पोस्ट-1
संचार क्रांति ने दुनिया भर के लोगों को किसी भी मुद्दे पर अपनी राय रखने के लिए कई प्लेटफार्म उपलब्ध करा दिए है। चाहे टेक्स्ट फॉर्मेट हो, ऑडियो हो, वीडियो हो या पिक्चर हो।
अच्छी बात है कि हमें अपनी बात रखने का मौका मिलता है. इससे देश और दुनिया की राय पता चलती है. आपके विचार कई बार औरों को आपके जैसा सकारात्मक सोचने पर मजबूर भी करते हैं।
लेकिन हमें अपनी राय, अपने विचार बेहद जिम्मेदार नागरिक के बतौर और संतुलित रूप से जाहिर करना चाहिए. क्योंकि आप का बयान, आपकी राय मजाकिया बिल्कुल नहीं होना चाहिए. यह आपके नाम से इतिहास में दर्ज हो रहा है ऐसा आप को मानना चाहिए.
साथ ही हर मुद्दे पर त्वरित टिप्पणी के रूप में कुछ भी लिखने से बचना चाहिए. यह मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैंने खुद इस पर अमल में लाना शुरू कर दिया है.
आपके मोहल्ले से लेकर आपके शहर, देश और दुनिया में रोज सैकड़ों - हजारों घटनाएं होती है. जिस पर आप अपनी प्रतिक्रिया, या राय जाहिर कर सकते हैं. अगर हम अपने देश की चंद बड़ी घटनाओं की बात करें तो पिछले कुछ महीनों से कई मुद्दे चल रहे थे/हैं. जिस पर हर कोई लिख रहा है. अयोध्या मसला, प्याज की बढ़ती कीमतें, अर्थव्यवस्था का गिरता स्तर, महिलाओं के खिलाफ हिंसा रेप जैसे कई मुद्दे अखबारों की सुर्खियां बने हुए तो बात इन्हीं पर करते हैं.
#फेसबुकपोस्ट
पोस्ट - 2
हैदराबाद गैंगरेप मामले में अगर आज के घटनाक्रम की बात करें तो पुलिस ने आरोपियों को एनकाउंटर में मार गिराया है. शुरुआत यहीं से करते हैं.
1. अगर ये चारों आरोपी वाकई इस रेप केस से जुड़े हैं। और इन्होंने वाकई भागने की कोशिश की थी जिन्हें पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया तो यह एक हद तक सही है.
क्योंकि बदमाशों को पुलिस एनकाउंटर में मारती है. इसमें कोई नई बात नहीं है. लेकिन सब जानते हैं कि कई बार पुलिस एनकाउंटर भी फर्जी होते हैं.
2. देश में न्याय व्यवस्था, अदालतें अगर नाकाम हो रही है और पुलिस ही सजा देने का काम करने लगेगी तो स्थिति भयावह हो सकती है.
3. मॉब लिंचिंग की घटनाएं जिस तरह से सामने आई है. अगर जनता यह मान ले कि किसी भी आरोपी को सजा नहीं मिल पाएगी तो हर आरोपी को मौत की सजा जनता ही देने लगेगी. इसमें कई बार बेगुनाह लोग भी मारे जा सकते हैं. जैसा कि पिछली कई मॉब लिंचिंग की घटनाओं में सामने आया है.
अब अगर छोटी बड़ी रेप की वारदात और उनके आरोपियों को सजा देने के लिए इसी तरह के पुलिसिया एनकाउंटर पर बात करें तो.
क्या आज देश के ज्यादातर लोग जिस तरीके से इस एनकाउंटर पर पर जश्न मना रहे हैं.
क्या आने वाले दिनों में रेप के केस में फंसे हाई प्रोफाइल लोगों का भी एनकाउंटर देखना चाहते हैं.
क्या ऐसा संभव है या सिर्फ लो क्लास और कमजोर आरोपियों को ही पुलिस एनकाउंटर करेगी.
#फेसबुक_पोस्ट
Friday, December 6, 2019
क्या हाई-प्रोफाइल रेपिस्ट का एनकाउंटर देखेंगे लोग
Saturday, September 7, 2019
मेरी फेसबुक पोस्ट : तुम इंसान हो ना कि भगवान
हम किसी व्यक्ति या संस्था को पसंद करते हैं। प्यार करते हैं। लट्टू है। अरे पागल है।
फिर भी सही और गलत की समझ तो रखना ही चाहिए। तर्क कीजिए। बहस कीजिए। या जिसके विचार पसंद नहीं। आलोचना पसंद नहीं। उन्हें सीधे देशद्रोही कह दोगे। सजा दोगे। तुम इंसान हो ना कि भगवान।
या अपने आप शैतान कहलाना पसंद करोगे। जो सीधे मारने के अलावा कोई बात पसंद नहीं करता।
क्या हो रहा है लोगों को। कुछ युवाओं को तो अफीम जैसा नशा हो गया है। धर्म का नशा। जाति का नशा।
इंसानियत तो भूल ही गए!
