Tuesday, April 16, 2019

फेसबुक पोस्ट : गलत कहीं भी हो विरोध कीजिए

देश में दो विचारधारा एक साथ आगे बढ़ रही है। मुझे बताने की जरूरत नहीं है। वे कौन सी है। उनके मानने वाले कौन और कैसे है।

मेरा मानना है कि देश में कई विचारधारा हो सकती है। कोई बुराई नहीं है। एक परिवार में पति - पत्नी, पिता-पुत्र सभी अलग विचारधारा को मानने वाले हो सकते हैं। रहते हैं। इसका ये अर्थ कदापि नहीं होता है कि वे हमेशा लड़ते-झगड़ते रहे।

हम सब देशवासियों को कम से कम कुछ मुद्दों पर तो एक होना चाहिए। जैसे - जो चीज गलत है उसे सभी एक साथ खड़े होकर गलत बोले।

अब सोचिए किसी महिला या बच्ची के साथ जघन्य अपराध होता है। रेप होता है। उस पर भी हम अगर धर्म देखकर फैसला करने लगे तो फिर क्या होगा। ऐसी स्थिति में पीड़ित या आरोपी का धर्म नहीं देखा जाना चाहिए।

पीड़ित के साथ और आरोपी के खिलाफ हमें पूरी ताकत के साथ खड़ा होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो सोचना पड़ेगा कि आखिर हममें इंसानियत नाम की चीज शेष है या नहीं।

*विचार कीजिए। बात आपको बुरी लग सकती है। मगर ये सोचना मौजूदा वक्त की जरूरत बन चुका है।*

#एक_बार_सोचिए

#फेसबुक वॉल से, 16 अप्रैल 2019


Sunday, April 14, 2019

क्या आपने चलाई है कैंची साइकिल

यह दौर था हमारे साइकिल सीखने का और हमारे जमाने में साइकिल दो चरणों में सीखी जाती थी पहला चरण कैंची और दूसरा चरण गद्दी.......

तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस बाबा या ताऊ चलाया करते थे तब साइकिल की ऊंचाई अड़तालीस  इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।

"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे ।

और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और "क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की छोरा साईकिल दौड़ा रहा है ।

आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से मरहूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में अड़तालीस इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था।

हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब दरद भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।

अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल इजाद कर ली गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में ।

मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी!  "जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं ।

इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए !

और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।

और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी ।

हम आदम की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना दो चरणों में सीखा !

पहला चरण कैंची
दूसरा चरण गद्दी।


©® अभिनय बंटी पंचोली, भोपाल के फेसबुक वॉल से

😊😊


मेरे प्रिय नेता

स्कूल में आपने गाय पर निबंध लिखा होगा. स्कूल में आपने 'मेरे प्रिय नेता, इस सब्जेक्ट पर भी निबंध लिखा होगा. आपने लिखा हु- 'मेरे प्रिय नेता महात्मा गांधी' चाचा नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अटल बिहारी वाजपेयी.

हो सकता है आपने उस समय परीक्षा में अच्छे नंबर मिल जाए। इसलिए अपने प्रिय नेता के बारे में खूब लिखा होगा। तारीफों के पुल बांधे होंगे। लेकिन वास्तविक जिंदगी में भी राजनीति का कोई एक ऐसा किरदार, जो आपको बेहद प्रिय होता है। वह आपका सबसे पसंदीदा नेता बन जाता है। चाहे वह नेता कोई भी हो।

अभी नरेंद्र मोदी कई लोगों के प्रिय नेता है। वहीं कुछ लोगों को राहुल गांधी, किसी को केजरीवाल तो किसी को कोई और भी नेता प्रिय होगा। इस स्थिति में ऐसे लोग अपने प्रिय नेता के बारे में कुछ भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते। तो इस बारे में इतना ही कहना चाहूंगा कि हो उन्हें ज्यादा छेड़ा ना करें।

किसी को पसंद और नापसंद करना, यह सभी की व्यक्तिगत रुचि का विषय होता है। लेकिन जब देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है तो यहां हमें सरकार की नीतियों और जनप्रतिनिधियों के कार्यों को लेकर सवाल करने का भी पूरा हक होता है। इसमें किसी तरह की कोताही नहीं बरती जानी चाहिए।

क्योंकि ये नेता, हमारे चुने हुए प्रतिनिधि और जनता के सेवक है. देश में कोई राजशाही या राजतंत्र नहीं है। ना ही नेता हमारे राजा है। जो कि राजा के खिलाफ अगर आप कुछ कहेंगे तो आप को दंड दिया जाएगा।

