अस्तित्व, अपना वजूद बनाए...।

अपने अस्तित्व को लेकर सजग स्त्री

सवाल और भी उठाए जा सकते हैं। पर जवाब सबका सिर्फ एक ही है...। बदलते वक्त में स्त्री अपने अस्तित्व को लेकर सजग हो गई है। अब तक कहा जाता था कि स्त्री के लिए सबसे खतरनाक होता है उसका स्त्री होना। मगर अब स्त्री अपने ही हथियार से दुश्मनों को परास्त कर रही है।

बात जब स्त्री देह की होती है। तब आज यही कहा जाता है, स्त्री के लिए अब उसकी देह एक हथियार हो गई, एक ढाल बन गई।... क्योंकि अब तक स्त्री देह को ही एक स्त्री के कमजोरी का कारण माना जाता था। इस बात पर विचार करके स्त्री ने अब अपनी इस कमजोरी को ही सबसे बड़ा हथियार बना डाला है। स्त्री बाखूबी जानती है कि इस हथियार का इस्तेमाल कब, कहां और कैसे करना है।

स्त्री देह जब से हथियार में तब्दील हुई है। उसकी धार अब पैनी हो चली है। पहले वह बोथरी हुआ करती थी। जिससे स्त्री अगर अपने इस बोथरे हथियार के जरिए किसी से मुकाबला करने के बारे में सोचती थी तो नुकसान उसी का होता था। कहावत भी इस बारे में मशहूर है कि तरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी तरबूजे पर। हलाल तो तरबूजे को ही होना है। मतलब साफ है, स्त्री-पुरूष संबंधों में भुगतना स्त्री को ही पड़ता है।

अब संबंधों का भुगतान वसूलती है स्त्री

लेकिन अब समय बदला है। स्त्री को स्त्री-पुरूष संबंधों के कारण भुगतना नहीं पड़ता, बल्कि स्त्री उसका भुगतान वसूलती है। कई स्त्री-पुरूष इसके खिलाफ बोलते मिल जाएंगे। उन्हें बोलने दीजिए। हमें भी उन्हें सुनना चाहिए। यहीं कहेंगे न आप कि अपनी देह को, हर किसी के नीचे बिछा देना कहां तक उचित है।... बरसों से सुनते आ रहे है।... धर्मग्रंथों में लिखा है, देह की पवित्रता बहुत मायने रखती है। स्त्री को अपनी देह ऐसे ही थोड़ी न सबके सामने परोस देना चाहिए।

पुरूष देह की पवित्रता का ख्याल नहीं आता

हम पूछते है आपसे।... बताइए तो जरा। भला या बुराई है इस बात में।... देह उसकी है। तो इस्तेमाल करने का हक भी उसी को होना चाहिए। (पुरूषों से) आपको स्त्री देह की पवित्रता की चिंता खूब सताती है। आपको अपनी यानी पुरूष देह की पवित्रता का ख्याल नहीं आता। वैसे हमारा मानना है कि देह की पवित्रता और अपवित्रता जैसी कोई बात नहीं होती। कुछ है तो, वो है व्यक्ति की सोच, व्यक्ति का नजरिया।

अपनी सोच को ग्लोबल बनाइए

अब हम फिर से टॉपिक पर लौटते हैं। तथाकथित पुरूष अपनी पत्नियों के खुलेपन से डरते हैं। उन्हें स्त्री के, अपनी स्त्री के अपवित्र हो जाने की चिंता सताती है। हम कहते हैं कि आपकी यह चिंता उस वक्त कहां जाती है, जब यह गुनाह, आप खुद करते हैं। स्त्री को अपवित्र करने का।... जरा सोचिए जनाब।... अपनी सोच का ग्लोबल बनाइए। अगर आप खुलापन चाहते हैं, तो दूसरों को भी खुलापन दीजिए

बदल रही है लोगों की सोच

विवाह संस्था पर आज सौ सवाल उठ रहे हैं। विवाह संस्था के सामने अस्तित्व को बचाए रखने का संकट है। यों। कारण, आज हर व्यवस्था बदलाव चाहती है। वक्त के हिसाब से कुछ परिवर्तन, कुछ लचीलापन मांगती है। मगर कुछ पुरूष अब भी वहां अपनी हुकूमत बरकरार रखना चाहते हैं। अपने आप को परमेश्वर कहलाना पसंद करते हैं। और जब पत्नी इस बात को इंकार करती है तो समझो बस उसकी शामत आ गई। आखिर कौन रहना चाहेगा ऐसे माहौल में। बस फिर क्या है तनाव, झगड़ा और बिखराव-तलाक।