इंसान ही रहो।
न भगवान बनो।
न शैतान...।
मेरी फेसबुक पोस्ट, 7 सितंबर, 2017
Thursday, August 22, 2019
दोस्तनामा : महोदय अपनी गाड़ी लेकर आएं...और मैं देखकर दंग रह गया...
बाएं से रामकृष्ण और संजय। नागपुर के येवले चाय शॉप पर 20 अगस्त 2019 को। |
आपकासंजय अप्तुरकर
Tuesday, August 13, 2019
एक मुलाकात, एक व्यक्तित्व, एक सृजन...
आकाशवाणी के प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव और नाटककार अमर रामटेके जी के साथ...
आकाशवाणी छिंदवाड़ा और आकाशवाणी नागपुर में लंबे अरसे तक काम कर चुके मेरे प्रेरणा स्रोत, लेखक, दलित नाटककार और कार्यक्रम अधिकारी सम्मानीय सर श्री अमर रामटेके जी से हाल ही में मुलाकात हुई। उनकी गिनती प्रमुख दलित लेखकों में होती है।
छिंदवाड़ा आकाशवाणी से उनके ट्रांसफर के करीब 15 साल बाद हुई इस मुलाकात ने कई यादें ताजा कर दी। जब उनसे पहले आकाशवाणी छिंदवाड़ा में मुलाकात हुई। फिर बस स्टैंड के यादव लॉज की कई मुलाकातें। साहित्यिक आयोजनों में। वे हमारे गांव तंसरामाल भी आए थे... तारीख थी 16 मई 2001। जब मैंने इंटरनेट रेडियो श्रोता संघ का उद्घाटन किया था। छिंदवाड़ा से उनकी वापसी के समय का भावुक क्षण कभी भूल नहीं सकता।
वे इन दिनों बेड रेस्ट पर है। 6 साल पहले हुए एक गंभीर हादसे के बाद स्वस्थ होने में उन्हें काफी वक्त लग गया। रामटेके जी लेखक के अलावा एक अच्छे एक्टर भी है। कई नाटकों में उन्होंने यादगार रोल प्ले किए है। उनकी कई किताबें भी प्रकाशित हो चुकी है। मराठी के अलावा हिंदी में भी अपना लेखन करते हैं।
उन्होंने कई शहरों के आकाशवाणी केंद्रों में काम करते हुए कई युवाओं को प्रेरणा दी और आगे बढ़ाया। मध्यप्रदेश में आकाशवाणी छिंदवाड़ा के अलावा आकाशवाणी बैतूल में भी उन्होंने काम किया। जिन शहरों में वे रहे वहां उन्होंने साहित्यिक संस्था बनाकर युवाओं को सार्थक लेखन की ओर अग्रसर किया। फेसबुक पर जो साथी उन्हें जानते हैं वे चीज के गवाह होंगे।
आपका व्यक्तित्व ही आपकी पहचान होता है और इस संसार में कुछ व्यक्तित्व - पर्सनालिटी ऐसी होती है जो अपने आप ही कई लोगों को कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दी जाती है। इसमें सृजन भी शामिल है और जीवन का ध्येय निर्धारित करना भी।
इस दुनिया में हर जगह, हर संस्था में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो आपको डिस्टर्ब कर सकते हैं। परेशान कर सकते हैं। आपको धैर्य के साथ अपना काम करते जाना चाहिए। यही ऐसी पर्सनालिटी हमें सिखाती है।
आकाशवाणी में प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव रहते हुए उन्होंने किसानों के लिए कई अच्छे प्रोग्राम बनाए। कई गांवों का दौरा किया, उन गांव तक पहुंचे जहां पहले कभी आकाशवाणी पहुंचा ही नहीं था। आकाशवाणी छिंदवाड़ा से प्रसारित होने वाला किसान भाइयों का 'चौपाल' प्रोग्राम उन दिनों काफी पसंद किया जाता था। रेडियो पर रामटेके जी का अंदाज निराला होता था। उनकी आवाज दमदार और खनक वाली है।
अमर रामटेके जी की प्रमुख कृतियां :
‘गोडघाटेचाळ’, 'ग्रेस नावाचं गारूड ', जखमांचे शहर
Monday, May 13, 2019
फेसबुक पोस्ट : मेरी यादों में नागपुर
#नागपुर से लौटकर
बचपन से ही नागपुर को लेकर क्रेज रहा है. हमारे जिले #छिंदवाड़ा के नजदीक का बड़ा शहर नागपुर ही है। घर से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है नागपुर। पहली बार मेरा नागपुर जाना कब हुआ होगा, मुझे कुछ याद नहीं है. हां इतना जरूर याद है कि कॉलेज के दौरान नेट के एग्जाम देने के लिए एक बार अपने दोस्तों के साथ नागपुर गया था और वह भी ट्रेन से. इसके अलावा कई बार बस से नागपुर आना जाना होता है।
नागपुर अब तक ज्यादा तो नहीं घूमा है मगर गणेश मंदिर, लोकमत चौक, सीताबर्डी, सदर बाजार जैसे कुछ इलाके जरूर देखे हैं। संतरों की नगरी नागपुर काफी गर्म शहर माना जाता है। सर्दियों के दिनों में भी यहां आपको ऊनी कपड़ों की जरूरत नहीं पड़ती और गर्मियों में इतनी गर्मी कि आप शहर घूमते घूमते पसीने से भीग जाएंगे।
रेलवे स्टेशन और उससे लगे मध्य प्रदेश बस स्टैंड को शायद ही कभी भूल पाएंगे। यहीं से हम अक्सर आना जाना करते हैं चाहे दिल्ली जाना हो या रायपुर. हालांकि अब दिल्ली के लिए छिंदवाड़ा से सीधी ट्रेन है। रायपुर के लिए भी एक - दो साल में चलने लगेगी।
नागपुर शहर में कुछ मित्र रहते हैं जिनसे अक्सर बात और मुलाकात हो जाती है। पूरा शहर घूमने की काफी इच्छा है। पता नहीं यह सपना कब पूरा होगा. नागपुर बाकी शहरों की तुलना में महंगा शहर है। हालांकि यहां पर खाने पीने की चीजें कई वैरायटी में और सस्ती मिल जाती है.
