Thursday, November 16, 2017

अधूरी शायरी : ये जग सोता है

#रोज_एक_शायरी

होता है अक्सर,
ऐसा भी होता है।
हम जागते है और
ये जग सोता है।

#रचना_डायरी #अधूरी_शायरी
रचना काल और स्थान : 11 नवंबर 2003, नागपुर

©® रामकृष्ण डोंगरे #तृष्णा तंसरी


MAKE JOKE OF : कानपुरिया कॉमेडी का नया अंदाज

⚡⚡ *कॉमेडी का नया अंदाज make joke of*⚡⚡

यूपी की भाषा बॉलीवुड से लेकर टेलीविजन इंडस्ट्री में छायी हुई है लेकिन अगर बात केवल कानपुर की करें तो इस शहर के मिजाज से लेकर लोकल भाषा का अंदाज सबसे जुदा है। इन दिनों सोशल मीडिया पर कनपुरिया भाषा में बने Make Joke Of  वीडियोस खूब छाये हुए हैं। कार्टून कैरेक्टर्स के मुंह से निकलते डायलॉग दर्शकों को एक अजीब सी खुशी देते हैं। तो *आइये आज जानते हैं यूट्यूब के पॉपुलर चैनल मेक जोक ऑफ के बारे में कुछ खास बातें...*

Make Joke Of  के यूट्यूब पर 507,890 सब्सक्राइबर हैं। जब कि हर एक वीडियो पर 4 लाख से ज्यादा व्यूज हैं। इस वीडियो को बनाने वाले कुछ कलाकार हैं जो कनपुरिया भाषा में एनिमेटेड वीडियो बनाकर सोशल मुद्दों पर तंज कसते हैं। 

मेक जोक ऑफ यूट्यूब चैनल 12 अक्टूबर 2016 में शुरू हुआ था। फेसबुक पर भी Make Joke Of  पेज को 43 हजार लोग फॉलो करते हैं। इन वीडियोज का कंटेंट ओरिजिनल और सिंपल होता है. लेकिन अपनी असली इनोसेन्स कॉमेडी को देखकर दर्शक अपना पेट पकड़ने को मजबूर हो जाते हैं। 

इन आर्टिस्टों की खास बात यह है कि इन लोगों ने कानपुर की भाषा का तो इस्तेमाल किया है लेकिन अपने कंटेंट में कहीं भी अभद्र भाषा प्रयोग नहीं की। यही वजह है कि ये चैनल तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है। जब हमने इनसे सवाल-जवाब के लिए बातचीत करने की कोशिश की तो इन्होंने व्यस्तता का हवाला देते हुए सामने आने से साफ-साफ मना कर दिया। मेक जोक ऑफ के वीडियो बनाने वाले मेकर्स का कहना है कि ये दुनिया के सामने अपनी पहचान नहीं लाना चाहते। एक व्यक्तिगत समस्या के चलते ये सामने नहीं आना चाहते हैं।

*Make Joke Of  के लोकप्रिय वीडियो*

- इंटरव्यू का वीडियो
- स्कूल में सख्त टीचर 
- ट्यूशन टीचर का फनी इंटरव्यू 
- मकान मालिक-किरायेदार के फैमिली मसले 
- एंग्री बाबा
- डॉक्टर क्लीनिक

https://www.youtube.com/channel/UCvgteBQjoaxE0bhFkpu8qAw


Wednesday, November 15, 2017

अधूरी शायरी

हंसते भी रहे हम,
रोते भी रहे हम।
बारूद को सीने में दबा के,
सोते भी रहे हम।

#रोज_एक_शायरी #अधूरी_शायरी #रचना_डायरी
रचना काल : 7 अगस्त 2004
©® रामकृष्ण डोंगरे 'तृष्णा' तंसरी


15 साल बाद डॉ. दीपक आचार्य से एक यादगार मुलाकात

छिंदवाड़ा में डॉ. दीपक आचार्य के साथ। तस्वीर 25 नवंबर 2017.



छिंदवाड़ा में डॉ. दीपक आचार्य Deepak Acharya सर से 15 साल के बाद दुबारा यादगार और प्रेरक मुलाकात...

