Monday, May 13, 2019

फेसबुक पोस्ट : मेरी यादों में नागपुर

#नागपुर से लौटकर

बचपन से ही नागपुर को लेकर क्रेज रहा है. हमारे जिले #छिंदवाड़ा के नजदीक का बड़ा शहर नागपुर ही है। घर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है नागपुर। पहली बार मेरा नागपुर जाना कब हुआ होगा, मुझे कुछ याद नहीं है. हां इतना जरूर याद है कि कॉलेज के दौरान नेट के एग्जाम देने के लिए एक बार अपने दोस्तों के साथ नागपुर गया था और वह भी ट्रेन से. इसके अलावा कई बार बस से नागपुर आना जाना होता है।

नागपुर अब तक ज्यादा तो नहीं घूमा है मगर गणेश मंदिर, लोकमत चौक, सीताबर्डी, सदर बाजार जैसे कुछ इलाके जरूर देखे हैं। संतरों की नगरी नागपुर काफी गर्म शहर माना जाता है। सर्दियों के दिनों में भी यहां आपको ऊनी कपड़ों की जरूरत नहीं पड़ती और गर्मियों में इतनी गर्मी कि आप शहर घूमते घूमते पसीने से भीग जाएंगे।

रेलवे स्टेशन और उससे लगे मध्य प्रदेश बस स्टैंड को शायद ही कभी भूल पाएंगे। यहीं से हम अक्सर आना जाना करते हैं चाहे दिल्ली जाना हो या रायपुर. हालांकि अब दिल्ली के लिए छिंदवाड़ा से सीधी ट्रेन है। रायपुर के लिए भी एक - दो साल में चलने लगेगी।

नागपुर शहर में कुछ मित्र रहते हैं जिनसे अक्सर बात और मुलाकात हो जाती है। पूरा शहर घूमने की काफी इच्छा है। पता नहीं यह सपना कब पूरा होगा. नागपुर बाकी शहरों की तुलना में महंगा शहर है। हालांकि यहां पर खाने पीने की चीजें कई वैरायटी में और सस्ती मिल जाती है.

#नागपुर #संतरीनगरी #छिंदवाड़ाकीसैर #छिंदवाड़ा

17 मई 2017 की फेसबुक पोस्ट


Friday, May 10, 2019

करदाताओं का संगठन बनाया जाए

*अब समय आ गया है जब, करदाताओं का संगठन बनाया जाये*

*जो विश्व का सबसे बड़ा संगठन होगा*

देश में अब एक Tax Payers Union का गठन होना चाहिए। चाहे कोई भी सरकार हो,बिना उस यूनियन की स्वीकृति के न तो मुफ्त बॉटने की, या कर्ज़ माफ़ी की कोई कुछ घोषणा कर सकती हो, न ही ऐसा कुछ लागू कर सके।
पैसा हमारे टैक्स का है तो हमें अधिकार भी होना चाहिए कि उसका उपयोग कैसे हो ।

पार्टियां तो वोट के लिए कुछ भी लालच देती रहेंगी,
कौनसा उनकी जेब का जा रहा है।
चाहे कोई भी स्कीम बने उसका ब्लूप्रिंट दो, हमसे सहमति लो,और यह उनके वेतन एवं अन्य सुविधाओं पर भी लागू होना चाहिए।

लोकतंत्र क्या बस वोट देने तक सीमित है,
उसके बाद क्या अधिकार हैं हमें??

*Right to Recall Any Such Freebies " भी शीघ्र लागू होना चाहिए।*

*सहमति हो तो अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं*

👍👍👍👍👍👍

मूल लेखक : अज्ञात

*प्रतिक्रियाएं....*

*सोशल मीडिया वर्कर रमेश बलानी, रायपुर की कलम से*
                                                            
     *सही बात है*…

     ★ _जब सरकार चुनने का हक़ जनता के पास है।_

     ★ _जब सरकारी अधिकारी±कर्मचारी Public Servent कहलाए जाते हैं।_

     ★ _जब जनता के टैक्स से ही अधिकारी±कर्मचारी(यों) को वेतन+भत्ता इत्यादि का भुगतान होता है।_

