तुम कल जहाँ थी,
आज भी वहीं हो.
मगर
मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ,
वहां से कई कदम आगे.
अपनी एक नई भूमिका में,
अपने एक नए वजूद में.
तुम कल जहां थी
रहोगी आज भी वहीं
मगर
तुम्हारी नई भूमिका,
तुम्हारा नया वजूद,
तुम्हें एक नई पहचान देगा।
तृष्णा
भोपाल /२६ दिसंबर, २००४
1 comment:
sachin jee, 09jan, 07 ke mail me...
मित्र आपकी डायरी के कुछ पन्ने पलट आया हूं तफसील से फिर कभी...
खयालात की नाजुकी को अभी आपने भोथरा नहीं होने दिया है...
उम्मीद है आपके आगे के पन्नों पर भी इसी किस्म की गुलाबी हसरतें अपनी धींगा मस्ती करती दिल को बरमाती रहेंगी...
मेरी शुभकामनाएं...
आज रात भोपाल की सैर पर जा रहा हूं.
लौटकर आते हैं तो बतियाते हैं...
Sachin, Ludhiana
http://naiebaraten.blogspot.com
+919780418417
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