पर इधर लोगों की सोच में बदलाव आया है। अभी एक फिल्मी कलाकर का बयान आया था कि उन्हें अच्छा लगेगा, खुशी होगी। अगर उनकी पत्नी को पहले से सेक्स का अनुभव हो। यह तो सिर्फ एक पक्ष है कि पुरूष अब स्त्री की सेक्स आजादी को दबे, छिपे ही सही मगर स्वीकार करने लगे हैं। मगर बात सिर्फ सेक्स की नहीं है। आजादी हर तरह की होनी चाहिए। जिंदगी को अपने अंदाज में जीने की आजादी।

इसलिए हमारा मानना है कि बीवी ऐसी हो जो पहचान-नाम के बारे में सोचती हो। अपने अच्छे और बुरे भी फैसलों का परिणाम उसी को अकेले भुगतना होगा। इसलिए बेहतर यही होगा कि बीवी अपने आपको पहले एक दोस्त की जगह रखकर सोच- विचार कर लें। अपने लाइफ पार्टनर से अच्छी-बुरी हर बातें शेयर कर लें। फिर चाहे अपने फैसलों को पूरी तरह न बदलें। लेकिन उनमें उचित संशोधन, रद्दोबदल जरूर कर लें। हमारा मानना है कि पुरूषों को स्त्री की उतनी आजादी को खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए, जितनी आजादी वे खुद अपने लिए चाहते हैं।

तृष्णा
http://www.dongretrishna.blogspot.com/

Wednesday, February 13, 2008

Valenlines day प्यार : इक शै के रंग हजार

प्यार : इक शै के रंग हजार



दोस्ती
इक बस तुमसे दोस्ती हो जाए,
फ़िर चाहे ज़माने से दुश्मनी हो जाए।
...........................

मस्ती
ना दोस्ती कि जाए, ना दुश्मनी कि जाए,
करना है गर कुछ तो बस मस्ती कि जाए।
......................
डर
दर्ज कर ली है मैंने
अपनी सांसों में तुम्हारी खुशबू,
अब मुझे
ख़ुद के वजूद से भी डर लगता है।
......................


जिया
इक मोहब्बत करके देखी मियां।
अब तो बाज आ जा जिया.
.............................................
जिन्दगी
अब सुबह नहीं होगी, अब शाम नहीं होगी।
तेरे बिना जिन्दगी हमारी, अब किसी की गुलाम नहीं होगी।
.............................................................

खफा
कोई ना कोई रिश्ता,
तो जरूर होगा दोस्त।
जो तुम हमसे और
हम तुमसे खफा हो बैठे ।

तृष्णा / भोपाल / 8 जुलाई, 2006

पूछता है दिल बार-बार


पूछता है दिल बार- बार

पूछता है दिल बार-बार
कैसे होता है प्यार ?

तुम मुझे प्यार की परिभाषा
बतलाते हो.
मुझे नहीं सुननी
तुम्हारी प्यार की परिभाषा

मुझे पता है
क्या होता है

तुम बतला सकों
तो सिर्फ़ इतना बता दो
की कैसे होता है प्यार ?

मैं भी प्यार करके देखना चाहता हूँ
प्यार में जीने- मरने कि क़समें
मैं भी खा के देखना चाहता हूँ

अब मुझे नहीं रहा जाता

पूछता है दिल बार-बार
कैसे होता है प्यार ?



तृष्णा तंसरी
chhindwara/ 27-12-2003





valentines day मैसेज - प्लीज मान जाइये

प्लीज, मान जाइये ना

वैलेंटाइन डे पर सभी दोस्तों को मेरी ओर से बधाई।
प्यार के रंग हजार होते है. आप जिस रंग में रंगे हो,
बस प्यार कीजिये. केवल इतना याद रखिये,
प्यार के नाम अपनी जान देने और किसी की जान लेने को कभी भी जायज नहीं ठहराया जा सकता.
आपके प्यार का अंजाम चाहे 'एक दूजे का होना ' यानी शादी तक ना पहुंचे.
मगर इसके लिए जान की बाजी लगाना बिल्कुल भी मुनासिब नहीं है।

इसलिए प्लीज, मान जाइये।

एक बात और ... अगर कोई आपका प्यार स्वीकार ना करें तो उसे दोस्त बना लीजिये।

दोस्ती ताजिंदगी बरक़रार रहे,
या खुदा जब तक ये संसार रहे।

हैप्पी वैलेंटाइन डे
आपका दोस्त ...

