Thursday, February 28, 2013

कुछ बातें, कुछ लोग (पार्ट-सिक्स)

सेहत के लिए सामाजिक स्थिति जिम्मेदार

नई दुनिया, भोपाल, 12 अप्रैल, 2006
पहले शॉट में-
भोपाल के नई दुनिया अखबार में प्रकाशित इस लेख को मैंने एक सेमिनार के दौरान लिखा था। मध्यप्रदेश के हिल स्टेशन पचमढ़ी में महिला स्वास्‍थ्य और मीडिया पर तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया था। इस लेख में महिला स्वास्‍थ्य की अनदेखी को रेखांकित किया गया है।

अब विस्तार से-
हमारे देश और समाज में महिला सुरक्षा की तरह महिला स्वास्‍थ्य को भी हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। मैंने इस आर्टिकल में अपने ही परिवार का उदाहरण सामने रखा था। इस लेख को प्रकाशित कराने के पीछे माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि के प्रोफेसर पुष्पेंद्र पाल सिंह की प्रेरणा रही। इसमें मेरे दोस्त हरीश बाबू और रामसुरेश सिंह का भी सहयोग रहा। जैसा कि लेख का शीर्षक है- सेहत के लिए सामाजिक स्थिति जिम्मेदार...। यानी महिलाओं की सेहत, स्वास्‍थ्य के साथ खिलवाड़ के लिए हमारी सामाजिक स्थिति और सोच सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। हम स्वास्‍थ्य के प्रति जागरूक नहीं होते हैं। महिला खुद अपनी सेहत के प्रति लापरवाह हो जाती है और उसे ऐसा बनाती है, समाज की सोच। गांवों में यह स्थिति ज्यादा देखने को मिलती है।

कुछ बातें, कुछ लोग (पार्ट-5)

राज्य की नई दुनिया, भोपाल, 28 मार्च, 2006
जीवन संघर्ष की गाथा


पहले शॉट में-
राज्य की नई दुनिया में भगवान चंद्र घोष के उपन्यास-कर्मक्षेत्रे-कुरूक्षेत्रे की समीक्षा प्रकाशित होने का पूरा श्रेय आदरणीय विनय उपाध्याय जी को जाता है। यह समीक्षा राज्य की नई दुनिया में काम करने के दौरान ही छपी थी। विनय जी मुझे अग्निबाण के समय से ही जानते थे। मैं कई बार उनसे खबरों को लेकर बात करता था। राज्य की नईदुनिया ज्वाइन करने के बाद मेरा ज्यादातर काम डेस्‍क पर ही होता था, मगर वे मुझे इस तरह के कई असाइनमेंट भी दिया करते थे।

अब विस्तार से-
किताबों की समीक्षा लिखने का मुझे पहले से तर्जुबा था। छिंदवाड़ा में पाठक मंच की कई किताबों की मैंने समीक्षा की थी, जिनमें कविता, कहानी, उपन्यास और लेख सभी तरह की किताबें हुआ करती थी। समीक्षा लिखते वक्त काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। यानी सकारात्मक और नकारात्मक पहलु के बीच संतुलन बनाकर रखना होता है।
अफसोस इस बात का रहेगा कि मैं इस सिलसिले को बरकरार नहीं रख पाया। उपाध्याय जी ने मुझे कई लेखकों, साहित्यकारों और रंगकर्मियों के इंटरव्यू और स्टोरी आइडिया दिए थे मगर...। बीच-बीच में मैं पत्रकारिता की पढ़ाई में बिजी हो जाता था। भोपाल हमेशा मेरे दिल के करीब रहेगा। जैसे छिंदवाड़ा। भोपाल के सभी लोगों को मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा।

Sunday, February 24, 2013

कुछ बातें, कुछ लोग (पार्ट-फोर)

अल्पायु में ही दम तोड़ा रंगमंडल ने
पहले शॉट में-
अग्निबाण में जनरल रिपोर्टिंग और कवरेज के अलावा मुझे स्पेशल पेज के लिए कवर स्टोरी भी तैयार करनी पड़ती थी। साल 2005 के मई, जून, जुलाई और अगस्त, इन चार महीनों के दौरान मेरी कई कवर स्टोरी प्रकाशित हुई। इनमें प्रमुख थी- मोबाइल बंद होते नहीं, बच्चे भी सोते नहीं... , वीआईपी का आगमन, मुसीबत में आमजन..., उर्दू अकादमी में उर्दू क्लास और अल्पायु में ही दम तोड़ा रंगमंडल ने।

