Sunday, August 26, 2018

वाट्सएप ग्रुप में लेफ्ट का विकल्प कोई विकल्प नहीं होता...



ग्लोबल विलेज की तरफ कदम बढ़ाते हुए इस पोस्ट को जरूर पढ़े और विचार कीजिए...

*सोशल मीडिया खासकर वाट्सएप पर हमारा व्यवहार कैसा हो....*

गाँव और ग्रुप छोड़े नहीं जाते -
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दाल में कंकड़ की तरह नहीं, दाल की तरह रहें -
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ग्रुप हो या समाज, आपकी चरित्रावली भी लिखता है
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गाँव और ग्रुप छोड़े नहीं जाते।

गाँव में कुछ अच्छे तो कुछ ख़राब लोग भी होते हैं ,पर कुछ खराब लोगों के कारण हम अपना गाँव नहीं छोड़ देते।

गाँव की तरह ही  ग्रुप में भी सब एक जैसे लोग नहीं होते।उसमें कुछ साक्षर ,कुछअर्द्ध शिक्षित ,कुछ शिक्षित , कुछ उच्च शिक्षित होते हैं। ग्रुप चाहे कर्मचारियों या शासकीय कर्मचारियों का ही क्यों न हों ,उसमें भी हर स्तर और हर प्रकार के कर्मचारी और अधिकारी होते हैं। स्पष्ट है सबका स्तर ,सबकी सोच ,सबका विचार रखने का तरीका एक सा नहीं हो सकता। हर सदस्य की शिक्षा ,पद ,अनुभव ,कार्य क्षेत्र ,कार्य अनुभव अलग अलग  होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में हर सदस्य से स्तरीय पोस्ट की अपेक्षा करना न्यायसंगत और तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।  कुछ भाग्यशाली सदस्यों के पास स्मार्ट मोबाइल पहले से हैं और वे पहले से  व्हाट्सप्प पर सक्रिय है,अतः स्वाभाविक है वे उन पोस्ट से गुजर चुके हैं जिनसे नए सदस्य आज गुजर रहे हैं। अतः ऐसी स्थिति में पोस्ट का  दोहराव स्वाभाविक है। और पुराने सदस्यों का इस स्थिति में संयम बनाये रखना जरुरी है। पुराने जब नए का स्वागत करते हैं तो नए सम्मान की संस्कृति सीखते हैं और  पुराने उनसे सम्मान पाते रहते हैं। जो ऐसी स्थिति में सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं वे टिक जाते हैं और जो दाल में कंकड़ की तरह उनपके और अनघुले रह जाते हैं वे  बाहर फिक जाते हैं। 

इसे और अधिक स्पष्ट समझने के लिए इस वृतांत से गुजरना सुखद और समीचीन होगा -

एक 20 वर्ष का लड़का ट्रैन की खिड़की से बाहर झाँककर खेत ,पहाड़ ,नदी ,नाले ,पशु -पक्षी,आसमान ,बादल ,बारिश  देखता और ख़ुशी से छोटे बच्चे की तरह उछल पड़ता। उसकी हरकत देखकर बर्थ पर बैठे अन्य लोग लड़के के पिता से बोले- 20 साल का लड़का अभी भी किसी छोटे बच्चे की तरह हरकत कर रहा है इसका इलाज क्यों नहीं कराते ? लड़के का पिता बोला -जी ,इसका इलाज करा कर ही आ रहा हूँ। यह जन्म से देख नहीं पाता था। सौभाग्य से इलाज (ऑपरेशन) सफल रहा और आज यह पहली बार अपनी आँखों से देख पा रहा है। पहली बार आँखों से देखने की ख़ुशी वह अपने व्यवहार से साँझा कर रहा है।  जीवन में कई बार हमारे साथ भी ऐसा होता है हम बिना कुछ जाने विचारे किसी को कुछ कह देते हैं और जब वास्तविकता का पता चलता है तब हम माफ़ी माँगते हैं। पर कई बार माफ़ी भी काफी नहीं होती क्योंकि दिवार में ठोकी  गई कील निकाले जाने पर भी दिवार में छेद तो छोड़ ही जाती है।

अनुज श्री बलवंत कडवेकर ,श्री राजेश बारंगे ,श्री महेंद्र डिगरसे ,श्री रमेश भादे और इन जैसे और भी कई सजग सदस्य ग्रुप को एक गाँव, बल्कि कहें कि ग्लोबल गाँव बनाने में लगे हुए हैं तो कृपया उनके इस प्रयास को वृतांत के उस लड़के की  तरह गलत लेने से बचने का अनुरोध है ताकि ग्रुप बचा रह सके। ग्रुप बचा रह सका तो निश्चित ही भविष्य में कुछ सार्थक कर दिखाया जा सकेगा। लेफ्ट का विकल्प कोई विकल्प नहीं है। लेफ्ट हमारी कमजोरी है कि हम सामंजस्य बिठा पाने में सक्षम नहीं है। लेफ्ट करने वालों को आने वाले समय में ग्रुप के सदस्य जो जवाब देंगे उसकी आपके मन में कल्पना भी नहीं होगी। ग्रुप हो या समाज आपकी चरित्रावली भी लिखता है। सादर।

*वल्लभ डोंगरे ,सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।*