     ★ _यहाँ तक कि चुने हुए प्रभारी±पूर्व±भूतपूर्व नेताओं को भी बंगला+वाहन+बिजली+फ्यूल+टेलिफ़ोन+सर्विस-स्टाफ़ आदि संसाधनों के अलावा सस्ता भोजन (कैंटीन) की सुख-सुविधाएँ जनता के टैक्स से ही हासिल हैं।_

     *तो जनता का हक़ भी बनता है कि मालिक की भूमिका में आए। करदाताओं को एक विशाल संगठन बनाने में सहयोग करे।*

     *लोकतंत्र द्वारा चुनी हुई पार्टियाँ तो मालिक बन जनता पर शासक का स्वप्रभुत्व अधिकार मान लेती हैं।*

     *चुनाव दरमियान जनता को सब्ज़बाग़ दिखा ठगने का भरपूर प्रयास करती हैं।*

     *और*,, *ख़र्च का सारा भार करदाताओं के मत्थे ज़बरदस्ती मढ़ लेती हैं।*

     *जनता में से प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक ख़रीद पर कर का प्रत्यक्ष±अप्रत्यक्ष भुगतान कर ही रहा है।*

     *जनता का हक़ बनता है कि अपना प्रभुत्व स्थापित करे और विश्व स्तरीय विशाल संगठन बनाने पर सहयोग करे।*

     → _संगठन होगा तो नेताओं पर अंकुश होगा।_

     → _नेताओं की फिसलती जुबान पर अंकुश होगा।_

     → _नेताओं की ठगप्रवृत्त बद्ज़बान पर अंकुश होगा।

     → _सरकारी ख़ज़ाने की आवक-जावक के लेखे-जोखे की ऑडिट-रिपोर्ट के अध्ययन करने और अनपेक्षित व्ययों पर निगाह होगी।_

     → _नेताओं की मनमर्ज़ियों पर अंकुश होगा। उदाहरणार्थ छत्तीसगढ़ के वर्तमान प्रभारी मुख्यमंत्री द्वारा एक नेता-पुत्र को शासकीय उच्च-पद पर "'अनुकंपा नियुक्ति '" पर पदस्थापित कर अपने प्रदेश के योग्य उम्मीदवारों के साथ कपट नीति अपना कर मनमर्ज़ी करी है।_

     → _नेताओं द्वारा नेताओं के विरुद्ध प्रतियोगितापूर्ण लांछनों, द्वेषों युक्त बयानबाजियों पर भी अंकुश होगा।_

     → _प्रत्येक योजना के ब्लूप्रिंट पर सहमति होने से, योजना के व्ययों पर निगाह होने से देश हित में आर्थिक सुस्पष्टता होने के अलावा भ्रष्ट बटवारों पर अंकुश होगा।_

      → _नेताओं के भ्रष्ट±दृष्ट आचरणों पर ''संगठन '' की निगाह होने से शासकीय विभागों में भी भ्रष्टाचार पर अंकुश होगा।_

     → _अन्य सार्थक सुझाव यथा *Right to Recall Any Such Freebies* सहित अन्य, जो आपके द्वारा सुझाए गये हैं भी यथोचित हैं।_
                                                                             *अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगती है तो अपनी प्रतिक्रिया जोड़ते हुए इसे आगे बढ़ाते रहे।*


Sunday, May 5, 2019

क्या मोदीजी खुद को प्रधानमंत्री नहीं मानते

भाजपा की मुश्किल ये है कि उसके पास भी कोई बड़ा नेता नहीं है। जो भीड़ जुटा सके। वोट दिला सकें।

आप कहेंगे मोदी जी है ना।

मैं कहूँगा... ये तो सही है कि मोदी जी है।

... लेकिन दुर्भाग्य ये है कि मोदी जी खुद को भाजपा का बड़ा नेता और स्टार प्रचारक से ज्यादा कुछ और मानने को तैयार ही नहीं है।

जबकि पूरा देश जानता है कि भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री का नाम नरेंद्र मोदी है। और ये भी विश्वास करता है प्रधानमंत्री को क्या बोलना चाहिए। क्या नहीं बोलना चाहिए।

मोदीजी भूल जाते हैं। बार बार कि वे अभी प्रधानमंत्री है। खैर कोई बात नहीं।

मोदीजी आप तो लगे रहिये...

