#लड़ाईजारीहै #savemcu #savejournalism
आखिर कुछ शुभचिंतकों की सलाह पर साल 2005 में माखनलाल चतुर्वेदी विवि में एडमिशन ले लिया।उससे पहले भी कई पुराने पत्रकारों ने हमसे कहा- भैया पत्रकार क्यों बनना चाहते हो, कुछ और कर लो। पढ़े-लिखे हो। लेकिन हम नहीं माने, क्योंकि हमें तो पत्रकार ही बनना था।
कई खबरें पब्लिश हुई और पत्रकार बनने की दिशा में आगे बढ़ गया…। एमए कम्पलीट होते ही 5 जुलाई, 2004 को भोपाल जा पहुंचा। पढ़ाई… पढ़ाई और लगातार पढ़ाई के बाद फिर तुरंत एडमिशन लेने का कोई इरादा नहीं था। सो स्वदेश न्यूजपेपर में नौकरी शुरू की। जॉब के दौरान कई लोगों से मिलना जुलना हुआ।रेडियो… एफएम आकाशवाणी छिंदवाड़ा ने मेरे अंदर जुनून पैदा किया। मीडिया में आने के लिए प्रेरित किया। उन दिनों मैं हिंदी लिटरेचर से एमए प्रिवियस की पढ़ाई कर रहा था। साल था 2003। अचानक एक मित्र माखनलाल (एमसीयू) जा पहुंचा। इधर मैं पत्रकारिता के पेशे से जुड़ता चला गया। कॉलेज फंक्शन की खबरें बनाना और अखबारों में देना। फिर अनियमित रूप से लोकमत समाचार से जुड़ गया।
आखिर कुछ शुभचिंतकों की सलाह पर साल 2005 में माखनलाल चतुर्वेदी विवि में एडमिशन ले लिया।उससे पहले भी कई पुराने पत्रकारों ने हमसे कहा- भैया पत्रकार क्यों बनना चाहते हो, कुछ और कर लो। पढ़े-लिखे हो। लेकिन हम नहीं माने, क्योंकि हमें तो पत्रकार ही बनना था।
माखनलाल में एडमिशन लेने के बाद यहां के माहौल का पता चला। भोपाल शहर में यहां- वहां कई बिल्डिंगों में बिखरें कमरों में लगने वाले डिपार्टमेंट और इनमें पढ़ने वाले स्टूडेंट्स ही पूरी माखनलाल यूनिवर्सिटी थी।
एक बार का वाकया है… मुझे किसी काम से ई-8 त्रिलंगा, अरेरा कॉलोनी में यूनिवर्सिटी में जाना था। मिनी बस से उतरते ही मैंने लोगों से माखनलाल विवि का एडरेस पूछा। काफी मशक्कत करने के बाद ही मुझे विवि की बिल्डिंग का रास्ता मिला। मतलब साफ है कि आम लोग विवि की बिल्डिंग को नहीं उन कुछ कमरों में चलने वाले डिपार्टमेंट और उन काबिल स्टूडेंट्स के सहारे विवि को जानते थे… आज भी कुछ नहीं बदला है। किसी कॉलेज और यूनिवर्सिटी की पढ़ाई, वहां का माहौल और वहां से पढ़े बच्चों की काबिलियत ही सबसे ज्यादा मायने रखता है।
... जारी (अगली किस्त में)
एक बार का वाकया है… मुझे किसी काम से ई-8 त्रिलंगा, अरेरा कॉलोनी में यूनिवर्सिटी में जाना था। मिनी बस से उतरते ही मैंने लोगों से माखनलाल विवि का एडरेस पूछा। काफी मशक्कत करने के बाद ही मुझे विवि की बिल्डिंग का रास्ता मिला। मतलब साफ है कि आम लोग विवि की बिल्डिंग को नहीं उन कुछ कमरों में चलने वाले डिपार्टमेंट और उन काबिल स्टूडेंट्स के सहारे विवि को जानते थे… आज भी कुछ नहीं बदला है। किसी कॉलेज और यूनिवर्सिटी की पढ़ाई, वहां का माहौल और वहां से पढ़े बच्चों की काबिलियत ही सबसे ज्यादा मायने रखता है।
... जारी (अगली किस्त में)
No comments:
Post a Comment