राज्य की नई दुनिया, भोपाल, 28 मार्च, 2006 |
पहले शॉट में-
राज्य की नई दुनिया में भगवान चंद्र घोष के उपन्यास-कर्मक्षेत्रे-कुरूक्षेत्रे की समीक्षा प्रकाशित होने का पूरा श्रेय आदरणीय विनय उपाध्याय जी को जाता है। यह समीक्षा राज्य की नई दुनिया में काम करने के दौरान ही छपी थी। विनय जी मुझे अग्निबाण के समय से ही जानते थे। मैं कई बार उनसे खबरों को लेकर बात करता था। राज्य की नईदुनिया ज्वाइन करने के बाद मेरा ज्यादातर काम डेस्क पर ही होता था, मगर वे मुझे इस तरह के कई असाइनमेंट भी दिया करते थे।
अब विस्तार से-
किताबों की समीक्षा लिखने का मुझे पहले से तर्जुबा था। छिंदवाड़ा में पाठक मंच की कई किताबों की मैंने समीक्षा की थी, जिनमें कविता, कहानी, उपन्यास और लेख सभी तरह की किताबें हुआ करती थी। समीक्षा लिखते वक्त काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। यानी सकारात्मक और नकारात्मक पहलु के बीच संतुलन बनाकर रखना होता है।
अफसोस इस बात का रहेगा कि मैं इस सिलसिले को बरकरार नहीं रख पाया। उपाध्याय जी ने मुझे कई लेखकों, साहित्यकारों और रंगकर्मियों के इंटरव्यू और स्टोरी आइडिया दिए थे मगर...। बीच-बीच में मैं पत्रकारिता की पढ़ाई में बिजी हो जाता था। भोपाल हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगा। जैसे छिंदवाड़ा। भोपाल के सभी लोगों को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा।
No comments:
Post a Comment