Saturday, May 31, 2014

काश ये रात न आए

काश ये रात न आए,
दिन निकले, सुबह हो जाए....

फिर सुबह हो जाए
बस रात न आए....

काश ये रात ना आए...

हम जागते हैं,
ख्वाबों के पीछे भागते हैं...

क्या मिलता है हमें,
क्यूं हम सो जाए...

काश ये रात न आए,
हम सुबह तक सो न पाए...

- (अपने गांव तंसरा में तृष्णा की कलम से, अप्रैल 2014)