Sunday, November 27, 2016

युवा कवयित्री विभूति की नोटबंदी पर कविताएं- 2

कालेधन को सफेद बनाने के जुगाड़ पर लिखी ये कविता...

जुगाड़ ही लगाना है तो सही जगह लगाओ

जुगाड़ ही लगाना है तो सही जगह लगाओ
आम आदमी की तकलीफ देखी नहीं जा रही
तो उठो मदद के लिए हाथ आगे बढाओ
युवा कवयित्री विभूति दुग्गड़ मुथा

ये डर है जो दिख रहा है
गुस्सा दिखा के अंदर कोने में छुप रहा है
आप जानते है जो लाइन अभी शुरू हुई है वो ख़तम नहीं होगी
आप अच्छी तरह जानते हैं ये लाइन यहां खत्म नहीं होगी



अब जो बदलाव की हवा चली है वो
अपना रुख नहीं बदलेगी
कौन सा डर है जो छुपा रहे हो
अराजकता कह कर अंदर
कौन सी चिंता है जो दबा रहे हो
नेता डर रहा है धन कैसे बनाएगा
इलेक्शन में भीड़ कैसे जुटाएगा
बाबू डर रहा है ऊपर की इनकम कैसे कमाएगा
बिज़नेसमैन डर रहा है टैक्स कैसे बचाएगा
आतंकवादी डर रहा है
दहशत कैसे फैलाएगा

ये क्या कम है कि वादी में आज शांति है
पत्थर फेंकने वालों के मन में अशांति है

हम एनआरआई लोग जब दूसरे देशों में रहने जाते हैं
लाइनों में खड़े होकर ही कह जाते हैं
अपने देश में होते तो जुगाड़ लगा लेते
ले देके काम निकलवा लेते

अब डर है घर जाके भी लाइन में खड़े होना होगा
सालों की आदत को अब बदलना होगा
जुगाड़ ही लगाना है ना
तो सही जगह लगओ
आम आदमी की तकलीफ देखी नहीं जा रही
तो मदद के लिए हाथ आगे बढाओ

कुछ करना है तो हल बताओ,
दुखती रग को और मत दबाओ

फिर वही हाल है
ब्लैम गेम का सारा धमाल है
नेता चिल्ला रहा है रोलबैक- रोलबैक
आम आदमी तिलमिला रहा है-नीड कैश, नीड कैश

काश एक स्कीम होती
50 दिन बार्टर एक्सचेंज की थीम होती
बर्तन के बदले सब्ज़ी
सब्ज़ी के बदले चावल
फिर कहां है कैश का सवाल
सोचो ऐसे कितने आइडियाज होंगे
50 दिन यूं ही कैश के बिना निकल जाएंगे

जुगाड़ ही लगाना है ना तो सोलूशन्स बताओ
आम आदमी की तकलीफ देखी नहीं जा रही
तो उठो मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाओ

जिसके पास ग्रॉसरी है
कुछ दिन सस्ती बेच दो
उधार के नए अकाउंट खोल दो
जो पैसे नहीं दे पा रहा
उसे 50 दिन का टाइम दे दो
धार्मिक स्थलों में ढेरों चिल्लर है
छोटे-छोटे नोट पेटियों में बंद हैं
चाहो तो उन्हें गरीबों में बंटवा दो
छोटे दुकानदारों को दिलवा दो
कुछ करना है तो सोलूशन्स बताओ

जुगाड़ लगाना है तो सही जगह लगाओ

सुना है बंगलूरू में कोई फ्री पिज़्ज़ा बांट रहा है
पंजाब में लाइन पे खड़े लोगों को चाय पिला रहा है
बॉम्बे में चना बांट रहा है
ऐसी बातें न्यूज़ चैनल वाले कभी तो दिखाओ
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं
दिखाना है तो दोनों तरफ दिखाओ
अपना उल्लू सीधा करने के लिए न्यूज़ चैनल मत चलाओ

जुगाड़ ही लगाना है ना तो सही जगह लगाऒ
आम आदमी की तकलीफ देखी नहीं जा रही
तो मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाओ

विभूति दुग्गड़ मुथा
https://www.facebook.com/poetrywithpurposebyvibhuti/

विभूति का सवाल : देश बदल रहा है, आप कब बदलोगे...

युवा कवयित्री विभूति दुग्गड़ मुथा
  • दुबई में रह रहीं रायपुर की युवा कवयित्री विभूति मुथा की कविताओं ने लोगों के दिलों को छुआ
  • लोगों ने कविताओं के वीडियो को वाट्सएप, फेसबुक और यूट्यूब पर खूब शेयर किया
रामकृष्ण डोंगरे

रायपुर। नोटबंदी के पक्ष में सोशल मीडिया पर कई कविताएं काफी वायरल हो रही हैं। इनमें से कुछ कविताएं हमारे शहर की मूल निवासी युवा कवयित्री विभूति दुग्गड़ मुथा की भी हैं। उनकी ज्यादातर कविताएं अभी वीडियो के रूप में ही मौजूद हैं। देशभर में सबसे ज्यादा शेयर हो रही उनकी कविता, बदलाव भी चाहते हैं और बदलना भी नहीं चाहते...को अब तक डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों ने देखा है। उनके यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज से लोग वीडियो डाउनलोड करके शेयर कर रहे हैं।
केंद्र सरकार के विमुद्रीकरण के फैसले को लेकर लोगों में उम्मीद जगाने वाली इन कविताओं ने लोगों के दिलों को छू लिया है। उनकी कुछ कविताओं की बानगी देखिए- जुगाड़ लगाना है तो सही जगह लगाओ, क्या-क्या बंद करोगे, लोगों की आवाज कैसे बंद करोगे, नहीं मैं नेता नहीं बनना चाहती, देश बदल रहा है, आप कब बदलोगे....

