Monday, October 24, 2016

किस्सा तीन तलाक का- 1

तीन तलाक के ताजा मामले को समझने के लिए तहलका की यह रिपोर्ट आपके लिए काफी है। अगर तीन तलाक....जैसी कुप्रथा को और समझना है तो आप कुरान में उसका सही रूप पढ़ लीजिए। लेकिन होता कुछ और ही है। 

हिंदू धर्म में विधवाओं की संख्या प्रति 1000 88.3, मुसलमानों में 72 है। जबकि अलग रहने वाले महिलाओं की संख्या हिंदुओं में प्रति 1000 पर 5.5 तो मुसलमानों में 4.8 है। वहीं तलाक के आंकड़ों पर नजर डालें तो हिंदुओं में प्रति 1000 यह 1.8 तो मुसलमानों में यह 3.4 है। 

धर्म पहले नहीं है। इंसान या इंसानियत पहले हैं। इंसान पहले आया। धर्म बाद में। धर्म ने इंसान को नहीं बनाया। इंसानों की शुरुआती बिरादरी ने ही अपने लिए अलग-अलग धर्म बनाए। कुप्रथाएं किसी भी धर्म या सम्प्रदाय में हो। खत्म होनी चाहिए। भारत में अगर सती प्रथा, बाल विवाह जैसी बुराइयों को खत्म किया गया है। तो मुस्लिम धर्म की तीन तलाक जैसी प्रथा-कुप्रथा को भी खत्म किया जाना चाहिए।

अगर मेरे परिवार में, मेरे परिचितों में महिलाओं के साथ, बच्चों के साथ कोई अन्याय-मारपीट नहीं हो रही है। तो मैं दावे के साथ ऐसा कैसे कह सकता हूं कि दुनिया की सारी महिलाओं के साथ कोई जुल्म नहीं हो रहा है। इसलिए पढ़े-लिखे मुस्लिम तबके को यह सोचना छोड़ देना चाहिए कि तीन तलाक सही है। क्योंकि उनकी जानकारी या उनके परिचितों में किसी के साथ कोई गलत नहीं हुआ है। तीन तलाक पर बैन लगने से उनका धर्म खतरे में नहीं पड़ जाएगा।

देशभर में देखिए... अपनी आंखें खोलिए...किस-किस तरह से... कितनी मुस्लिम औरतों को तीन तलाक का अभिशाप झेलना पड़ रहा है।

देश में अगर कोई कानून है तो सब कुछ कानून के मुताबिक ही होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट या सरकार अगर कोई कदम उठाएगी तो किसी की सुनी- सुनाई बातों के आधार पर नहीं। उनके सामने तमाम उदाहरण है....रोती...बिलखती औरतों की जिंदा कहानियां है जो उन मुर्दा सोच वाले लोगों की वजह से ऐसी जिंदगी जी रही है। चाहे फिर वह औरत शायरा बानो, फातिमा, नायरा या कुछ भी....

आप भी पढ़िए इस रिपोर्ट को फिर अपनी राय रखिए... स्वागत है। बिना पढ़े या गुस्से में कोई टिप्प्णी न ही कीजिए तो बेहतर रहेगा....

#teentalaq

कुछ तथ्य

नवंबर, 2015 में भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) नाम की संस्था ने एक सर्वे जारी किया. सर्वे में देश के दस राज्यों की तलाकशुदा करीब पांच हजार औरतों से बात की गई. सर्वे में तलाक के तरीके, उनके साथ हुई शारीरिक-मानसिक हिंसा, मेहर की रकम, निकाहनामा, बहुविवाह जैसे कई मुद्दों पर खुलकर बात हुई. जो नतीजे आए, वे बेहद चौंकाने वाले थे. रिपोर्ट में कहा गया कि 92.1 प्रतिशत महिलाओं ने जुबानी या एकतरफा तलाक को गैरकानूनी घोषित करने की मांग की. वहीं 91.7 फीसदी महिलाएं बहुविवाह के खिलाफ हैं. 83.3 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए मुस्लिम फैमिली लॉ में सुधार करने की जरूरत है.
 तीन तलाक को लेकर शायरा बानो के सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद देश में भी तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने की आवाज तेज होने लगी है. इसके खिलाफ एक ऑनलाइन याचिका पर करीब 50,000 मुस्लिम महिलाओं ने हस्ताक्षर किए हैं. हस्ताक्षर करने वाले लोगों में बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुष भी शामिल थे. याचिकाकर्ता बीएमएमए चाहता है कि राष्ट्रीय महिला आयोग इसमें हस्तक्षेप करे. बीएमएमए ने महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम को लिखे पत्र में कहा कि उसने अपने अभियान के पक्ष में 50,000 से अधिक हस्ताक्षर लिए हैं. हमने यह पाया है कि महिलाएं जुबानी-एकतरफा तलाक की व्यवस्था पर पाबंदी चाहती हैं.

‘सीकिंग जस्टिस विदिन फैमिली’ नामक हमारे अध्ययन में पाया गया कि 92 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तलाक की इस व्यवस्था पर पाबंदी चाहती हैं. इस मामले में ललिता कुमारमंगलम का कहना है कि आयोग सुप्रीम कोर्ट में शायरा बानो के मुकदमे का समर्थन करेगा. उनका कहना है, ‘राष्ट्रीय महिला आयोग पहले से ही इस मुकदमे का हिस्सा है. हम इस महीने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करेंगे. इस मांग का 200 फीसदी समर्थन करते हैं. जो भी बन पड़ेगा, हम करेंगे.’
http://tehelkahindi.com/an-elaborated-report-on-triple-talaq-and-how-muslim-women-are-standing-against-it/