अब विस्तार से- 
सांध्य दैनिक अग्निबाण, भोपाल, 28 अगस्त, 2005
सांध्य दैनिक अग्निबाण, भोपाल, 28 अगस्त, 2005
अग्निबाण के 'भोपाल विशेष' पेज के लिए फुल पेज की कवर स्टोरी तैयार करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। उन दिनों आज की तरह सबकुछ इंटरनेट पर नहीं मिलता था। थियेटर से संबंधित कवर स्टोरी में मेरे दोस्त चिन्मय सांकृत और सभी रंगकर्मियों ने मेरी काफी सहायता की। मोबाइल बंद होते नहीं... के दौरान मुझे वरिष्ठ रंगकर्मी केजी त्रिवेदी, अभिनेत्री व निर्देशक बिशना चौहान ने मदद की।

अल्पायु में दम तोड़ा रंगमंडल ने... इस स्टोरी के लिए मैंने काफी मेहनत की। भोपाल के मशहूर रंगमंडल का पूरा इतिहास खंगालना पड़ा। रंगमंडल के सफर से रूबरू होना पड़ा। 1982 में मंचित घासीराम कोतकाल, मोहन राकेश के आधे-अधूरे, धर्मवीर भारती के अंधा युग, तुम सआदत हसन मंटो हो, बीवियों का मदरसा के मंचन की जानकारी जुटानी पड़ी। उर्दू अकादमी की स्टोरी के समय मुझे अकादमी के चेयरमैन और मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र साहब का भरपूर सहयोग मिला।

कुछ बातें, कुछ लोग (पार्ट-थ्री)

कथाकार अलका सरावगी से विशेष बातचीत


पहले शॉट में-
सांध्य दैनिक अग्निबाण, भोपाल, 9 जुलाई, 2005
इवनिंग न्यूजपेपर अग्निबाण में रिपोर्टिंग के दौरान मुझे वरिष्ठ कथाकार अलका सरावगी जी का इंटरव्यू लेने का मौका मिला। भोपाल ‌स्थित भारत भवन में अलका जी ने मुझसे अलग से बातचीत की थी। इस खबर का दिलचस्प पहलू यह है कि इंटरव्यू के दौरान उन्होंने मुझसे कहा था- 'आपने ज्यादा कुछ पढ़ा नहीं है।' इसकी वजह यह थी कि मैं बहुत ज्यादा सवाल नहीं कर पाया था। सच कहा था अलका जी ने। हां, मैंने उनके कलिकथा ः वाया बाईपास, शेष कादम्बरी उपन्यास नहीं पढ़े थे। मैंने दूसरी महिला कथाकारों जैसे कृष्‍णा सोबती का 'मित्रो मरजानी', सूरजमुखी अंधेरे में, मृदुला गर्ग का कठगुलाब आदि जरूर पढ़े थे।

अब विस्तार से-
आर्ट एंड कल्चर की रिपोर्टिंग के दौरान मैंने झीलों की नगरी भोपाल के लगभग सारे 'भवनों' के चक्कर लगाए थे। इनमें भारत भवन, हिंदी भवन, रविंद्र भवन और मानस भवन आदि प्रमुख है। मैं अपनी हरक्यूलस साइकिल से ही रिपोर्टिंग किया करता था। यानी करीब दो साल तक मैंने साइकिल से ही रिपोर्टिंग की थी। इन सालों में मुझे अपने वरिष्ठ पत्रकार साथियों से काफी कुछ सीखने को मिला। इनमें विनय उपाध्याय (राज्य की नई दुनिया), वसंत सकरगाए (राज्य एक्सप्रेस), राकेश सेठी, सौरभ कुमार (जागरण), शकील जी (दैनिक भास्कर), बद्र वास्ती, अरुण कुमार (नवभारत) आदि शामिल है।

कुछ बातें, कुछ लोग पार्ट टू


चर्चा ऑफ दी रिकार्ड, चाय-पकौड़े ऑन द रिकार्ड

पहले शॉट में- 
सांध्य दैनिक अग्निबाण, भोपाल, 30 जून, 2005
अग्निबाण में ही प्रकाशित इस खबर को रोचक बनाती है इसकी हेडिंग। उन दिनों भोपाल के अप्सरा रेस्टारेंट में रोजाना दो-चार प्रेस कांफ्रेंस-प्रेसवार्ता हुआ करती थी। यह बात सभी जानते हैं कि प्रेस कांफ्रेंस में चाय-समोसा, खाना-पीना क्या स्‍थान रखता है। इस बात को जब मैंने एक किताब पर चर्चा के लिए आयोजित कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी के मुख से सुना, तो तुरंत दूसरे दिन के अखबार की हेडलाइन बना दी- चर्चा ऑफ दी रिकार्ड, चाय-पकौड़े द रिकार्ड।