अच्छे और जागरूक नागरिक बनने की कोशिश कीजिए। चुनाव में अपने लिए अच्छा जनप्रतिनिधि चुनिए। अपने मताधिकार का उपयोग करते समय पूरी गोपनीयता बरतें।

आपको जिसे वोट देना है, दीजिए। मगर उसका ढिंढोरा मत पीटिए। आप अपने परिवार में भी किसी को वोट देने के लिए दबाव नहीं बना सकता।

कहा जाता है धार्मिक आस्था बेहद निजी मामला होता है। यहां तक कि एक ही परिवार में पति-पत्नी और बच्चे अलग अलग धार्मिक प्रवृत्ति के हो सकते हैं। ठीक वैसे ही राजनीतिक आस्था भी व्यक्तिगत मसला है। इस मामले में अगर हम पारिवारिक और शुभचिंतकों के दायरे में ज्यादा चर्चा न ही करें तो बेहतर रहेगा।

©® रामकृष्ण डोंगरे


Friday, April 5, 2019

आप फेक न्यूज क्यों शेयर करते हैं

राजनीतिक पार्टियों के आईटी देशभर के लोगों को भ्रमित करने का काम करते हैं। और आपको पता है यही उनका काम है। ...लेकिन इस पर उन्हें या उनके आकाओं को भी विचार करना चाहिए। आखिर वे गलत जानकारियां फैलाकर क्यों युवा पीढ़ी को बर्बाद करने में तुले है। आईटी सेल की पोस्ट, फोटो और वीडियो को सच मानकर शेयर करने वालों में कई बार ' अच्छे अच्छे पत्रकार' भी शामिल हो जाते हैं। फिर किसी अफसर, बिजनेसमैन, आईटी प्रोफेशनल की कौन बात करेगा।

फेक न्यूज पर गहरी नजर रखने के बाद मैं एक बात तो दावे से कह सकता हूं कि ऐसी गलती हम भावनाओं में बहकर करते हैं। जैसे अगर मैं मोदी जी का बहुत बड़ा फैन हूं या भाजपा को सपोर्ट करता हूं तो राहुल गांधी  के वायनाड में नामांकन दाखिल करने को लेकर आईटी सेल की तरफ से फैलाई जा रही तस्वीरों और पोस्ट को सच मानकर वाट्सएप, फेसबुक और टि्वटर पर तत्काल शेयर कर दूंगा। क्या आपको पता है कि ये तस्वीर कुछ सच है लेकिन इनके साथ लिखा संदेश गलत है। पूरी खबर आप कमेंट बॉक्स में पढ़े।

मुझ जैसे सजग नागरिक की चिंता ये है कि अगर हम 24 घंटे लगाकर भी एक एक फेक न्यूज और पोस्ट का सच लोगों को बताएंगे तो भी हमारा काम खत्म नहीं होगा। क्योंकि फेक न्यूज, झूठी खबर शायद कभी खत्म नहीं हो सकती। जैसे पुराने जमाने में झूठी अफवाह फैलती थी। आज उसी तरह से फेक न्यूज फैलाई जाती है अपने अपने स्वार्थ के लिए।

इंटरनेट इतना बड़ा संसार है कि आम आदमी के वश की बात नहीं है कि वह गूगल में सर्च करके किसी भी पोस्ट या फेक न्यूज की असलियत तुरंत जान सकें। हालांकि थोड़ी मेहनत करने से यह भी संभव हो जाता है। मगर आपने भी देखा होगा कि हर कोई इतनी जल्दी में है कि उसके पास सोचने-विचारने और गूगल करने का समय ही नहीं है। वो क्या फेक न्यूज की पड़ताल करेगा।

फिर भी मेरी फ्रेंड लिस्ट या सर्किल से जुड़े लोगों से मेरा हाथ जोड़कर निवेदन है कि वे फेक न्यूज को शेयर न करें। अगर उन्हें किसी पोस्ट के बारे में जानना है कि ये सच या झूठ तो वे मुझे भेज सकते हैं। दूसरा अगर उन्होंने ठान लिया है कि वे फेक न्यूज ही शेयर और पोस्ट करेंगे तो वे कृपया मुझसे ग्लोबल संसार में नाता तोड़ लीजिए।

कैसे बचें फेक न्यूज से 
- अपने किसी जानकार मित्र को भेजकर वायरल पोस्ट या फोटो की
सचाई पता कीजिए।
- गूगल में जाकर की वर्ड सर्च कीजिए। अापको सच और झूठ का पता चल जाएगा।


फेक न्यूज जान लेती है 
इतना अगर आप जान लेंगे तो 
कभी आप फेक न्यूज शेयर नहीं करेंगे।