जेएनयू की होली : मदहोशी में भी होश में थे स्टूडेंटर्स
लड़के-लड़कियां गु्रप में नाच-गा रहे थे। उछल-कूद मचा रहे थे। लोगों ने अपनी अजीब-अजीब सी शक्लें बना रखी थी। जेएनयू में कई बातें गौर करने लायक थी। लड़के और लड़कियां सभी रंग और गुलाल में सराबोर थे। नशा भी किया था। मगर सभी होश में थे, सभी शालीनता से पेश आ रहे थे। लड़कियों ने अच्छी ड्रेस पहनी थी। फिर चाहे वे लड़कियां देसी रही हो, विदेशी रही हो, साउथ इंडियन या नार्थ-ईस्ट की।
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लौटते समय मेरे दिमाग में सवाल आया कि क्या छिन्दवाड़ा जिले से किसी ने जेएनयू में पढ़ाई की है। शायद नहीं... अगर की होगी तो ... डॉ. ब्राउन, भूतपूर्व प्रिंसिपल डीडीसी कॉलेज, बता सकते हैं। इस बारे में पता करना होगा। जेएनयू यानी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अच्छे अफसर, नेता, पत्रकार, विचारक और रणनीतिकारों की जन्मस्थली रही है। मैं इस बात से खुश था कि होली के बहाने मुकेश भाई ने मुझे जेएनयू की सैर करवा दी।
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संडे की शाम को अपने दोस्त मुकेश के रूम पर पहुंचा। उसका रूम साउथ डेहली में वसंत विहार के पास मुनरिका में है। रात को नौ बजे के आसपास उसने कहा, रामकृष्ण चलो, जेएनयू चलते हैं। और हम निकल पड़े। उसके साथ और दो-तीन दोस्त थे। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) उसके रूम से पास में ही है। मेन गेट से दाखिल होते ही गंगा ढाबा के सामने लड़कियों के हॉस्टल केपास ही मंच पर होली का प्रोग्राम चल रहा था। जेएनयू में कुल मिलाकर १६ हॉस्टल्स हैं। सभी हॉस्टल से एक-एक प्रतिभागी अपनी प्रस्तुति दे रहा था। दिमाग खाने वाले या चाटने वालों पर प्रोग्राम केंद्रित था। काफी देर तक हमने प्रोग्राम देखा। रात का खाना हम लोगों ने जेएनयू में किया। खाना काफी लजीज और स्वादिष्ट था। खाने के समय हमारे साथ दो शख्स और थे। एक महिला और एक पुरुष।
जेएनयू में पहुंचने पर ही मुझे कई नई बातें मालूम हुई। जेएनयू परिसर के ऊपर से हर एक-दो मिनट में प्लेन गुजरते हैं। जिससे काफी शोर होता है। छिन्दवाड़ा के रहने वाले मेरे दोस्त मुकेश भाई ने बताया कि जेएनयू में
एयरपोर्ट (इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडा) वाले इसके लिए काफी पैसा देते हैं। प्लेन रात को ज्यादा गुजरते हैं। दिन में प्लेनों की आवाजाही कुछ कम होती है। इसलिए क्लास के दौरान कोई डिस्टर्ब नहीं होता।
राजधानी दिल्ली की बड़ी यूनिवर्सिटीज की बात करें तो, जहां डीयू और जामिया यूनिवर्सिटी कैंपस दिन में अपने जलवे के लिए मशहूर हैं, वहीं जेएनयू कैंपस रात के जलवों के लिए जाना जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि जेएनयू एक कॉम्पेक्ट रेजिडेंशियल कैंपस है। इसके चलते इसके छात्र-छात्राएं जहां दिन में सिर्फ अपनी पढ़ाई में रमे रहते हैं। मौज-मस्ती के लिए वे रात का समय चुनते हैं। इसके चलते जेएनयू कैंपस के सभी हॉस्टल्स, ढाबों और कैफे का माहौल रात दो से तीन बजे तक पूरी तरह छात्रों और उनकी मौज-मस्ती से गुलजार रहता है।
दूसरे दिन सोमवार (एक मार्च, २०१०) को हम लोग होली खेलने के लिए फिर जेएनयू पहुंचे। वहां का माहौल बहुत ही अच्छा था। जेएनयू में दाखिल होने से पहले हम पांच लोगों में से किसी ने भी रंग-गुलाल नहीं लगाया था। वहां जाकर देखा तो कई लड़कों के कपड़े (शर्ट, टी-शर्ट) फटे हुए थे, कईयों ने भांग का नशा किया हुआ था। मगर किसी ने भी हमें रंग या गुलाल नहीं लगाया। एक-दो हमारे पहचान वाले बंदे अंदर थे, उन्होंने ही हमें गुलाल लगाया। चेहरे पर। फिर हम लोगों ने आपस में एक दूसरे को गुलाल लगाया।
इसके बाद हम लोग काफी देर तक वहां रहे। लड़के-लड़कियां गु्रप में नाच-गा रहे थे। उछल-कूद मचा रहे थे। लोगों ने अपनी अजीब-अजीब सी शक्लें बना रखी थी। जेएनयू में कई बातें नोट करने लायक थी। लड़के और लड़कियां सभी रंग और गुलाल में सराबोर थे। नशा भी किया था। मगर सभी होश में थे, सभी शालीनता से पेश आ रहे थे। लड़कियों ने अच्छी ड्रेस पहनी थी। फिर चाहे वे लड़कियां देसी रही हो, विदेशी रही हो, साउथ इंडियन या नार्थ-ईस्ट की।
बाद में हम लोगों ने पूरा कैम्पस घूमा। गंगा ढाबा पर कॉफी पी। लौटते समय मेरे दिमाग में सवाल आया कि क्या छिन्दवाड़ा जिले से किसी ने जेएनयू में पढ़ाई की है। शायद नहीं... अगर की होगी तो ... डॉ। ब्राउन, भूतपूर्व प्रिंसिपल डीडीसी कॉलेज, बता सकते हैं। इस बारे में पता करना होगा। जेएनयू यानी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अच्छे अफसर, नेता, पत्रकार, विचारक और रणनीतिकारों की जन्मस्थली रही है। मैं इस बात से खुश था कि होली के बहाने मुकेश भाई ने मुझे जेएनयू की सैर करवा दी।
3 comments:
yah bahut achha prayas hai
dongeji,aadab
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