क्योंकि आखिर आप तो पहले भाजपा नेता। स्टार प्रचारक है। प्रधानमंत्री आप कुछ समय के लिए बने हो। हमेशा के लिए थोड़ी ना।

आपको क्या करना है ये याद रखकर कि प्रधानमंत्री को क्या बोलना होता है। और क्या नहीं।

सितंबर 2013। यह वही समय था जब भाजपा ने आपको प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था।
फिर चुनाव के ऐलान के साथ आपकी रैलियां शुरू हो गई। खूब चर्चे थे आपके। भीड़ जुटाने में माहिर। स्टार प्रचारक। पार्टी में नंबर।

यूपीए के 10 साल के शासन के बाद जनता बदलाव चाह रही थी। और मोदीजी आपको इसका खूब फायदा हुआ। जैसे पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में। जहां भाजपा की सरकारों से मुंह मोड़कर जनता ने कांग्रेस को सत्ता की चाबी सौंपी है। वैसे ही आपकी पार्टी भाजपा को 2014 में जबरदस्त सीटें मिली। खैर...। ये सब देश जानता है।

... लेकिन मोदीजी अब देश, देश के जागरूक और जिम्मेदार नागरिक ये भी जानने लगा है कि आप क्या बोलते हैं। आपकी भाषा क्या है।

आप तथ्य गलत रख दो। ये भी नहीं होना चाहिए। क्योंकि आप प्रधानमंत्री हो।

फिर भी ये चल जाएगा।

लेकिन आप मर्यादा का ख्याल न रखो। घटिया बयानबाजी करो। घटिया टिप्पणी करो। ये पूरा देश देख रहा है।

हम ये भी मानते हैं कि राजनीति। हमारे देश की राजनीति वाकई खराब है। हर नेता लगभग ऐसी ही भाषा बोल रहा है। कोई कम, कोई ज्यादा। हर नेता चुनावी मंच से विरोधी पार्टी के नेताओं के लिए जहर उगलता है।

लेकिन जब ये नेता लोग आपस में मिलते हैं तो कहते हैं कि हम तो सिर्फ राजनीतिक विरोधी है। और जनता। मासूम जनता आपके बयान पर लड़ पड़ती है।

आप जैसे नेता लोग तो सिर्फ राजनीति करते हैं। अपनी पार्टी की। पार्टी की सीटें बढ़ाने के लिए घटिया बयानबाजी करते हैं। और देश की भोली-भाली जनता आपस में लड़ पड़ती है। वो मेरा प्रिय नेता है। फिर चुनावी जुमले दोहराने लगती है।... आएगा तो...।

जनता भूल जाती है कि ये चुनावी नारे है। किसी पार्टी के है। फिर वो औरों से भी अपने प्रिय नेता को वोट देने की अपील करने लगती है। जबकि वोट किसे देना है ये हर नागरिक का व्यक्तिगत मामला है।

ये भी सब पार्टी के आईटी का कमाल होता है। जो देखते देखते हर मोबाइल में फैल जाता है। हर फारवर्ड करने वाले को लगता है कि ये मेरे अपने की अपील है।

अंत में सिर्फ इतना कि भारत में लोकतंत्र है। कई दल है। कई नेता है। जो पार्टी या नेता अच्छा काम करेगा। जनता उसे पसंद करेगी। बार बार मौका भी देगी।

कई बार विकल्प नहीं होने का फायदा भी मिल जाता है।

मोदीजी आप पांच साल प्रधानमंत्री रहे। आगे क्या होगा। कह नहीं सकते। आपका काम है विरोधी पार्टी पर हमला बोलना। सबसे बड़ी विरोधी पार्टी कांग्रेस है। आप उसके मौजूदा नेताओं पर खूब बोलिए।

लेकिन देश के प्रधानमंत्री रहे नेताओं के बारे में बोलते वक्त आपको ध्यान रखना होगा कि आप क्या बोल रहे हैं। क्योंकि फिलहाल आप खुद प्रधानमंत्री के पद पर बैठे है।

©® गैर राजनीतिक पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे की कलम से