Wednesday, August 6, 2025

मेरी डिजिटल डायरी : bhopal City और "आसपास" की याद आ गई...

जब भी मन पुरानी यादों की गलियों में भटकता है, तो कुछ चित्र ऐसे उभरते हैं, जो समय के साथ और गहरे हो जाते हैं। एक ऐसी ही याद है मेरे उन दिनों की, जब मैं आकाशवाणी भोपाल में लंबे समय तक कार्यरत रहे वरिष्ठ उद्घोषक और लेखक श्री राजुरकर राज जी की संस्कृतिकर्मियों की संवाद पत्रिका “शब्द शिल्पियों के आसपास” और पड़ाव प्रकाशन में कार्यालय प्रबंधक के रूप में कार्यरत था।
दैनिक भास्कर रतलाम के स्थानीय संपादक, मेरे मित्र और बड़े भाई श्री संजय पांडेय Sanjay Pandey जी ने आज मुझे व्हाट्सएप पर इस मैगजीन का स्क्रीनशॉट भेजा तो मैं अचानक पुरानी यादों में खो गया। 

यह वर्ष 2004-2005 की बात है, जब भोपाल में दैनिक समाचार पत्र स्वदेश से मेरा पहला जॉब छूट गया था और मैंने 1,000 रुपये मासिक वेतन पर यहां काम शुरू किया था। वह दौर मेरे जीवन का एक अनमोल अध्याय था, जो न सिर्फ मेरे पेशेवर अनुभव को समृद्ध करता है, बल्कि मेरे भीतर की रचनात्मकता को भी जगाता है।
इसी दौरान मुझे देशभर के साहित्यकारों से जुड़ने का अवसर मिला, क्योंकि मैं देशभर से आने वाले आलेख, पत्र को पढ़ता था। यहां से हमने डायरेक्टरी भी तैयार की थी। इसमें साहित्यकारों, संस्कृत कर्मियों का नाम, पता, मोबाइल नंबर या लैंडलाइन नंबर दर्ज होता था। 

"शब्द शिल्पियों के आसपास" एक ऐसी पत्रिका थी, जो जो लेखक, साहित्यकार, संस्कृति कर्मियों के जीवन और उनके सुख-दुख के समाचार की जानकारी देती थी। उनकी नई किताबों का प्रकाशन, उनके जीवन की उपलब्धि, घटना दुर्घटना, बच्चों का जन्मदिन, विवाह जैसी छोटी-छोटी सूचनाओं इसमें होती थी। इसमें साहित्यिक आलेख और साक्षात्कार भी होते थे। 
राजुरकर जी का मानना था कि समाचार पत्र राजनेताओं या अपराध की खबरों से भरे होते हैं। इनमें साहित्यिक समाचारों के लिए स्पेस बहुत कम होता है। अगर किसी बड़े लेखक साहित्यकार का किसी कार्यक्रम में आना हुआ तो साहित्यिक समाचारों को स्पेस मिलता है लेकिन साहित्यकारों से जुड़े छोटे-छोटे समाचार तो अखबारों का हिस्सा बनते ही नहीं है। 

दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय उस वक्त नेहरू नगर स्थित उनके आवास पर ही था। वहां मुख्यतः पत्र, पत्रिकाओं का काम मुझे करना होता था। इसके अलावा अन्य और भी काम थे। मुझे लगता है इसी दौरान मैंने सबसे ज्यादा भोपाल के गली- मोहल्लों को अपनी एटलस साइकिल से नापा था। ज्यादातर अपनी साइकिल से ही मैं जाता था या कभी बस या टेम्पो का सहारा लेता था। 

