Sunday, February 24, 2013

कुछ बातें, कुछ लोग (पार्ट-फोर)

अल्पायु में ही दम तोड़ा रंगमंडल ने
पहले शॉट में-
अग्निबाण में जनरल रिपोर्टिंग और कवरेज के अलावा मुझे स्पेशल पेज के लिए कवर स्टोरी भी तैयार करनी पड़ती थी। साल 2005 के मई, जून, जुलाई और अगस्त, इन चार महीनों के दौरान मेरी कई कवर स्टोरी प्रकाशित हुई। इनमें प्रमुख थी- मोबाइल बंद होते नहीं, बच्चे भी सोते नहीं... , वीआईपी का आगमन, मुसीबत में आमजन..., उर्दू अकादमी में उर्दू क्लास और अल्पायु में ही दम तोड़ा रंगमंडल ने।

अब विस्तार से- 
सांध्य दैनिक अग्निबाण, भोपाल, 28 अगस्त, 2005
सांध्य दैनिक अग्निबाण, भोपाल, 28 अगस्त, 2005
अग्निबाण के 'भोपाल विशेष' पेज के लिए फुल पेज की कवर स्टोरी तैयार करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। उन दिनों आज की तरह सबकुछ इंटरनेट पर नहीं मिलता था। थियेटर से संबंधित कवर स्टोरी में मेरे दोस्त चिन्मय सांकृत और सभी रंगकर्मियों ने मेरी काफी सहायता की। मोबाइल बंद होते नहीं... के दौरान मुझे वरिष्ठ रंगकर्मी केजी त्रिवेदी, अभिनेत्री व निर्देशक बिशना चौहान ने मदद की।

अल्पायु में दम तोड़ा रंगमंडल ने... इस स्टोरी के लिए मैंने काफी मेहनत की। भोपाल के मशहूर रंगमंडल का पूरा इतिहास खंगालना पड़ा। रंगमंडल के सफर से रूबरू होना पड़ा। 1982 में मंचित घासीराम कोतकाल, मोहन राकेश के आधे-अधूरे, धर्मवीर भारती के अंधा युग, तुम सआदत हसन मंटो हो, बीवियों का मदरसा के मंचन की जानकारी जुटानी पड़ी। उर्दू अकादमी की स्टोरी के समय मुझे अकादमी के चेयरमैन और मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र साहब का भरपूर सहयोग मिला।

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