*मेरे पत्रकारिता जीवन की शुरुआत*...
*साल 2001 से 2004 तक की कुछ यादें*...
आज छिंदवाड़ा शहर में हूं. कल अचानक गांव में मुझे वो फाइल मिल गई जोकि मेरे पत्रकारिता जीवन के शुरुआती दौर की साक्षी और सबूत है। इसी फाइल की बदौलत सितंबर 2004 में बिना किसी जान पहचान और एप्रोच के भोपाल स्थित स्वदेश न्यूज़पेपर में नौकरी हासिल की थी। सैलरी थी अठारह सौ रुपए।
इस फाइल में पूर्व में लोकमत समाचार छिंदवाड़ा के लिए हाथ से लिखी गई खबरों की हार्ड कॉपी, प्रिंट खबरों की कटिंग भी लगी हुई है। स्वदेश भोपाल की बातें बाद में… अभी मेरे पत्रकारिता जीवन के शुरुआती दिनों को याद करता हूं.
तो मेरी यह फाइल जुलाई 2001 से अखबारों में खबरें लिखने के सिलसिले का दस्तावेज है। इसमें शुरुआत की खबरें, साहित्यिक संस्था "अबंध" के कार्यक्रमों की विज्ञप्ति, उसके बाद कुछ खबरें "इंटरनेट रेडियो श्रोता संघ" के प्रेस नोट थे। इसके अलावा डीडीसी कॉलेज और पीजी कॉलेज के कल्चरल प्रोग्राम का कवरेज जोकि छिंदवाड़ा के तमाम अखबारों में पब्लिश होता था। इनमें में दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक भास्कर जबलपुर, राज्य की नई दुनिया, लोकमत समाचार, स्वदेश, देशबंधु आदि तमाम नाम है।
संभवत अखबार के लिए मैंने पहली खबर 27 जुलाई 2001 को लिखी थी। जो कि अबंध साहित्यिक संस्था की ओर बतौर संयोजक स्वयं के द्वारा कारगिल विजय दिवस पर आयोजित कवि गोष्ठी की रिपोर्ट थी। इसमें मैंने कविता पाठ भी किया था।
लोकमत समाचार में मैंने बिना वेतन के काम किया था। यहां लिखी मेरी खबरों की लिस्ट के मुताबिक पहली खबर 25 जुलाई 2003 को लिखी गई थी और अंतिम खबर 29 अक्टूबर 2003 को फाइल की गई थी। सभी खबरों की हेडिंग, खबरों की कटिंग और हार्ड कॉपी जो कि मैं कार्बन पेपर लगाकर तैयार करता था, सबकुछ फाइल में संलग्न है। यानी टोटल 25 खबरों की हेडिंग तारीख के साथ लिखी है।
क्योंकि मैं ट्रेनी के तौर पर काम करता था. इसलिए सभी खबरें मैं खुद तय करता था. मुझे कोई असाइनमेंट नहीं देता था. शुरुआत की कुछ खबरें रेडियो यानी आकाशवाणी छिंदवाड़ा को लेकर रही. कुछ खबरें कॉलेज फंक्शन के कवरेज. इसके अलावा सांस्कृतिक, साहित्यिक कार्यक्रम और जन समस्याएं, जो मुझे नजर आती थी. उनको लेकर मैं खबर लिखता था.
मेरे साथ वरिष्ठ छायाकार बाबा कुरैशी जी फोटो के लिए जाते थे. उन्हें मैं बहुत मिस करता हूं. वे अब हमारे बीच नहीं है। इसके अलावा मेरे बॉस और बड़े भैया श्री धर्मेंद्र जायसवाल जी और ऑफिस के सीनियर पंकज जी और गुणेंद्र दुबे जी, जोकि उसी ऑफिस में बैठकर राष्ट्रीय एजेंसी के लिए खबर लिखते थे। उन सभी को याद करता हूं.
लोकमत समाचार में काम करते हुए मुझे दैनिक भास्कर में काम करने का ऑफर मिला था, जो कि श्री गिरीश लालवानी जी के जरिए आया था और मुझे परासिया तहसील में ब्यूरो चीफ बनाया जा रहा है। लेकिन मैंने पढ़ाई की वजह से अस्वीकार कर दिया। उस साल में एमए प्रीवियस हिंदी कर रहा था पीजी कॉलेज से.
स्वदेश भोपाल में पहली खबर 14 सितंबर 2004 को पब्लिश हुई थी - बाइलाइन स्टोरी - "आखिर क्यों उपेक्षित है हिंदी अध्ययन"। बाकी बातें फिर भी…
*इस पोस्ट या लेख के जरिए मेरे कई सीनियर, मित्र भी यादों में खोते लगा सकते है।*
Dharmendra Jaiswal , Ashish Jain, Sudesh Kumar Mehroliya Jagdish Pawar Digvijay Singh Apo Mgnrega Bhushan Kurothe Prashant Nema Prabhashankar Giri
©® *पत्रकार व ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे*
No comments:
Post a Comment