कार्यालय में प्रवेश करते ही किताबों और कागज़ों की सौंधी खुशबू, साहित्यकारों की गहन चर्चाएं-ये सब मेरे रोज़मर्रा का हिस्सा थे। मैं, रामकृष्ण डोंगरे, वहां कार्यालय प्रबंधक के रूप में था, मगर मेरी भूमिका सिर्फ प्रशासनिक कार्यों तक सीमित नहीं थी। मैं उन शब्द शिल्पियों का साक्षी था, जो अपने विचारों से समाज को नई दिशा दे रहे थे।
इसी जगह मैंने पहली बार लेखक साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर जी के दर्शन किए थे। उस वक्त उनकी उम्र करीब 93 साल थी। मुझे उन्हें इतने करीब से देखकर भरोसा नहीं हो रहा था कि मैंनै उनकी कहानियों को बचपन में स्कूल की किताबों में पढ़ा था। 

पड़ाव प्रकाशन में काम करना अपने आप में एक साहित्यिक यात्रा थी। हर किताब, हर पांडुलिपि के पीछे लेखक की मेहनत और सपनों की कहानी होती थी। मैं कार्यालय के दैनिक कामों को संभालता, लेखकों से संवाद करता, और उनके रचनात्मक सफर का हिस्सा बनता। उन पलों में मैंने सीखा कि साहित्य सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि भावनाओं और विचारों का जीवंत दस्तावेज़ है। राजुरकर जी कहा करते थे कि जब वे छोटे थे, तो किताबें पढ़ने पर उन्हें ऐसा एहसास होता था कि यह किताबें कोई ईश्वर ही लिखना होगा। लगभग मेरी भी भावनाएं कुछ ऐसी थी। क्योंकि मैं मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव तंसरामाल में पला- बढ़ा था। 
आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो "आसपास की याद आ गई" । वो सुबहें, जब मैं कार्यालय में सबसे पहले पहुंचकर मेज़ पर बिखरी पांडुलिपियों को सहेजता। वो दोपहरें, जब लेखकों के साथ चाय की चुस्कियों के बीच साहित्यिक चर्चाएं होतीं। और वो शामें, जब नया अंक छपकर आता और हम सब उसकी सफलता पर गर्व करते। ये यादें मेरे लिए किसी ख़ज़ाने से कम नहीं। आज सोचता हूं तो लगता है कि भोपाल में बिताया मेरा समय, मेरे जीवन का सबसे अनमोल क्षण है। चाहे वह समय मात्र तीन-चार साल का क्यों ना रहा हो। 

“शब्द शिल्पियों के आसपास” और पड़ाव प्रकाशन ने मुझे न सिर्फ़ एक पेशेवर के रूप में गढ़ा, बल्कि एक इंसान के रूप में भी समृद्ध किया। आज भी जब मैं कोई किताब खोलता हूं या कोई कविता पढ़ता हूं, उन दिनों की गूंज मेरे कानों में सुनाई देती है। सचमुच, आसपास की याद आ गई... और मन फिर से उन गलियों में खो गया।

~~पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे~~

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Saturday, June 7, 2025

अखबार Newspaper सिर्फ कागज नहीं, गाँव Village की आवाज़ है, लेकिन क्या यह आवाज अब खामोश हो रही है


( किरदार काल्पनिक, लेकिन समस्या वास्तविक है) 

छत्तीसगढ़ में अखबार वितरण और समाचार संचालन: चुनौतियाँ, समाधान और डिजिटल क्रांति का प्रभाव

छत्तीसगढ़, अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए जाना जाता है, लेकिन समाचार पत्र वितरण और समाचार संचालन के क्षेत्र में यहाँ कई चुनौतियाँ हैं। हाल ही में बलौदा बाजार, सारंगढ़, और बिलाईगढ़ जिलों के दौरे के दौरान इन समस्याओं को करीब से समझने का अवसर मिला। इस आलेख में, हम इन चुनौतियों, उनके समाधान, और डिजिटल क्रांति के प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जिसमें कुछ काल्पनिक किरदारों के माध्यम से स्थानीय परिप्रेक्ष्य को शामिल किया जाएगा।

1. छत्तीसगढ़ में अखबार वितरण और समाचार संचालन की प्रमुख समस्याएँ

👉 प्रमुख समस्याएँ :

