Tuesday, October 24, 2017

दफ्तरों के चक्कर और घूसखोर सिस्टम ...



जमाना ऑनलाइन का, फिर भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर और घूसखोर सिस्टम ...

तो इंतजार ख़त्म। लीजिए दूसरी खबर... निराशा भरी।

जब भी मैं घर आता हूं. गांव के काम। बाहर के कागजी काम। मुझे या छोटे भाई को ही करना पड़ता है। जैसे- बैंक या तहसील के। इसी सिलसिले में आज मुझे एक अनुभव हुआ। इसे आप बुरा अनुभव भी कह सकते हैं। आज मैंने तहसील ऑफिस, कलेक्ट्रेट और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटे. हर जगह आपको धक्के खाने के अलावा कुछ भी नसीब नहीं होता. सब कुछ ऑनलाइन के जमाने में आपको किसी एक काउंटर पर। किसी एक ऑफिस में सही और पूरी जानकारी नहीं मिलती। जैस कि मैं प्लाट की रजिस्ट्री से जुड़ी नकल और संशोधन कॉपी निकलवाने था जो कि साल 2000 से पहले की है।

इसके लिए मैं तहसील ऑफिस गया। वहां से मुझे पता चला कि इसके लिए कलेक्ट्रेट के कमरा नंबर ** में आवेदन देना पड़ेगा। वहां जाने पर पता चला कि नहीं आपको इसके लिए रिकॉर्ड रूम में जाना पड़ेगा। रिकॉर्ड रूम में खंगालने पर मुझे जिस वर्ष का रिकॉर्ड चाहिए था वही गायब था।

इसके बाद मैंने वहां से कोर्ट कचहरी का रुख किया. 

कोर्ट कचहरी में एक जानकार वकील से जब मैंने अपनी समस्या शेयर की। तो उन्होंने कहा कि ठीक है। आरटीआई लगाकर हम इसकी सारी डिटेल निकलवा लेंगे। जहां से भी गड़बड़ी हुई है पता चल जाएगा। और इसकी उन्होंने मुझे मोटी फीस बताई। जो मेरे लिए अभी संभव नहीं थी।

अब आप समझ ही गए होंगे कि फीस क्या रही होगी। इस पर मैंने उनसे कहा कि पहले मैं अपने स्तर पर दोबारा प्रयास कर लेता हूं। फिर आपसे संपर्क करता हूं। उन्होंने मुझे सलाह दी कि आप दोबारा रिकॉर्ड रूम जाइए और वहां के चपरासी को 20 ₹, 30 रुपये दे दीजिए। वह आपको सारे खसरा नंबर दिखा देगा। आप उन में से अपना रिकॉर्ड देख लेना।

तो जनाब रिश्वत देने लेने का सिलसिला हर सरकारी दफ्तर के हर कर्मचारी को अच्छे से पता है। और वही आपको बताता भी। और आप मजबूर होते हैं। सामने वाले का उतरा हुआ चेहरा देखकर। उसका चेहरा देखकर आप मना नहीं कर पाते हैं।

इसके बावजूद सिस्टम के लोगों की लापरवाही या गलती के चलते मेरे कुछ पेपर अधूरे हैं। जिसकी वजह से अब मैं परेशान हो रहा हूं। मैं आज भी दफ्तर के चक्कर काटता रहा। कल भी दफ्तर के चक्कर काटूंगा। हो सकता है ऐसे ही कई दिन काटता रहूं। और मोटी फीस देकर अपनी समस्या का हल करवाऊं।

मैं पत्रकार हूं। लेकिन मैं पत्रकार बनकर कहीं कोई दबाव डालकर। क्या करवा सकता हूं। जब सिस्टम में गड़बड़ी है तो आप किसको क्या बोलिएगा। आम आदमी रोज परेशान होता है। लेकिन वह अपनी पीड़ा किसी से कह नहीं पाता। तो शायद हमको पता नहीं चल पाता। लेकिन परेशान हर कोई है। सरकारी लापरवाही से। सरकारी सिस्टम से।

सब कुछ ऑनलाइन हो जाए. फिर भी अगर इंसान अपनी गलतियां. यानी सरकारी कर्मचारी अपनी गलतियां करना नहीं छोड़ेगा. तो आम आदमी को कोई फायदा नहीं होने वाला. क्योंकि ऑनलाइन रिकॉर्ड में वही चीज अपडेट होती है. जो सरकारी दस्तावेजों में होती है. अगर दस्तावेजों में ही गड़बड़ी है. तो आम आदमी को वापस हार्ड कॉपी देखना ही पड़ेगा. और हार्ड कॉपी की गड़बड़ियों को झेलना ही पड़ेगा। अगर उनमें नाम कहीं छूट गया है। तो वह सालों तक परेशान होता रहेगा.

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