Tuesday, June 9, 2015

कुठियाला हटाओ, माखनलाल बचाओ : चौथी किस्त

#savemcu #savejournalism #लड़ाईजारीहै


यूनिवर्सिटी की ताजा व्यवस्था या अव्यवस्थाजो कि जूनियर साथियों के जरिए हम तक पहुंची हैं। लाइब्रेरी की टाइमिंग बदलनाकंप्यूटर लैब की टाइमिंग बदलना कई बंदिशें। पत्रकारिता जगत के सीनियर पत्रकारों से   रूबरू करानेउनके अनुभवों से लाभ मिलने के अवसरों का कम हो जाना।

पत्रकारिता के गुर सीखने के लिए निकलने वाले विकल्प और अन्य लैब जर्नल का काम ठप हो जाना। सेमेस्टर एग्जाम के बाद होने वाली इंटर्नशिप पर पाबंदी कहते हैं कि कुलपति कुठियाला के काले कारनामे की  फेहरिस्त काफी लंबी है। क्या ऐसे कुलपति को अपने पद पर विवि में बने रहने का कोई हक होना चाहिए   कदापि नहीं तो हमारी लड़ाई जारी रहेगी

कुठियाला हटाओमाखनलाल बचाओ

 का नारा हम सब बुलंद करना ही होगा।


... और #लड़ाईजारीहै 

कुठियाला हटाओ, माखनलाल बचाओ : तीसरी किस्त

#savemcu #savejournalism #लड़ाईजारीहै


यूनिवर्सिटी से पासआउट होने के बाद लगातार आठ साल से पत्रकारिता के फील्ड में हूं। यूनिवर्सिटी में आने से पहले रिपोर्टिंग कीफिर डेस्क पर वर्किंग यूनिवर्सिटी के उन दिनों को बहुत मिस करते हैं। वहां के लेक्चर अटेंड करना लैब जर्नल विकल्प को निकालने का अनुभव अलग-अलग फील्ड के नामी लोगों से मिलने-सीखने को अवसर मिला। देशभर के बड़े मीडिया में कार्यरत हमारे सीनियर्स से मिलने बात करने का मौका मिला। माखनलाल विवि के ताजा विवाद के बाद हम सबकी चिंता का विषय यही है कि क्या यूनिवर्सिटी की आने वाली पीढ़ी इन खूबसूरत लम्हों को जी पाएगी।

पिछले चारपांच साल से पूरी तरह से भोपाल से दूर हूं। साल 2010 का विवाद दिल्ली में अमर उजाला में कार्यरत रहने के दौरान घटा। मगर इस सबसे कुछकुछ अंजान ही थे हम। क्योंकि उन दिनों सोशल मीडियाआज की तरह सबके पास नहीं था। कुलपति कुठियाला द्वारा एक एचओडी को एक संगीन आरोप लगाकर हटाना। घोर निंदनीय कृत्य था। और अब ताजा विवाद रोटेशन के नाम पर सीनियर लोगों के साथ ऐसा बर्ताव

... जारी (अगली किस्त में)

कुठियाला हटाओ, माखनलाल बचाओ : दूसरी किस्त

#लड़ाईजारीहै #savemcu #savejournalism
रेडियो एफएम आकाशवाणी छिंदवाड़ा ने मेरे अंदर जुनून पैदा किया। मीडिया में आने के लिए  प्रेरित किया। उन दिनों मैं हिंदी लिटरेचर से एमए प्रिवियस की पढ़ाई कर रहा था। साल था 2003 अचानक एक मित्र माखनलाल (एमसीयूजा पहुंचा। इधर मैं पत्रकारिता के पेशे से जुड़ता चला   गया। कॉलेज फंक्शन की खबरें बनाना और अखबारों में देना। फिर अनियमित रूप से लोकमत   समाचार से जुड़ गया। 
कई खबरें पब्लिश हुई और पत्रकार बनने की दिशा में आगे बढ़ गया एमए कम्पलीट होते ही 5 जुलाई, 2004 को भोपाल जा पहुंचा। पढ़ाई… पढ़ाई और लगातार पढ़ाई के बाद फिर तुरंत एडमिशन लेने का कोई इरादा नहीं था। सो स्वदेश न्यूजपेपर में नौकरी शुरू की। जॉब के दौरान कई लोगों से मिलना जुलना हुआ। 

आखिर कुछ शुभचिंतकों की सलाह पर साल 2005 में माखनलाल चतुर्वेदी विवि में एडमिशन ले लिया।उससे पहले भी कई पुराने पत्रकारों ने हमसे कहाभैया पत्रकार क्यों बनना चाहते होकुछ और कर लो। पढ़े-लिखे हो। लेकिन हम नहीं मानेक्योंकि हमें तो पत्रकार ही बनना था।

माखनलाल में एडमिशन लेने के बाद यहां के माहौल का पता चला। भोपाल शहर में यहांवहां कई बिल्डिंगों में बिखरें कमरों में लगने वाले डिपार्टमेंट और इनमें पढ़ने वाले स्टूडेंट्स ही पूरी माखनलाल यूनिवर्सिटी थी। 
एक बार का वाकया है मुझे किसी काम से -8 त्रिलंगाअरेरा कॉलोनी में यूनिवर्सिटी में जाना था। मिनी बस से उतरते ही मैंने लोगों से माखनलाल विवि का एडरेस पूछा। काफी मशक्कत करने के बाद ही मुझे विवि की बिल्डिंग का रास्ता मिला। मतलब साफ है कि आम लोग विवि की बिल्डिंग को नहीं उन कुछ कमरों में चलने वाले डिपार्टमेंट और उन काबिल स्टूडेंट्स के सहारे विवि को जानते थे आज भी कुछ नहीं बदला है। किसी कॉलेज और यूनिवर्सिटी की पढ़ाईवहां का माहौल और वहां से पढ़े बच्चों की काबिलियत ही सबसे ज्यादा मायने रखता है।

... जारी (अगली किस्त में)