छत्त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कलेक्टोरेट के पीछे स्थित रविनगर निवासी समाजसेवी विजय दुग्गड़ और साधना दुग्गड़ की बेटी विभूति इन दिनों दुबई में रहती हैं। मोटिवेशनल ट्रेनर विभूति बताती हैं कि 8 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने जब इस फैसले का ऐलान किया तो देशभर में काफी चर्चाएं होने लगीं। इनमें दोनों तरफ से लोगों की प्रतिक्रिया आ रही थी। मुझे लगा कि पहली बार हमारे देश में किसी नेता ने इस दिशा में गंभीरतापूर्वक सोचा है। तब मैंने 12 नवंबर को इस पर पहली कविता लिखी- बदलाव भी चाहते हो और बदलना भी नहीं चाहते... इस कविता को हजारों लोगों ने पसंद किया। मेरे फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल पर लोगों के काफी अच्छे कमेंट्स आए। इसके बाद मैंने कई कविताएं लिखीं।

बुजुर्ग सीए ने फोन करके आशीर्वाद दिया
विभूति ने बताया कि उनसे देश के कई शहरों से लोग संपर्क कर रहे हैं। अहमदाबाद के एक बुजुर्ग सीए ने उन्हें फोन करके कहा कि बिटिया आपकी कविता ने मुझे झकझोर दिया है। आप लोगों को प्रेरित कर रही हैं। मेरी शुभकामनाएं और आशीर्वाद आपके साथ है। वे कहती हैं कि अहमदाबाद, हैदराबाद, बेंगलूरू, जयपुर, रायपुर, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई,वडोदरा से लोग वाट्सएप के स्क्रीनशॉट टैग कर रहे हैं। फेसबुक मैसेंजर पर भेज रहे हैं।

बेटी ने देश के लिए लिखा, बहुत खुश हूं
विभूति के पिता विजय दुग्गड़ कहते हैं, बेटी ने दुबई में रहकर भी देश के माहौल को लेकर सोचा और अच्छी कविताएं लिखीं, मैं बहुत खुश हूं। हमें गर्व है। मैंने विभूति का वीडिया अपने मित्रों को भी भेजा है, सभी उसे पसंद कर रहे हैं।

2004 से लिख रहीं कविताएं
मोटिवेशनल कविताओं के सफर के बारे में विभूति ने बताया कि उन्होंने 2004 से कविताएं लिखना शुरू किया। इसकी प्रेरणा उन्हें अपने कॉलेज में एक सहपाठी से मिली। उनके यूट्यूब चैनल को 2 हजार 62 लोगों ने सब्सक्राइब किया है। बदलाव वाली कविता को डेढ़ लाख से ज्यादा पेज व्यू मिले हैं। वहीं, जुगाड़ वाली कविता को अब 50 हजार लोगों ने पसंद किया है।
  1. यूट्यूब चैनल को 2062 लोगों ने सब्सक्राइब किया है।
  2. बदलाव वाली कविता को डेढ़ लाख से ज्यादा पेज व्यू मिले है।
  3. जुगाड़ वाली कविता को अब 50 हजार लोगों ने पसंद किया है।
  4. सभी कविताओं को अब तक चार लाख से ज्यादा लाइक-कमेंट्स।
विभूति का फेसबुक पेज
https://www.facebook.com/poetrywithpurposebyvibhuti/

दैनिक भास्कर रायपुर में रामकृष्ण डोंगरे की रिपोर्ट, 27 नवंबर, 2016

युवा कवयित्री विभूति दुग्गड़ मुथा की नोटबंदी पर कविताएं : 1

युवा कवयित्री विभूति दुग्गड़ मुथा
बदलाव भी चाहते हैं और बदलना भी नहीं चाहते
ये कैसी चाहत है,

सालों के बाद एक नेता आया
जो बोला, वो कर दिखाया
125 करोड़ लोग हैं 125 नहीं

हां, तो मैं क्या कह रही थी
सालों बाद एक नेता आया जो बोला वो कर दिखाया
देश तो ठीक ही था 60 साल पहले भी
लोग बदल जाते तो बात होती
खुद को सम्मान दो तो सम्मान मिलेगा
गलत को सही बता के कब तक खोटा सिक्का चलेगा

चलता है थोड़ा बहुत ऊपर नीचे
चला लेंगे कुछ ले देके
आदत सी पड़ गई थी काले धन की
ऊपर की इनकम की
झटका मिला देश हिला
पर अब भी सब परेशां हैं
सफाई की कीमत दे के
सब हैरां हैं

न चाहते हुए भी धन जला रहे हैं लोग
नोटों की गड्डियां गंगा में बहा रहे हैं लोग

बदलाव भी चाहते हैं
और बदलना भी नहीं चाहते, ये कैसी चाहत है

मन नहीं, मानसिकता बदलनी होगी

बदलाव की कीमत हमें भी कुछ तो चुकानी होगी

(भारतीय मूल की दुबई निवासी युवा कवयित्री की कविता के संपादित अंश)