Saturday, April 28, 2018

पत्थलगड़ी की आग... आखिर सच क्या है


*झारखंड के बाद छत्तीसगढ़ के जिलों में भी फैली*

झारखंड के बाद छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में आदिवासियों के जनाक्रोश को इसी नाम से पुकारा जा रहा है। मामला है आदिवासी गांवों और जिलों में पत्थर गाड़ने और यह लिखने का कि अब हमारे इलाके में सिर्फ ग्रामसभा ही सबकुछ तय करेगी। मतलब सीधे सीधे भारतीय संविधान को मानने से इंकार।

मैंने चंद रोज पहले ही इस शब्द पर गौर किया। जब 22 अप्रैल को जशपुर के एक गांव में पत्थलगड़ी की घटना हुई। मामला झारखंड से निकलकर अब छत्तीसगढ़ तक पहुंचा है। हालांकि यहां 1996 में सबसे पहले पत्थलगड़ी हुई थी।

*आइए देखते आखिर पत्थलगड़ी है क्या*

पत्थलगड़ी शब्द नक्सलबाड़ी जैसा प्रतीत होता है। सभी जानते हैं कि नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है, जहां भाकपा के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 में सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की थी। जो वर्तमान में आतंकवाद जैसा खतरनाक रूप ले चुका है।
बात करते हैं पत्थलगड़ी की। विकिपीडिया के मुताबिक कम से कम ईसा पूर्व 10वीं शताब्दी में पत्थलगड़ी अस्तिव में था। इसके तीन प्रकार माने गए है। जिसमें मृतकों की याद में, आबादी और बसाहट की सूचना देने वाले, अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन और खगोल विज्ञान संबंधी जानकारी देने वाले पत्थर को गाड़ा जाता है, इसे ही पत्थलगड़ी कहा जाता है।

छत्तीसगढ़ में इस घटना ने राजनीतिक रंग ले लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल यानी 17 फरवरी 2018 को अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय ने जशपुर जिले के घोरगढ़ी में पत्थलगड़ी का उद्धाटन किया था। जिसका वीडियो भी वेबसाइट पर उपलब्ध है। हालांकि अब वे कह रहे हैं कि मैंने वहां पूजा-पाठ की थी। मगर मैं नहीं जानता था कि ये पत्थलगड़ी है।

इस मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि भाजपा ने अब इसका विरोध करते हुए उन इलाको में जनजागरण के लिए सद्भभावना यात्रा शुरू कर दी है। इसकी अगुवाई केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता विष्णुदेव साय कर रहे हैं। उन्होंने इसे सरकार के खिलाफ साजिश बताया है। उधर विपक्ष यानी कांग्रेस इसे सरकार की नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश के रूप में देख रही है। शनिवार को सद्भाभावना यात्रा के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं ने पत्थलगड़ी को तोड़ने की कोशिश है। इसके बाद आदिवासी और भाजपा कार्यकर्ताओं में विवाद और झूमाझटकी हो गई।

*तो फिर पत्थलगड़ी का सच क्या है*

यह पता लगाना वैसे पुलिस और प्रशासन का काम है। लेकिन आम नागरिक के नाते है हम इसी किसी घटना का समर्थन नहीं कर सकते । जो भारतीय संविधान के खिलाफ हो। मगर यह पता लगाना भी जरूरी है कि आखिर झारखंड के बाद बार्डर से लगे छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में पत्थलगड़ी की आग क्यों फैल रही है। क्या वाकई में उन गांवों के आदिवासियों के साथ कुछ गलत हुआ है। क्या निजी कंपनियों ने वहां की जमीन पर गैरकानूनी ढंग से कब्जा कर लिया है। या उन इलाकों में प्रशासन के अफसरों की ओर से ज्यादती की जा रही है। या वहां पर विकासकार्य बिल्कुल ठप है। जिस तरह से खबरों में आया कि वहां 2013 के बाद रोजगार गारंटी योजना का पैसा तक नहीं मिला है। आखिर क्या वजह है।

*क्या सच में नक्सलवाद जैसा कुछ है*

सरकार को यह पता लगाना चाहिए कि कहीं इन घटनाओं के पीछे कहीं आपराधिक तत्वों का हाथ तो नहीं है। यानी सीधा सीधा नक्सलियों या नक्सल समर्थक लोगों का। आखिर आदिवासी ग्रामीण क्यों निर्वाचित सरकार के खिलाफ जाने जैसा कदम उठा रहे  है। हालांकि उन्होंने ये भी साफ साफ कहा है कि हम सरकार के खिलाफ नहीं है। मगर हम ये भी चाहते हैं कि हमारे गांवों में जो कुछ भी हो, हम से यानी ग्रामसभा की परमिशन के बाद ही हो।

_*पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे के फेसबुक वॉल से*_


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