Tuesday, February 12, 2008

जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ


जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ

हर साँस पे जीता हूँ हर साँस पे मरता हूँ.
जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ

मेरा तुमसे प्यार करना
जीना तो नहीं
क्योंकि
इस प्यार करने में
मुझे हर रोज थोड़ा-२
मरना पड़ता है.

मगर हां
मेरा तुमसे प्यार करना
मरना ही तो है
क्योंकि
इस प्यार करने में
मुझे हर रोज थोड़ा-२
मरना पड़ता हैं.

मेरा तुमसे प्यार करना
या
यों कहिये
तुम पे मरना
क्या वास्तव में मरना हैं ?

यदि हाँ, तो
क्या ये सही है ?
क्योंकि
अगर मैं तुमसे प्यार करने में
हर रोज थोड़ा-2
मरता हूँ, तो
ये तय है कि
मैं एक दिन मरूँगा.
जरूर मरूँगा !

तो सोचो मैं तुम्हारे लिए
क्या, कुछ कर पाऊंगा ?

मैं तुम्हारे लिए कुछ करना चाहता हूँ.
तो फ़िर
मैं क्यों मरना चाहता हूँ ?
मुझे जीना होगा.


मुझे कुछ करना होगा
तुम्हारे लिए.

जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ.



तृष्णा तंसरी

छिन्द्वारा/ १५ मई, २००४

Saturday, February 9, 2008

खुदा तुम्हें

खुदा तुम्हें महफूज रखें
ज़माने की निगाहों से.

गुजारो ना तुम कभी
पथरीली राहों से।

तृष्णा


chhindwara/ २२ सितम्बर, 2003

तुम कल जहाँ थी

तुम कल जहाँ थी,
आज भी वहीं हो.

मगर

मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ,
वहां से कई कदम आगे.

अपनी एक नई भूमिका में,
अपने एक नए वजूद में.

तुम कल जहां थी
रहोगी आज भी वहीं

मगर

तुम्हारी नई भूमिका,
तुम्हारा नया वजूद,
तुम्हें एक नई पहचान देगा।

तृष्णा

भोपाल /२६ दिसंबर, २००४

Wednesday, February 6, 2008

Tum vidinirmaata ki tarh baat karte ho

Ramkrishan,

lekh ki shura-aat to achi thi...

laga kuch gambhir or saarthak soch rahe ho...
but baad mein tum bhi usipatriachal soch par aagaye,

jis par ye duniya or samaj chal raha hai.
or antim pera padkar lagaki mane
is lekh ka arambhpad kar isse sarthaktaki umid karne ki moorkhta kase kar li...

bas yahi kahungi ki mahilayon ko...
azadi or kathit adhikaar dene ki baat katre karte...
tum unke vidinirmaata ki tarh baat karne lage...

aakhir koi bhi kyu mahilayon ko
bataye ki unhe kya HONA or KARNA chahiye...

unhe zimedaar nagrik hona hai ya
carrer oriented ya parampairk...

let them decide,
you or some1 else plz dont do this for them..

unicode wala baksa yaha khulta...
to ye comment tumare blog par hi deti

...or umid hai theek thaak hoge..

bi tak care.
pooja

Monday, February 4, 2008

feminism : LIBERATION FROM MAN?

ram
han main naariwadi hun,
magar vartaman mein nariwad itna stereotype bana diya gayahai,
kafi taklif hai mujhe is baat ki.
ek bar mere saath kam karne walon ne,
sir aadi ne mujh se pucha hai ki
"what is feminism according to u""
is it LIBERATION FROM MAN?
maine kaha nahin"FEMINISM IS LIBERATION
FROM FEAR AND STIGMA OF BEING WOMEN"

magar mujhu dar hai

javab hai ....yes

aab main kuchha vistar me bat karuga...
magar mujhu dar hai...

ki ye bhashan naa ho jaye...

pahle dubara thanks...

main aapne bare me khud kya kahu...

sacha batane par aapka majak banaya jata hai...
mare satha bhi aab tak yahi hota raha hai...

mare doston ko pata hai ki mere vichar nareevadi hai...
aur main bhi...

mujhe iske liy sunana bhi padta hai...
nareevadi kitabe padna...

sochna... aur jeena meri aadat hai...

khair...
mera likha aapne pasand kiya...
Aapko fir... thank

aapko maine suna hai...
aap bhi mujhe feminist lagti ho !!!