(i) योग्य एजेंसी संचालक का अभाव

समस्या: स्थानीय स्तर पर समाचार पत्र वितरण के लिए विश्वसनीय और जिम्मेदार एजेंसी संचालकों की कमी है। कई बार, संचालक व्यवसाय को गंभीरता से नहीं लेते या उनके पास पर्याप्त संसाधन और प्रबंधन कौशल नहीं होते।

✔️ उदाहरण: बलौदा बाजार के एक गाँव में, रामलाल, एक स्थानीय दुकानदार, ने अखबार वितरण की जिम्मेदारी ली थी। लेकिन उसकी दुकान के अन्य कामों के कारण वह समय पर अखबार नहीं पहुँचा पाता, जिससे ग्राहक नाराज़ हो गए।

(ii) वितरण के लिए कार्यबल की कमी

✔️ समस्या: घर-घर अखबार पहुँचाने के लिए युवाओं की कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में युवा या तो नौकरी के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं या इस काम को कम आय वाला और कम सम्मानजनक मानते हैं।

✔️ उदाहरण: सारंगढ़ के एक गाँव में, स्कूल के बाद अखबार बाँटने वाले लड़के, जैसे श्याम, अब मोबाइल रिपेयर की दुकानों में काम करना पसंद करते हैं, क्योंकि वहाँ आय अधिक है।

(iii) डिजिटल क्रांति का प्रभाव

✔️ समस्या: डिजिटल क्रांति ने समाचार उपभोग के तरीके को बदल दिया है। लोग अब मोबाइल फोन पर समाचार पढ़ना पसंद करते हैं, जिससे प्रिंट मीडिया की माँग कम हो रही है। इसके अलावा, एक पाठक के पास असीमित कंटेंट उपलब्ध है, जिससे यह तय करना मुश्किल हो गया है कि वह कौन सी खबर पढ़ेगा।

✔️ उदाहरण: बिलाईगढ़ के एक कॉलेज छात्रा रिया, ने बताया कि वह दिन में केवल 10-15 मिनट सोशल मीडिया पर समाचार पढ़ती है। अखबार पढ़ने का समय उसके पास नहीं है, क्योंकि वह ऑनलाइन कंटेंट को अधिक सुविधाजनक और त्वरित मानती है।

(iv) स्थानीय खबरों का अभाव

✔️ समस्या: ग्रामीण क्षेत्रों की छोटी-छोटी खबरें, जैसे गाँव में नल की समस्या या स्कूल की स्थिति, अखबारों तक नहीं पहुँच पातीं। बड़े समाचार पत्र अक्सर राष्ट्रीय और शहरी खबरों पर ध्यान देते हैं।

✔️ उदाहरण: गाँव के शिक्षक, गुरुजी (श्री हरिशंकर), ने शिकायत की कि उनके गाँव में बिजली की समस्या को कोई अखबार कवर नहीं करता, जबकि यह गाँव की सबसे बड़ी समस्या है।

2. समस्याओं के समाधान

इन समस्याओं का समाधान करने के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं:

▪️(i) योग्य एजेंसी संचालकों की भर्ती और प्रशिक्षण

✔️ समाधान: स्थानीय युवाओं, खासकर शिक्षित बेरोजगारों, को अखबार वितरण एजेंसी संचालन के लिए प्रोत्साहित करना। इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं, जिसमें समय प्रबंधन, ग्राहक सेवा, और वित्तीय प्रबंधन सिखाया जाए।

✔️ उदाहरण: बलौदा बाजार में, जिला प्रशासन और स्थानीय समाचार पत्रों ने मिलकर एक कार्यशाला आयोजित की, जिसमें 20 युवाओं को प्रशिक्षित किया गया। इनमें से 5 ने अपनी एजेंसी शुरू की, जिससे वितरण में सुधार हुआ।

▪️(ii) वितरण कार्यबल को प्रोत्साहन

✔️ समाधान: अखबार वितरण के काम को आकर्षक बनाने के लिए वेतन में वृद्धि, बोनस, और अन्य प्रोत्साहन (जैसे साइकिल या इलेक्ट्रिक स्कूटर) दिए जा सकते हैं। साथ ही, इस काम को सामाजिक रूप से सम्मानजनक बनाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं।

