Friday, September 12, 2014

छत्तीसगढ़ के साहित्यकार- तीसरी किश्त

छत्तीसगढ़ के साहित्यकार... लगातार 
प्रदेश के गज़़लकारों ये प्रमुख नाम शुमार है। लाला जगदलपुरी, अमीर अली अमीर, नीलू मेघ, डॉ. महेन्द्र ठाकुर। अब छत्तीसगढ़ प्रदेश व्यंग्य प्रदेश के रूप में चर्चित होने लगा है। शब्दों के बम से वार करने वाले ऐसे सेनापतियों को हम प्रदेश के प्रथम व्यंग्यकार शरद कोठारी (दास्तान दो जमूरों की, चित्र और चरित्र), तीस से अधिक व्यंग्य संग्रहों के रचनाकार लतीफ घोंघी, विनोद शंकर शुक्ल (मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं, कबिरा खड़ा चुनाव में), प्रभाकर चौबे (विज्ञापन के बहाने), त्रिभुवन पांडेय (पम्पापुर की कथा), गिरीश पंकज (भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण एवं मिठलबरा की आत्मकथा), स्नेहलता पाठक (द्रोपदी का सफरनामा) आदि के नाम से जानते हैं। स्व. रवीन्द्र कंचन के व्यंग्य लेखन ने जो जोखिम उठाया वह कम लोगों को ज्ञात है। उनके एक व्यंग्य पर (सूचक, इंदौर में प्रकाशित) घरघोड़ा में इतनी हाय तौबा मची कि उन्हें प्राण बचाने के लिए महीनों घर छोड़कर अंडरग्राउंड रहना पड़ा।

प्रमुख कहानीकारों में लाला जगदलपुरी, महरुन्निसा परवेज, गुलशेर अहमद शानी, स्व. दामोदर सदन, जया जादवानी आदि प्रमुख हैं। मशहूर कहानीकार दामोदर सदन ने अपने जीवन का काफी समय मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में बिताया।

ललित निबंधकार जयप्रकाश मानस की प्रमुख कृतियों काम के भाग, ग्राम के प्रथम शुभचिंतक, घर आंगन के रचयिता, देवरास, जामुन का पेड़ आदि ने लोगों का ध्यान खींचा। उनका पहला ललित निबंध संग्रह-दोपहर गांव- आया है। यह समूचे छत्तीसगढ से अब तक प्रकाशित पहली किताब है जो संपूर्णतः इंटरनेट पर उपलब्ध है। इसके अलावा डॉ. महेश परिमल का नाम भी ललित निबंध के क्षेत्र में पहचाना जाने लगा है। उनका एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ है, जिसका नाम है- लिखो पाती प्‍यार भरी। डॉ परिमल मूल रूप से महासमुंद के हैं, फिलहाल भोपाल में रहते हैं। इन्‍होंने हिंदी समाचारपत्रों के शीर्षकों पर पीएचडी की है।

स्त्रोत- विकीपीडिया

छत्तीसगढ़ के साहित्यकार - दूसरी किश्त

छत्तीसगढ़ के साहित्यकार... लगातार
इधर विनोद कुमार शुक्ल का नाम काफी चर्चा में रहता है। शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार हैं। 1937 राजनंदगांव, छत्तीसगढ़ में जन्मे शुक्ल ने प्राध्यापन को रोजग़ार के रूप में चुनकर पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया। आपकी प्रमुख कृतियां है- नौकर की कमीज, दीवार में एक खिड़की रहती थी, खिलेगा तो देखेंगे। नौकर की कमीज पर फिल्मकार मणिकौल ने इसी से नाम से फिल्म भी बनाई। कई सम्मानों से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास- दीवार में एक खिड़की रहती थी, के लिए वर्ष 1999 का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