अब विस्तार से- 
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के न्यू मार्केट का अप्सरा रेस्टारेंट प्रेस कांफ्रेंस-प्रेसवार्ता के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है, जो कि रविन्द्र भवन परिसर में स्थित है। झीलों की नगरी भोपाल को जानने वाले पत्रकार बंधु इस तथ्य से अंजान नहीं होंगे। मुझे अपने इवनिंग न्यूज पेपर के लिए रोजाना कुछ अलग हटकर न्यूज देनी होती थी। मेरे बॉस अवधेश बजाज जी का साफ निर्देश था कि सुबह के अखबार में जो खबर छप जाए, उसे हम नहीं छापेंगे। इसलिए मुझे आर्ट एंड कल्चर की खबरों को नया रंग देना होता था। यह खबर इसी का नतीजा था। वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहर तिवारी की किताब -हरसूद 30 जून- पर चर्चा के लिए आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में टेलीविजन पत्रकार राहुल देव और आदरणीय रामशरण जोशी मौजूद थे।

कुछ बातें, कुछ लोग पार्ट- वन


'पोंगा पंडित' ने पाए लाखों और कराए उपद्रव

पहले शॉट में- 

सांध्य दैनिक अग्निबाण, भोपाल, 5 अगस्त, 2005
किसी भी अखबार के फ्रंट पेज पर यह मेरी पहली बाइलाइन न्यूज थी। अखबार था इंदौर से प्रकाशित सांध्य दैनिक अग्निबाण का भोपाल एडीशन। हमारे बॉस थे मध्यप्रदेश के बेहद निडर और तेजतर्रार पत्रकार और संपादक अवधेश बजाज साहब। इस खबर का ‌दिलचस्प पहलू यह है कि संस्कृति विभाग के कई चक्कर काटने के बाद तैयार मेरी स्टोरी काफी लंबी हो गई थी, जिसे बजाज साहब ने खुद पेज पर एडिट करवाई थी। मुझे याद है कि इसकी यह हेडिंग भी उन्होंने ही ‌दी थी।

अब विस्तार से- 
अग्निबाण में मुझे आर्ट एंड कल्चर की रिपोर्टिंग का जिम्मा मिला था। यानी कला संवाददाता का। पत्रकारिता का यह मेरा चौथा संस्‍थान था। इससे पहले लोकमत समाचार छिंदवाड़ा, भोपाल से प्रकाशित स्वदेश न्यूज पेपर और एक साहित्यिक मैगजीन में काम करने का तर्जुबा था। भोपाल में अग्निबाण के शुरुआत से ही मैं इससे जुड़ा हुआ था। मशहूर रंगकर्मी हबीब तनवीर के इस नाटक 'पोंगा पंडित' पर स्टोरी का आइडिया मेरे वरिष्ठ साथी गौरव चतुर्वेदी ने दिया था। इस स्टोरी के दौरान मुझे पता नहीं था कि इसका प्लेसमेंट कहां और कैसे होगा। स्टोरी काफी लंबी लिख डाली थी, सो पहले पेज पर लगाने के दौरान हमारे बॉस ने ही इसे छोटी करवाई। मैं उस दौरान पीछे ही खड़ा था। उस समय वहां की रिपोर्टिंग टीम में गीत दीक्षित, गौरव चतुर्वेदी, विनोद उपाध्याय, आरती शर्मा, जुबेर कुरैशी, जितेंद्र सूर्यवंशी, हरीश बाबू आदि थे।

क्या वाजपेयी की तरह स्वीकार्य होंगे मोदी !

 बेशक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में हैं, लेकिन सवाल उठता है कि क्या वह एनडीए के घटक दलों को स्वीकार्य होंगे?
 
