Sunday, June 4, 2017

किसान हड़ताल : किसानी के काम से दूर हो रहे युवा

यह सच है कि देश में खेती किसानी का रकबा लगातार घट रहा है. शहर से लगी या मेन रोड की जमीनें लगातार बेची जा रही। वहां पर कॉलोनियों खड़ी हो रही है.
हर किसान परिवार में खेती की तरफ लोगों का रुझान कम होता जा रहा है। हर घर के युवा प्राइवेट जॉब, सरकारी नौकरी के लिए शहरों की तरफ जा रहे हैं।
कोई भी किसान परिवार खुद अपने बच्चों को खेती किसानी के काम में झोंकना नहीं चाहता। क्योंकि खेती में लागत ज्यादा और मुनाफा कम होते जा रहा है।
एक ही तरह की सब्जियां और फसलें उगाने के कारण बाजार में उनका उचित दाम नहीं मिल पा रहा है.
इसके लिए जिम्मेदार कौन है. सरकार, सरकार की नीतियां और हम सब भी.

सारी पार्टियां खुद को किसानों की सरकार नाम से प्रचारित करती है. मगर वास्तव में किसानों के हित के लिए, उनके फायदे के लिए कोई कदम नहीं उठाए जाते. किसान सरकार की प्राथमिकता में कभी नहीं होते। इसी बात का रोना है.

किसान हड़ताल : सब्जियों को सड़क पर फेंकना...

सब्जियों को सड़क पर फेंकना... 
जानवरों को खेत में छोड़ देना...
वास्तविक किसान ये कब करता है... 
क्या आप जानते नहीं है???
जब आखिरी फसल होती है। यानी अच्छे दाम के समय आप कमाई कर चुके होते हैं। बेच चुके होते हैं।
जब रेट भी कम हो जाता है। तब किसान अपने मवेशियों को ही टमाटर जैसी सब्जियां खाने देते हैं।
ये विरोध होता है।
ये नहीं कि पहली फसल आई और 
आप जानवरों को छोड़ दो। 
शहर में ले जाकर सड़कों पर फेंक दो।
*गांव से शहर अपने खर्च पर ले जाकर वहां सब्जी फेंकने वाले या दूध फेंकने वाले किसान नहीं हो सकते।*

मुद्दा था। किसानों का आंदोलन जरूरी है। मगर तरीका सही नहीं है। सड़क पर दूध की नदियां बहाना।
छत्तीसगढ़ में जब पिछले दिनों सब्जियां फेंकी गई थी तब कुछ लोगों का कहना था कि किसान अपनी लागत और कमाई कर चुके हैं। इसलिए अब दिखावा कर रहे।
आखिरी फसल फेंक कर। विरोध दिखा रहे हैं। 
जबकि कमाई वे सारी कमाई पहले ही कर चुके हैं।
इसी तरह हम गांव वाले। दूध की एक बूंद भी बेकार नहीं जाने देते। फिर *वे कौन लोग है जो दूध के टैंकर को जबरन रोककर सड़क पर बहा रहे हैं* लोगों का मानना है कि वे गरीब किसान नहीं हो सकते हैं।
*इस पर भी बात होनी चाहिए*



किसान हड़ताल : किसानों की मांग जायज, मगर ये कैसा विरोध...

सड़कों पर दूध बहाना। दूध के टैंकर को जबरन रोककर सड़क पर दूध की बर्बादी। फल सब्जियों को सड़क पर फेंकना। विरोध का ये तरीका मुझे कतई उचित नहीं लगता। आप दूध को सड़क पर फेंक देते हो। आपको ऐसा करते वक्त जरा भी शर्म या झिझक नहीं होती। इस तरह का तत्काल रुकना चाहिए। जिस तरह से कानून बनाना, हड़ताल के समय सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर सजा का प्रावधान है। उसी तरह इस पर रोक और सजा दी जानी चाहिए।
अधिक जानकारी के लिए ये खबर पढ़े...
महाराष्ट्र में सरकार से बातचीत विफल होने के बाद 80 फीसदी किसान 1 जून 2017 से हड़ताल पर चले गए हैं। किसानों ने सब्जी व दूध बाजार में नहीं बेचने का फैसला किया है।
उनका दावा है कि हड़ताल के चलते शहरों में कृषि उत्पाद नहीं पहुंच सकेगा। इन सब के बीच किसानों ने मुंबई और सतारा में दूध सप्लाई के लिए जा रहे टैंकरों को रोक हजारों लीटर दूध सड़क पर बहा दिया।
किसानों की मुख्य मांगे
- राज्य में किसानों की कर्ज माफी।
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करें।
- खेती के लिए बिना ब्याज के कर्ज।
- 60 साल के उम्र वाले किसानों के लिए पेंशन योजना लागू करना।
- दूध के लिए प्रति लीटर 50 रुपए देने।

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