आज ही का एक किस्सा है। कुछ मिनटों पहले एक एटीएम के गार्ड को 5 रुपये दिए मैंने।
एटीएम से पैसे निकाले ही थे कि उसने कहा
- भैया 5 रुपये दो ना। चाय पीना।
पहले मैंने मना करते हुए कहा कि भाई पांच रुपये नहीं।
ये मैंने टालने के लिए भी कहा था और ये अंदाज लगाकर भी कि मेरे पास 5 रुपये खुल्ले नहीं है। लेकिन याद आ गया कि पर्स में पांच का नोट रखा है।
पहले साफ कर दूं कि भीख देने और भिखारियों को बढ़ावा देने के मैं सख्त खिलाफ हूं। इसलिए कभी सड़क पर, बाजार में, ट्रेन में, मंदिर के बाहर किसी भी बच्चे, बूढ़े या मासूम बच्चे को गोद में लेकर घूमने वाली महिला को 1-2 रुपये या 5-10 रुपये नहीं देता हूं।
मंदिर की दान पेटी इसमें अपवाद है। लेकिन वहां भी सिर्फ कभी-कभी या फैमिली के साथ होने पर ही।
अब मुद्दे की बात। उस गार्ड के साथ मैंने 5-10 मिनट बात की। उसको 5 रुपये देते -देते मैंने दो-तीन खतरनाक किस्से भी सुना दिए कि कैसे लोग दूसरों की दरियादिली, उदारता का फायदा उठाते है और भरोसा तोड़ते है।
एक किस्सा मेरे शहर छिंदवाड़ा का है। देखा-सुना। एक बुजुर्ग महिला बस स्टैंड के आसपास की सड़कों पर घूम-घूमकर अपना दुखड़ा सुनाते हुए पांच रुपये मांगा करती थी। भैया, मुझे घर जाना है। बस किराये के लिए 5 रुपये दे दो।
कई लोगों से पांच रुपये की 'वसूली' करने के बाद भी वो महिला कभी अपने घर नहीं पहुंची ! महीनों तक शहर में घूमती रहती थी।
एक किस्सा और है। मजदूर टाइप के कुछ लोगों ने, हम भूखे है खाने के लिए कुछ पैसे दे दो साहब। कहकर कुछ लोगों से 100-200 रुपये झटक लिए। उन साहब ने कहा- आप लोग अमुक पते पर चले जाइए। मैंने माताजी से कहकर घर पर आप लोगों का खाना बनवा दिया है।
मगर वे लोग घर नहीं पहुंचे। खाना बेकार हो गया। भरोसा टूट गया।
दुनिया में ज्यादातर लोग मदद मांगने के नाम धोखा देते हैं। बहरुपियों की इस दुनिया में आप क्या करेंगे। किसकी मदद करके आप खुद को दानी या मददगार साबित कीजिएगा।
(मेरी फेसबुक पोस्ट, 1 दिसंबर, 2015)
Friday, December 1, 2017
मेरी फेसबुक पोस्ट : बहुरूपिया को मदद या भीख क्यों
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