छिंदवाड़ा : ऐतिहासिक तथ्य
एक समय छिंदवा़ड़ा जिला छिंद के पे़ड़ों से भरपूर था इसलिए इसका नाम छिंद के वाडे के नाम पर छिंदवाड़ा पड़ा। वहीं दूसरी ओर कहा जाता है कि छिदंवाड़ा में शेरों की संख्या काफी अधिक थी। यहां काफी संख्या में शेर आते थे। इसलिए इसे सिंहद्वार भी कहा जाता था।
छिंदवाड़ा में कभी भक्त बुलुंद का राज हुआ करता था। इसने तीसरी शताब्दी में यहां शासन किया। इसके बाद राष्ट्रकुट ने नीलकंठ गांव बसाया। उसने 7वीं सदी तक राज किया। इसके पश्चात गौंडवाना राजाओं ने राज किया। उन्होंने देवगढ़ को अपनी राजधानी बनाया तथा देवगढ़ में किले का निर्माण भी किया। यहां भक्त बुलुंद सबसे शक्तिशाली राजा था। उसने औरंगजेब की हुकूमत के समय मुस्लिम धर्म अपना लिया था। इसके बाद यहां पर राजपाट बदलता रहा। अंत में 1803 में अंतिम मराठा शासन समाप्त हुआ और 17 सितम्बर 1803 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने रघुजी-द्वितीय को परास्त कर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
स्वतंत्रता के बाद नागपुर की राजधानी छिंदवाड़ा को बनाना चाहते थे।
1 नवंबर, 1956 को इस जिले का पुनर्गठन किया गया।
आकर्षक स्थलः
एक समय छिंदवा़ड़ा जिला छिंद के पे़ड़ों से भरपूर था इसलिए इसका नाम छिंद के वाडे के नाम पर छिंदवाड़ा पड़ा। वहीं दूसरी ओर कहा जाता है कि छिदंवाड़ा में शेरों की संख्या काफी अधिक थी। यहां काफी संख्या में शेर आते थे। इसलिए इसे सिंहद्वार भी कहा जाता था।
छिंदवाड़ा में कभी भक्त बुलुंद का राज हुआ करता था। इसने तीसरी शताब्दी में यहां शासन किया। इसके बाद राष्ट्रकुट ने नीलकंठ गांव बसाया। उसने 7वीं सदी तक राज किया। इसके पश्चात गौंडवाना राजाओं ने राज किया। उन्होंने देवगढ़ को अपनी राजधानी बनाया तथा देवगढ़ में किले का निर्माण भी किया। यहां भक्त बुलुंद सबसे शक्तिशाली राजा था। उसने औरंगजेब की हुकूमत के समय मुस्लिम धर्म अपना लिया था। इसके बाद यहां पर राजपाट बदलता रहा। अंत में 1803 में अंतिम मराठा शासन समाप्त हुआ और 17 सितम्बर 1803 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने रघुजी-द्वितीय को परास्त कर अपना आधिपत्य स्थापित किया।
स्वतंत्रता के बाद नागपुर की राजधानी छिंदवाड़ा को बनाना चाहते थे।
1 नवंबर, 1956 को इस जिले का पुनर्गठन किया गया।
आकर्षक स्थलः
पातालकोट जिले का प्रख्यात दर्शनीय स्थल हैं
तामिया जनजातीय संग्रहालय
छोटा महादेव की गुफा
देवगढ़ का किला
नदादवाड़ी
गर्म पानी का फुहारा, अनहोनी
राधादेवी की गुफाएं
जामसावली हनुमान मंदिर, सौंसर
छिंदवाड़ा :
छिंदवाड़ा जिले का गठन 1 नवंबर, 1956 को हुआ। यह सतपुड़ा पर्वत माला के दक्षिण-पश्चिमी में स्थित है। यह 21।28 से 22.49 डि. उत्तरी देशांतर और 78.40 से 79.24 डिग्री पूर्वी अक्षांश में 11,815 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ है। जिले की सीमा दक्षिण में महाराष्ट्र के नागपुर जिले, उत्तर में मप्र के होशंगाबाद और नरसिंहपुर, पश्चिम में बैतूल एवं पूर्व में सिवनी जिले से लगी हुई है। छिदंवाड़ा जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रदेश में पहले नंबर पर है। जो प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 3.85 प्रतिशत है। यह जिला 9 तहसीलों (छिंदवाड़ा, परासिया, जुन्नारदेव, तामिया, अमरवाड़ा चौरई, बिछुआ, सौसर और पांढुर्णा) में बंटा हुआ है। जिले में 11 विकासखंड (छिंदवाड़ा, परासिया, जुन्नारदेव, तामिया, अमरवाड़ा, चौरई, बिछुआ, हर्रई, मोहखेड़, सौसर और पांढुर्णा) हैं। जिले में 4 नगर पालिकाएं (छिंदवाड़ा, परासिया, जुन्नारदेव, और पांढुर्णा) हैं। वहीं 8 नगर पंचायतें (सौसर, अमरवाड़ा, चांदामेटा भूतरिया, न्यूटन चिकली, हर्रई, मोहगांव, चौरई और लोधीखेड़ा है। वहीं 10 छोटे कस्बे (दीघावनी, जाटाछापर, इकलहरा, पगारा, काली छापर, दमुआ, पाला चौरई, बम्हौरी, अम्बाड़ा और बड़कुही हैं। जिले में 1984 गांव हैं। इनमें से 1903 गांवों को 19 राजस्व मंडल और 319 पटवारी हल्कों में बांटा गया है। जिले में 808 पंचायतें हैं। प्रमुख औद्योगिक इकाईयां : हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड, लहगड़ुआ रेमण्ड वूलन मिल्स लिमिटेड, बोरगांव पी.बी.एम. पोलीटेक्स लिमिटेड, बोरगांव सुपर पैक (बजाज) ग्राम सावली भंसाली इंजीनियरिंग पोलीमर्स, सातनूर सूर्यवंशी स्पिनिंग मिल्स, ग्राम राजना शशिकांत एंड कम्पनी, जुन्नारदेव रूबी इंजीनियंरिग वर्क्स छिंदवा़ड़ा ईश्वर इंडस्ट्रीज खजरी,
3 comments:
आभार इस जानकारी के लिए. पड़ोसी शहर से होने की वजह ज्यादा ही रोचक रहा.आभार.
रामकृष्ण तुम्हारा ब्लॉग नियमित पढ़ता हूं ।
उपयोगी जानकारी है छिंदवाड़ा के बारे में ।
बार बार पुराने दिन याद आ जाते हैं ।
पातालकोट हो या फिर जनजातीय संग्रहालय
सब याद आता है ।
लिखते रहो ।
टिप्पणीयां कम कर पाता हूं । पर ये मानकर चलो कि कम से कम मैं तो पढ़ ही रहा हूं ।
छिंदवाड़ा करीब २०-२१ साल पहले गए थे पर आज भी यादें ताजा है।
वहां पर कहीं आदिवासी लोग भी रहते है। अब उस जगह का नाम हमे याद नही है।
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