दीपक सर से डीडीसी कॉलेज में कल्चरल एक्टिविटी के बहाने मुलाकात या निकटता हुई। मैं बीए कर रहा था और सर वहां पर साइंस की क्लास को पढ़ाते थे। 

आप इन दिनों गुजरात में रहते हैं। आपने छिंदवाड़ा की रहस्यमय दुनिया पातालकोट पर काफी रिसर्च और काम किया है। आपने कई कंपनियों में साइंटिस्ट के तौर पर काम किया। फिर अभुमका हर्बल के नाम से खुद की कंपनी बना ली है।

छिंदवाड़ा और छिंदवाड़ा के लोगों के बारे में हमेशा सोचने वालों में से एक दीपक सर ने यहां के प्रतिभाशाली युवाओं का एक अॉनलाइन डाटाबेस तैयार किया है। जो
http://www.patalkot.com/chhindwara/ यहां पर मौजूद हैं।

आप प्रिंट और अॉडियो वीडियो मीडियम पर हर्बल ज्ञान को लेकर लिखते रहते हैं।


हमारी बैलगाड़ी : बचपन की सवारी...

बैलगाड़ी और हम

तस्वीर में नजर आ रही इस बैलगाड़ी से जुड़े वैसे तो कई किस्से है। लेकिन मैं आपको एक दो वाकये सुनाता हूं।

बचपन की बात है। जब मैं बमुश्किल पहली - दूसरी में पढ़ता रहा होगा. जैसा कि अक्सर होता है. अगर कोई भी बैलगाड़ी या कोई वाहन हमारे घर के सामने से गुजरता है। तो बच्चे अक्सर उसके पीछे लग जाते हैं। मतलब उस पर सवार हो जाते हैं। बैठ जाते हैं। तो यही कुछ हमारे साथ भी हुआ। शाम का वक्त था 4-5 बजे का. और हम कुछ बच्चे एक बैलगाड़ी के पीछे लटक गए।

बैलगाड़ी हमारे घर से बमुश्किल डेढ़ किलोमीटर दूर तारा गांव के लिए जा रही थी। तो बैल अपनी रफ्तार से बैलगाड़ी को लेकर दौड़ रहे थे।

बाकी बच्चे तो गाड़ी से उतर गए लेकिन मैं उतर नहीं पाया। डर के मारे कि उतरने पर चोट लग जाएगी। उसके बाद वह बैलगाड़ी जिस काम के लिए जा रही थी। यानी चारा भूसा या कड़बी लाने। उसको भरने के बाद शाम के 7 या 8:00 बजे तक को बैलगाड़ी वापस मेरे घर के सामने आई। तब तक मेरा रो रो कर बुरा हाल और पूरे घर वाले भी मुझे ढूंढ ढूंढ के परेशान हो गए थे।

तो यह बचपन का एक किस्सा। इसके अलावा गांव में बैलगाड़ी महिलाएं भी चलाती है। ये कोई नई बात नहीं है। कई जगह परंपरा के नाम पर उन्हें मना किया जाता है। हमारी दादी खुद बैलगाड़ी चलाकर खेत के पत्थर उठाकर फेंका करती थी बाहर।

एक बार बैलगाड़ी में हमारा एक भांजा चक्के के बीच में फंसते फंसते बचा था। तो गांव देहात की ये बैलगाड़ी सबसे भरोसेमंद सवारी गाड़ी होती है। जिस पर हर काम होता है। हालांकि इन दिनों सभी तरह के वाहन गांव में भी पहुंच गए हैं। इसलिए बाजारों में सब्जी लेकर जाना है। मार्केट- बाजार का काम अब बैलगाड़ी से कम ही होता.

अगर आपके पास भी कुछ किस्से हो। बैलगाड़ी से जुड़े। तो जरूर शेयर कीजिए।


Monday, November 13, 2017

आप मेरे बहुत ही प्यारे और नेकदिल दोस्त हो...

मेरी प्यारी सी दुनिया में परिवार के अलावा बहुत ही प्यारे और नेकदिल यार- दोस्त, शुभचिंतक और मार्गदर्शक शामिल हैं।

मुझे आप सभी से जुड़कर, मिलकर और आपके विचारों को पढ़कर बहुत अच्छा लगता है। कुछ मामलों में हमारे विचार अलग भी वो सकते हैं। मगर इसके चलते दिलों का रिश्ता कभी बिगड़ता नहीं।

इसके लिए आप सभी का शुक्रिया। धन्यवाद।

मैं सभी से एक ही बात कहना चाहता।
मेरे ही शब्दों में -

एक बस 'तुमसे' दोस्ती हो जाए,
फिर चाहे जमाने से दुश्मनी हो जाए।

©® *रामकृष्ण डोंगरे 'तृष्णा' तंसरी*

#डोंगरे_की_बात