समकालीन हिंदी कविता में अपनी लगातार मौजूदगी से छत्तीसगढ़ को पहचान देने वाले कवियों में प्रभात त्रिपाठी, एकांत श्रीवास्तव, शरद कोकास, माझी अनंत, बसंत त्रिपाठी, ललित सुरजन आदि प्रमुख हैं। एकांत श्रीवास्तव का जन्म 8 फ़रवरी 1964 को हुआ। आपके प्रमुख काव्य संकलन- अन्न हैं मेरे शब्द, मट्टी से कहूँगा धन्यवाद और बीज से फूल तक। श्रीवास्तव जी को अब तक साहित्य के सम्मानों से नवाजा जा चुका है।  इधर जयप्रकाश मानस, पुष्पा तिवारी, गिरीश मिश्र आदि संभावना से पूर्ण कवि के रूप में सामने आ रहे हैं।
-----------------
हिंदी गीत रचकर अपनी खास पहचान बनाने वालों में आनंदी सहाय शुक्ल, नारायणलाल परमार, नरेन्द्र श्रीवास्तव, राम कुमार वर्मा, रामअधीर प्रमुख हस्तियां हैं। रायगढ़ के जनकवि आनंदी सहाय 85 साल की उम्र पार कर चुके हैं। परमार छत्तीसगढ़ के प्रमुख साहित्यकारों में गिने जाते हैं। आधी सदी से भी अधिक समय तक वे देश भर की पत्र पत्रिकाओं में छपे, उनके गीत रेडियो से बजते रहे, कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति निरंतर बनी रही और पाठ्यपुस्तकों के जरिए लाखों बच्चों ने उनकी रचनाओं को पढ़ा।
स्त्रोत- विकीपीडिया

छत्तीसगढ़ के प्रमुख साहित्यकार- पहली किश्त

इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का बाशिंदा हूं। यहां मैं राज्य के कुछ चर्चित लेखक और कवियों का उल्लेख कर रहा हूं। भारतेंदु मंडल के अग्रगण्य सदस्य ठाकुर जगमोहन सिंह की कर्मभूमि छत्तीसगढ़ ही थी। पद्यश्री पं. मुकुटधर पांडेय को प्रदेश का प्रथम मनीषी कहा जाता है। उन्हें छायावाद का प्रवर्तक भी माना जाता है। पदुमलाल पन्नालाल बख्शी को छत्तीसगढ़ का श्लाका पुरुष कहा जाता है। उनकी रचना झलमला हिंदी की पहली लघुकथा मानी जाती है। उन्होंने सरस्वती जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका का संपादन किया था। हिंदी की पहली कहानी टोकरी भर मिट्टी के लेखक माधवराव सप्रे भी इसी धरती पर पैदा हुए थे। 
---------------------
गजानन माधव मुक्तिबोध को न केवल छत्तीसगढ़ अपितु सारा देश कभी भी नहीं भूल सकता। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार थे। वे हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केंद्र में रहने वाले कवि रहे। वे कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उनकी विश्व प्रसिद्ध कृतियां हैं- चांद का मुंह टेढा़ है, अंधेरे में, एक साहित्यिक की डायरी। उनके बेटे दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार है। वे लंबे समय से कई अखबारों के साथ जुड़े रहे हैं। वे वर्तमान में दैनिक अमन-पथ में संपादक है। उनकी दो किताबें प्रकाशित हुई- ‘इस राह को गुजरते हुए’ और ‘36 का चौसर’।

हिंदी के आधुनिक काल में श्रीकांत वर्मा राष्ट्रीय क्षितिज पर प्रतिष्ठित कवि की छवि रखते हैं, जिनकी प्रमुख कृतियां- माया दर्पण, दिनारम्भ, छायालोक, संवाद, झाठी, जिरह, प्रसंग, अपोलो का रथ आदि हैं।
श्रीकांत वर्मा का जन्म 18 नवंबर 1931 को बिलासपुर में हुआ। वे गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं। आपने दिल्ली में कई पत्र पत्रिकाओं में लगभग एक दशक तक पत्रकार के रूप में कार्य किया। 1966 से 1977 तक वे दिनमान के विशेष संवाददाता रहे। वर्मा जी राजनीति से भी जुड़े थे तथा लोकसभा के सदस्य भी रहे।
-----------------------
स्त्रोत-  विकीपीडिया