उदाहरण: सारंगढ़ में, एक समाचार पत्र ने अपने वितरकों को मासिक "बेस्ट डिलीवरी बॉय" पुरस्कार देना शुरू कर दिया, जिसके बाद कई युवा इस काम में रुचि लेने लगे।

(iii) डिजिटल और प्रिंट का समन्वय

✔️ समाधान: समाचार पत्रों को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के साथ तालमेल बिठाना होगा। अखबारों की वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर स्थानीय खबरें उपलब्ध कराकर पाठकों को आकर्षित किया जा सकता है। साथ ही, प्रिंट संस्करण में डिजिटल कंटेंट का प्रचार (जैसे QR कोड) किया जा सकता है।

✔️ उदाहरण: बिलाईगढ़ में, एक स्थानीय समाचार पत्र ने अपने अखबार में QR कोड छापे, जिन्हें स्कैन करने पर गाँव की खबरें ऑनलाइन पढ़ी जा सकती थीं। इससे युवा पाठकों की रुचि बढ़ी।

(iv) स्थानीय खबरों का संग्रह

✔️ समाधान: गाँवों में "सिटीजन जर्नलिस्ट" नेटवर्क बनाया जा सकता है, जिसमें शिक्षक, डॉक्टर, जनप्रतिनिधि, और छात्र स्थानीय खबरें भेजें। इसके लिए मोबाइल ऐप्स और व्हाट्सएप ग्रुप्स का उपयोग किया जा सकता है।
✔️ उदाहरण: गाँव की सरपंच, सावित्री बाई, ने एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया, जिसमें गाँव की समस्याओं की तस्वीरें और विवरण भेजे जाते हैं। ये खबरें स्थानीय अखबार में छपने लगीं, जिससे प्रशासन का ध्यान गया।

▪️(v) पाठकों की रुचि बढ़ाना

✔️ समाधान: अखबारों को पाठकों की रुचि के अनुसार कंटेंट डिज़ाइन करना होगा, जैसे स्थानीय कहानियाँ, युवाओं के लिए करियर गाइड, और बच्चों के लिए कॉमिक्स। साथ ही, स्कूलों और कॉलेजों में अखबार पढ़ने की आदत को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतियोगिताएँ आयोजित की जा सकती हैं।

✔️ उदाहरण: गुरुजी ने अपने स्कूल में "अखबार पढ़ो, सवाल बनाओ" प्रतियोगिता शुरू की, जिसमें बच्चे अखबार से सवाल बनाते हैं और पुरस्कार जीतते हैं। इससे बच्चों में अखबार पढ़ने की रुचि बढ़ी।

▪️3. डिजिटल क्रांति का प्रभाव और भविष्य की दिशा

डिजिटल क्रांति ने समाचार उद्योग को पूरी तरह बदल दिया है। छत्तीसगढ़ जैसे ग्रामीण-प्रधान राज्य में, जहाँ इंटरनेट की पहुँच बढ़ रही है, लेकिन अभी भी सीमित है, प्रिंट और डिजिटल मीडिया को साथ मिलकर काम करना होगा।

कुछ प्रमुख बिंदु:

▪️कंटेंट की अधिकता: एक पाठक के पास दिन में सीमित समय होता है, और वह चुनिंदा खबरें ही पढ़ता है। इसलिए, अखबारों को ऐसी खबरें देनी होंगी जो स्थानीय, प्रासंगिक, और आकर्षक हों।

▪️विश्वसनीयता: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर फर्जी खबरें एक बड़ी समस्या हैं। प्रिंट मीडिया अपनी विश्वसनीयता का लाभ उठाकर पाठकों को आकर्षित कर सकता है।

▪️हाइब्रिड मॉडल: भविष्य में, अखबारों को हाइब्रिड मॉडल अपनाना होगा, जिसमें प्रिंट संस्करण ग्रामीण क्षेत्रों के लिए और डिजिटल संस्करण शहरी और युवा पाठकों के लिए होगा।