बड़ा प्रश्न है

ek simple main ka biwinama...

kafi achha prayas tha,

khaskar nimna bindu...

patni ki saari kabiliat uske pati aur...
bachhon tak hi seemitkyon rahti hai

kya tum vakayi apnee likhi baton ko...
shiddan se mahsus karte ho,

usase bhi bada prashan hai...
ki kya un baton ko apne jivan mein utaroge.

dosto ke beech

Mujhe lagata hai...

ki kisee ek vad ya vichardhara se...
dunia ko chlanamumkin nahin …

Maine kai bar…

dosto ke beech yah mudda uathaya
ki hamare samaj ko mahila pradhan hona chahiye…

Javab kya mila …

Usse kya hoga…
samaj koi bhi ho…
jo takatvar hoga…
ya jiske hatha me takat hogi…
vah samaj ko, dunia ko aapne hi aandaz me chalayega…

Mahila ko ek mudde ke rup me le to…
Jis tahar dalit ek mudda hai…

To yahin kaha ja sakta hai ki…
kahin-naa-kahin mahilo
ki uapechha to hui hai aab tak…

Male ne dunia ke sare niyam-kanun banaye…

karan …

Takat-pawer usee ke pas tha…
Bhagvan – duniya banana vala bhi male hi hai...

Kaha samanta nazar aati hai..

Hamare desh me …
Bat –bat par ghar- pariwar ka hawala liya jata hai…

Bachcho ke nam par mahila ko blackmel kiya jata hai…
Mera kahna sirf itna hai ki…

Bachcha-ghar aur pariwar kya sirf female ki jimmedari hai…
Male ka koi bhi farz nahin…

Japan me male ghar ki jimmedari samal rahe hai…
Bakee duniya me badlav aa raha hai…

Likin bat …tab banti nazar nahin aati…
jab nariye me badlav dikhai nahin deta…

Hilari TAK ko chunavi douro ke samay tana diya gaya ki …

kapde dhone…
khana pakane ka kam karo…

Feminist par lagatar bahas jari hai…

Aabhee kisee desh ki news pad raha tha ki…
Vaha ki sarkar is bat par vichar kar rahi hai ki…
Bachcho ke lalan-palan ki aalag koi vyavastha ki jaye …

Matlab...
bachcho ki jimmedari agar male nahin lena chahte to…
Fir female kis karan se aapni zindgi ke samay ko bachcho par jaya kare…

Unki dekha bhal ka jimma kisee aur de diya jaye…

Sex… bhee ek bada mudda hai …
male ko is mamle me tamam tarah ki aazadi milee hui hai…
uska daman kabhi dagdar hota hi nahin…

Aur female par humesha pahara hota hai…

Papa ka,
pappu bhaiya
aur patidev ka…

Nahin to khud ka …
kahin koi kah naa de…
RAM TEREE GANGAA…

Female writers ki achchee kitabe padakar lagta hai
ki female ke liy…
sex aazadi Kis karan se jaruri hai…

Tamam tarah ki galiya female ko lekar hi bani hai…

Log aapne bachcho…(sirf male baby not female) …
ke mukha se galiya sunkar bahat khush hote hai …

Jab inka use female karti hai unko bura kaha jata hai…
kisliye…

Bat media me female ko lekar kare to…
hamesh un par uagli uathati…
Aakhir jab male hi unhe us raha par le jate hai …
To fir aarop lagane ka dusre male parson ko koi hak nahin banta …

Log to yah bhi kahna nahin chukte ki media ki sari mahilaye aayogaya hai…
Sirf aapne jism ki badoulat thiki hui hai…

Is tarah ki bat karne valo ke satha kya kiya jaye…

Ek do aapavado ko dekhakar yah kahna …
Samaj me nahin aata …

Aakhir kab badalega nazariya….

(Net kharab hone ke karan itna likha gaya.
Padkar aapna dimag kharabmat kar lena. Tc … ok)

बस मस्ती

ना दोस्ती कि जाये ना दुश्मनी कि जाये,
करना है गर कुछ तो बस मस्ती कि जाये.
...trishna