Thursday, November 16, 2017

अधूरी शायरी : ये जग सोता है

#रोज_एक_शायरी

होता है अक्सर,
ऐसा भी होता है।
हम जागते है और
ये जग सोता है।

#रचना_डायरी #अधूरी_शायरी
रचना काल और स्थान : 11 नवंबर 2003, नागपुर

©® रामकृष्ण डोंगरे #तृष्णा तंसरी


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