रामकृष्‍ण डोंगरे
आगामी लोकसभा चुनाव में अभी लगभग एक वर्ष का समय बाकी है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में व्यूह रचना शुरू हो चुकी है। सत्तारूढ़ कांग्रेस ने जहां राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष एवं चुनावी तैयारियों का प्रमुख बनाया है, वहीं भाजपा तीसरी बार गुजरात में जीत हासिल करने वाले नरेंद्र मोदी को बड़ी भूमिका सौंपकर एक दांव खेलना चाहती है। महंगाई एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में यूपीए सरकार की विफलता जग जाहिर है। भले ही कुछ कांग्रेसी नेता राहुल गांधी को करिश्माई नेता मानते हैं, लेकिन अब तक उनका करिश्मा देखने को नहीं मिला है। उधर, अगर एनडीए सत्ता में आता है, तो कौन प्रधानमंत्री बनेगा, इसे लेकर अब भी गठबंधन में विवाद बरकरार है।

खुद भाजपा में प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की लंबी कतार है, जिनमें नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, लालकृष्‍ण आडवाणी, राजनाथ सिंह के नाम प्रमुख हैं। लेकिन किसी एक नाम पर सहमति बनना अभी बाकी है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम की काफी चर्चा हो रही है, लेकिन एनडीए के घटक दलों के साथ-साथ भाजपा में भी इस पर काफी मतभेद हैंै। वोट बटोरने के लिहाज से भाजपा मोदी की अगुआई में चुनाव में उतर सकती है, लेकिन इससे एनडीए के बिखरने का खतरा है।

साफ है कि एनडीए के प्रमुख घटक दल जेडीयू को मोदी के नाम पर सख्त आपत्ति है। कुछ दिन पहले यशवंत सिन्हा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने की खुलकर वकालत की थी, जिस पर एनडीए के प्रमुख घटक दल जेडीयू ने सख्त नाराजगी जताई थी। उधर शिवसेना की भी पहली पसंद सुषमा स्वराज हैं। चूंकि भाजपा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खूब चलती है और संघ परिवार को मोदी के नाम पर आपत्ति नहीं है, इसलिए मोदी प्रबल दावेदार बनकर उभरे हैं। यशवंत सिन्हा के बाद कलराज मिश्र ने भी मोदी को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में सबसे आगे बताया है।

जहां तक नरेंद्र मोदी की बात है, तो उनके समर्थकों को लग रहा है कि इस बार की जीत उनके लिए दिल्ली का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। गुजरात विधानसभा चुनाव से ही उन्होंने अपने इरादे का संकेत देना शुरू कर दिया था। यही वजह थी कि विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार अभियान को उन्होंे खुद पर ही केंद्रित रखा। हर जगह मोदी बनाम कांग्रेस और अन्य के बीच मुकाबले का माहौल बनाया गया। पूरे प्रचार अभियान के दौरान पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति नगण्य थी। पार्टी के जो नेता उसमें शामिल थे, वे भी सहायक की भूमिका में ही थे। लिहाजा इस जीत से मोदी की छवि व्यापक बनकर उभरी है।

पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में व्याख्यान देते हुए भी मोदी ने भावी रणनीति का संकेत दे दिया कि गुजरात से दिल्ली की ऊंची उड़ान भरने में विकास और सुशासन के साथ यंग इंडिया का दिल जीतना ही उनका मूल सियासी मंत्र होगा। उन्होंने न केवल गुजरात के विकास का बखान किया, बल्कि युवाओं को भी खास अहमियत दी। जाहिर है कि मोदी अब देश भर में युवाओं के बीच अपनी बेहतर छवि पेश करेंगे।

बहरहाल युवाओं के बीच मोदी की लोकप्रियता बढ़ते देख भाजपा नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपने पर विचार कर रही है। इसके अलावा, उन्हें संसदीय बोर्ड में भी लाने की बात चल रही है। मौजूदा दौर में एनडीए को वाजपेयी जैसे सर्वमान्य नेता की कमी खल रही है। ऐसे में अगर भाजपा नरेंद्र मोदी को आगे करके चुनाव लड़ती भी है, तो सवाल उठता है कि क्या मोदी देश भर में वाजपेयी की तरह लोकप्रियता हासिल कर पाएंगे और क्या वह एनडीए को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में स्वीकार होंगे। क्योंकि विकास के तमाम दावों के बावजूद मोदी के ऊपर से 2002 के दंगे का दाग धुला नहीं है। खैर, यह देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए किसका नाम आगे करके अगले लोकसभा चुनाव में उतरता है।

(नोट- अमर उजाला कॉम्पैक्ट के आगरा, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, गोरखपुर समेत सभी संस्करणों में संपादकीय पेज पर 18 फरवरी, 2013 को प्रकाशित मेरा लेख।)