काश ये रात न आए,
दिन निकले, सुबह हो जाए....
फिर सुबह हो जाए
बस रात न आए....
काश ये रात ना आए...
हम जागते हैं,
ख्वाबों के पीछे भागते हैं...
क्या मिलता है हमें,
क्यूं हम सो जाए...
काश ये रात न आए,
हम सुबह तक सो न पाए...
- (अपने गांव तंसरा में तृष्णा की कलम से, अप्रैल 2014)
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