Tuesday, May 27, 2008

नहीं रहे मयाराम काका

नाटकों में दमदार रोल करने वाले मयाराम काका नहीं रहे ...
भाऊ की तरह ही चल बसे दूध डेहरी वाले मयाराम काका


सोमवार को छोटे भाई (रामधन) से मोबाइल पे बात हुई ...
बता रहा था कि भाऊ की तरह ही दूध डेहरी वाले मयाराम काका भी चल बसे ...
भाऊ यानी हमारे पिताजी। मतलब मयाराम काका का रविवार 25 मई को निधन हो गया .

मुझे पिताजी का अचानक चले जाना बरबस याद हो आया ...
तारीख थी 2006 के नवम्बर महीने की 15 ।मैं दो- एक दिन पहले ही दिल्ली से भोपाल लौटा था ...
मेरे मोबाइल पर फोन आया कि जल्दी घर आ जाओ भाऊ सीरियस है ...
बाद में सब कुछ साफ हो गया ...पापा को अटैक आया था ...मैं दूसरे दिन घर पंहुचा था ...

पूरे गाँव में कई दिनों तक चर्चा होती रही कि फंला आदमी कैसे अचानक चल बसे ...
गांवों - देहातों में किसी को हाट अटैक आना कुछ समय पहले तक सुनाई नहीं देता थामगर अब अक्सर अटैक आने की खबर सुनने को मिल जाती है...

इस बार भी मयाराम काका के चल बसने की बात पर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है ...
मयाराम काका नाटकों में यादगार काम करते थे ...बचपन में कई नाटक रात -रात भर जागकर देखे थे ... परिवार के साथ अपने गाँव में नाटक देखने जाते थे ...मयाराम काका का हरेक नाटक में दमदार रोल होता था ... उनकी आवाज दूर -दूर तक गूंजती थी ...

मयाराम काका हमेशा राजा का रोल करते थे ... द्रोपदी चीर हरण , भरत -मिलाप जैसे कई नाटकों वे हमेशा लीड रोल करते थे ... वैसे एक इन्सान के रूप भी मुझे हमेशा याद आते रहेगें ...
पड़ोसियों के बीच विवाद होना कोई नई बात होती ॥ मगर उनका स्वभाव इतना अच्छा था कि कभी किसी से कोई विवाद या झगड़ा रहा हो ऐसा मुझे याद नहीं आता ...उनके परिवार में पत्नी और चार बच्चे है ...

गांवों में जल्दी ना पता चल पाने बीमारी - हाट अटैक ने मयाराम काका की भी जान ले ली ।

आख़िर हाट अटैक का पता क्यों नहीं चल पाताकैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के ताजा शोध में पता चला है की 50 फीसदी लोगों को मालूम ही नहीं हो पाता है कि उन्हें हाट अटैक जैसी गंभीर बीमारी है ...

इस शोध में यह भी खुलासा किया गया है कि ...दिल के अगल -बगल में दर्द या दूसरी अन्य बीमारियों का वे समझ ना पाने के कारण इलाज नहीं करा पाते ...

मयाराम काका और पिताजी के प्रति सच्ची श्रदांजलि यह होगी कि
गाँव के लोग हाट अटैक के बारे सचेत हो जाए .

4 comments:

Udan Tashtari said...

मयाराम काका और पिताजी को श्रदांजलि एवं नमन.

कमलनाथ जी से मिलकर एक अभियान चलवा दिजिये वहाँ, हृदय रोगों की प्रति जागरुकता का. अगर मेरे लायक कुछ हो, तो कहें. बहुत साधुवादी कार्य होगा.

अमिताभ said...

मयाराम काका के निधन की सूचना एक दुखद सन्देश है . इश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे ....ये बेहद ज़रूरी है अब हार्ट अटैक के विषय में छोटे छोटे देहातों में भी चेतना फैलायी जाये .मयाराम काका मंच पर दमदार अदाकार थे ..उनके निधन का मुझे भी बेहद दुःख है ....इस घडी में मैं पूरी तरह आपके परिवार के साथ हूँ
ॐ शांति !! शांती!! शांती
अमिताभ

Amit K Sagar said...

इक़ मर्म को बयान करने के बाद जिस तरह आपने ज़ख्मों को मरहम के लिए सचेत किया है...प्रशंसनीय है. लोगों में जागरूकता बड़े, इससे बड़ी दूजी कोई श्रन्धांजलि शायद ही हो. आगे क्या लिखूं...
जितना पढा...
मेरा फसाना भी साथ-साथ चला
वो ज़ख्मों की तसीरों में ही मर गये...
वो ज़ख्म हर पल मेरे साथ-साथ रहा
लिफाफे को देखके मजमून समझ आया
यूँ मैंने हर्फ़ हर्फ़ पढ़ने से खुद को बचाया...


फिर से कहीं मेरी उदासी तुम्हारी आँखों में न आये...इसलिए ये हाल भी यहाँ उतरा...कहोगे कि "ग़म न करना, हम हैं ना?" ये शब्द मेरे लिए महज़ शब्द नहीं थे...जो भाव मेरे चहरे की हंसी लौटा गया.

यहाँ लिखना तो नहीं चाहिए था...पर कितने प्रयासों की बाद यहाँ आपाया
तो सोचा...हो न हो ये कागज़ भी बहुत खूब है...जो यहाँ मेरे इंतज़ार में था...
---
शुक्रिया
ultateer.blogspot.com

Chhindwara chhavi said...

इक़ मर्म को
बयान करने के बाद जिस तरह आपने ज़ख्मों को मरहम के लिए सचेत किया है...
प्रशंसनीय है.

लोगों में जागरूकता बड़े, इससे बड़ी दूजी कोई श्रन्धांजलि शायद ही हो.
आगे क्या लिखूं...

जितना पढा...

मेरा फसाना भी साथ-साथ चला
वो ज़ख्मों की तसीरों में ही मर गये...
वो ज़ख्म हर पल मेरे साथ-साथ रहा
लिफाफे को देखके मजमून समझ आया
यूँ मैंने हर्फ़ हर्फ़ पढ़ने से खुद को बचाया...

फिर से कहीं मेरी उदासी तुम्हारी आँखों में न आये...इसलिए ये हाल भी यहाँ उतरा...

कहोगे कि "ग़म न करना, हम हैं ना?" ये शब्द मेरे लिए महज़ शब्द नहीं थे...जो भाव मेरे चहरे की हंसी लौटा गया.

यहाँ लिखना तो नहीं चाहिए था...पर कितने प्रयासों की बाद यहाँ आ पाया

तो सोचा...
हो न हो ये कागज़ भी बहुत खूब है...जो यहाँ मेरे इंतज़ार में था...
---

शुक्रिया
अमित के सागर
ultateer.blogspot.com