आज (21 दिसंबर 2021) मैंने साढ़े 4 साल के बेटे दक्ष के लिए
नई साइकिल खरीदी, ₹3500 में...
अचानक अपने बचपन के दिन याद आ गए...।
मिडिल क्लास फैमिली के लोग हमेशा सेकंड हैंड चीजें ही इस्तेमाल करते थे। मेरे पिताजी ने साल 1993-94 के आसपास सेकंड हैंड मोपेड लूना खरीदी थी ₹4000 में। इससे पहले जब मैं छठवीं क्लास में पहुंचा तो ₹250 में सेकंड हैंड साइकिल खरीदी थी.
.... सिलसिला यूं ही चलता रहा.
जब मैं कॉलेज पढ़ने के लिए छिंदवाड़ा पहुंचा तो 1998 में ₹800 में हर्कुलस साइकिल खरीदी थी. जो मेरे साथ 2004 में भोपाल तक भी पहुंची। भोपाल में जॉब के दौरान मैं साइकिल से ही रिपोर्टिंग करता था। जब दिल्ली के लिए निकला तो मैंने उस साइकिल को वापस छिंदवाड़ा लाकर अपने भांजे को दे दिया। फिर गांव में भतीजे के पास आ गई।
एक वक्त वो था और आज का दौर है साल 2021...।
बच्चे के लिए जब साइकिल खरीदने की बारी आई तो मैंने सेकंड हैंड साइकिल भी सर्च की। मुझे 1000 से लेकर 2000 रुपये तक में सेकंड हैंड साइकिल का ऑप्शन मिल रहा था। लेकिन मैंने न्यू साइकिल खरीदने का ही फैसला किया। क्योंकि आज का दौर ही यही है। बच्चे भी बोलने लगते हैं कि - पापा यह साइकिल पुरानी है, मुझे नई वाली चाहिए।
... और जब हम छोटे थे तब हमारी ऐसी कोई डिमांड नहीं होती थी। बस हमें वो चीज मिल जाए, हम उसी में खुश हो जाते थे। चाहे कपड़े हो या साइकिल हो या कुछ और हो। खैर...। यह बदलाव भी आना था।
... लेकिन इसी के साथ मिडिल क्लास फैमिली का बजट बिगड़ गया है. हर चीज नई खरीदना है। और ज्यादा से ज्यादा खरीदना है। मोबाइल भी नया खरीदना है। गाड़ियां नई खरीदना है। और कपड़े उनका तो पूछिए मत...
पहले संयुक्त परिवार होते थे, सब भाई बहन पुराने कपड़े पहनते थे। आज की सिंगल फैमिली में ऐसा कोई ऑप्शन भी नहीं बचा है। इसलिए आजकल सभी को सब कुछ न्यू... न्यू... ही चाहिए।
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