Friday, March 8, 2013

कुछ बातें, कुछ लोग (पार्ट-सेवन)

एफआईआर भ्रष्टाचार का हथियार


पहले शॉट में-
नई दुनिया, भोपाल, 6 मार्च, 2007
नई दुनिया अखबार में प्रकाशित इस लेख को मैंने भोपाल में क्राइम बीट पर काम करने के दौरान हुए अनुभव के बाद ‌लिखा था। मैंने साल 2006 में राज्य की नई दुनिया में काम किया गया। इसमें मेरा ज्यादातर डेस्क वर्क ही होता था, लेकिन इसके अलावा मुझे क्राइम की खबरों में पंकज शुक्ला जी के साथ काम करना होता था। इस दौर की दिलचस्प बात यह है कि मेरे दोस्त और सीनियर मुझे कहते थे- कला से क्राइम तक डोंगरे जी। यानी पहले कला संवाददाता हुआ करता था फिर क्राइम रिपोर्टर। अब बात मुद्दे पर। जैसा कि अ‌र्टिकल की हेडिंग है- एफआईआर भ्रष्टाचार का हथियार, तो इसमें मैंने पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार, घूसखोरी को बढ़ावा देने में एफआईआर की भूमिका को सामने लाया था। 

अब विस्तार से- 
आर्ट एंड कल्चर की रिपोर्टिंग करते-2 अचानक मुझे क्राइम की खबरों से जूझना पड़ गया था। शुरूआत में क्राइम से जुड़ीं कई शब्दावली और बातें मुझे समझ नहीं आती थी। इसमें हमारे सीनियर अजय बोकिल जी, आनंद दुबे, पंकज शुक्ला आदि मेरी हेल्प करते थे। रिपोर्टिंग के दौरान मैंने दूसरे अखबारों के क्राइम रिपोर्टर बंधुओं से भी संपर्क बना लिया था। जिनमें खास थे- गुनेंद्र अग्निहोत्री (जागरण), सुनीत सक्सेना (भास्कर), आनंद पांडे (राज एक्सप्रेस), जुबैर कुरैशी (अग्निबाण), जुगलकिशोर (सीटीवी)। लगभग सभी से मेरी एक-दो साल पुरानी जान-पहचान थी। सुनीत सक्सेना जी के साथ मैंने स्वदेश में काम किया था, तो जुबैर भाई के साथ अग्निबाण में।