▪️4. किरदारों के माध्यम से समाधान की झलक

(i) गुरुजी (श्री हरिशंकर, शिक्षक)

गुरुजी अपने गाँव के स्कूल में बच्चों को अखबार पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे हर हफ्ते "अखबार चर्चा" सत्र आयोजित करते हैं, जिसमें बच्चे स्थानीय समस्याओं पर लेख लिखते हैं। इन लेखों को स्थानीय अखबार में छापने के लिए भेजा जाता है, जिससे बच्चों का उत्साह बढ़ता है और गाँव की खबरें बाहर आती हैं।

(ii) सावित्री बाई (सरपंच)

सावित्री बाई ने गाँव में एक "खबर लहरिया" जैसा समूह बनाया, जिसमें महिलाएँ गाँव की समस्याओं को रिकॉर्ड करती हैं और अखबारों तक पहुँचाती हैं। उन्होंने गाँव के युवाओं को अखबार वितरण के लिए प्रेरित किया और इसके लिए स्थानीय कोऑपरेटिव से छोटे ऋण दिलवाए।

(iii) डॉ. रमेश (स्थानीय डॉक्टर)

डॉ. रमेश अपने क्लिनिक में मरीजों को स्वास्थ्य संबंधी खबरें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे स्थानीय अखबारों में स्वास्थ्य कॉलम लिखते हैं, जिससे पाठकों की रुचि बढ़ती है।

(iv) रिया (कॉलेज छात्रा)

रिया और उसके दोस्तों ने एक सोशल मीडिया पेज शुरू किया, जहाँ वे गाँव की खबरें पोस्ट करते हैं। स्थानीय अखबार ने इस पेज के साथ साझेदारी की, जिससे डिजिटल और प्रिंट दोनों माध्यमों से खबरें फैल रही हैं।

(v) श्याम (युवा वितरक)

श्याम ने अखबार वितरण को एक छोटा व्यवसाय बनाया। उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक छोटी डिलीवरी टीम बनाई और इलेक्ट्रिक स्कूटर का उपयोग शुरू किया, जिससे समय और लागत दोनों बची।

▪️5. निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ में अखबार वितरण और समाचार संचालन की चुनौतियाँ गंभीर हैं, लेकिन इन्हें स्थानीय समुदाय, तकनीक, और रचनात्मक रणनीतियों के सहयोग से हल किया जा सकता है। डिजिटल क्रांति ने नई चुनौतियाँ तो दी हैं, लेकिन साथ ही अवसर भी प्रदान किए हैं। अखबारों को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए स्थानीय खबरों पर ध्यान देना होगा, पाठकों की रुचि को समझना होगा, और डिजिटल व प्रिंट माध्यमों का समन्वय करना होगा।

जैसा कि गुरुजी कहते हैं, "अखबार सिर्फ कागज नहीं, गाँव की आवाज़ है।" इस आवाज़ को बुलंद करने के लिए सामुदायिक भागीदारी, तकनीकी नवाचार, और पाठकों के साथ गहरा जुड़ाव जरूरी है। यदि ये कदम उठाए गए, तो छत्तीसगढ़ के गाँवों में न केवल अखबार पहुँचेगा, बल्कि उनकी कहानियाँ भी दुनिया तक जाएँगी।

संदर्भ:
-: अखबारों के वितरण में बाधा डालना सूचना के अधिकार का हनन
-: खबर लहरिया की कहानी, जो ग्रामीण क्षेत्रों में समाचार संचालन का उदाहरण है
क्षेत्रीय दौरे के आधार पर व्यक्तिगत अवलोकन

नोट: यह आलेख काल्पनिक किरदारों और वास्तविक समस्याओं का मिश्रण है, जो छत्तीसगढ़ के संदर्भ में समाचार पत्र उद्योग की स्थिति को दर्शाता है।

©® कंटेंट क्रिएटर : रामकृष्ण डोंगरे 

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