#नागपुर #संतरीनगरी #छिंदवाड़ाकीसैर #छिंदवाड़ा
17 मई 2017 की फेसबुक पोस्ट
Friday, May 10, 2019
करदाताओं का संगठन बनाया जाए
*अब समय आ गया है जब, करदाताओं का संगठन बनाया जाये*
*जो विश्व का सबसे बड़ा संगठन होगा*
देश में अब एक Tax Payers Union का गठन होना चाहिए। चाहे कोई भी सरकार हो,बिना उस यूनियन की स्वीकृति के न तो मुफ्त बॉटने की, या कर्ज़ माफ़ी की कोई कुछ घोषणा कर सकती हो, न ही ऐसा कुछ लागू कर सके।
पैसा हमारे टैक्स का है तो हमें अधिकार भी होना चाहिए कि उसका उपयोग कैसे हो ।
पार्टियां तो वोट के लिए कुछ भी लालच देती रहेंगी,
कौनसा उनकी जेब का जा रहा है।
चाहे कोई भी स्कीम बने उसका ब्लूप्रिंट दो, हमसे सहमति लो,और यह उनके वेतन एवं अन्य सुविधाओं पर भी लागू होना चाहिए।
लोकतंत्र क्या बस वोट देने तक सीमित है,
उसके बाद क्या अधिकार हैं हमें??
*Right to Recall Any Such Freebies " भी शीघ्र लागू होना चाहिए।*
*सहमति हो तो अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं*
👍👍👍👍👍👍
मूल लेखक : अज्ञात
*प्रतिक्रियाएं....*
*सोशल मीडिया वर्कर रमेश बलानी, रायपुर की कलम से*
*सही बात है*…
★ _जब सरकार चुनने का हक़ जनता के पास है।_
★ _जब सरकारी अधिकारी±कर्मचारी Public Servent कहलाए जाते हैं।_
★ _जब जनता के टैक्स से ही अधिकारी±कर्मचारी(यों) को वेतन+भत्ता इत्यादि का भुगतान होता है।_
★ _यहाँ तक कि चुने हुए प्रभारी±पूर्व±भूतपूर्व नेताओं को भी बंगला+वाहन+बिजली+फ्यूल+टेलिफ़ोन+सर्विस-स्टाफ़ आदि संसाधनों के अलावा सस्ता भोजन (कैंटीन) की सुख-सुविधाएँ जनता के टैक्स से ही हासिल हैं।_
*तो जनता का हक़ भी बनता है कि मालिक की भूमिका में आए। करदाताओं को एक विशाल संगठन बनाने में सहयोग करे।*
*लोकतंत्र द्वारा चुनी हुई पार्टियाँ तो मालिक बन जनता पर शासक का स्वप्रभुत्व अधिकार मान लेती हैं।*
*चुनाव दरमियान जनता को सब्ज़बाग़ दिखा ठगने का भरपूर प्रयास करती हैं।*
*और*,, *ख़र्च का सारा भार करदाताओं के मत्थे ज़बरदस्ती मढ़ लेती हैं।*
*जनता में से प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक ख़रीद पर कर का प्रत्यक्ष±अप्रत्यक्ष भुगतान कर ही रहा है।*
*जनता का हक़ बनता है कि अपना प्रभुत्व स्थापित करे और विश्व स्तरीय विशाल संगठन बनाने पर सहयोग करे।*
→ _संगठन होगा तो नेताओं पर अंकुश होगा।_
→ _नेताओं की फिसलती जुबान पर अंकुश होगा।_
→ _नेताओं की ठगप्रवृत्त बद्ज़बान पर अंकुश होगा।
→ _सरकारी ख़ज़ाने की आवक-जावक के लेखे-जोखे की ऑडिट-रिपोर्ट के अध्ययन करने और अनपेक्षित व्ययों पर निगाह होगी।_
→ _नेताओं की मनमर्ज़ियों पर अंकुश होगा। उदाहरणार्थ छत्तीसगढ़ के वर्तमान प्रभारी मुख्यमंत्री द्वारा एक नेता-पुत्र को शासकीय उच्च-पद पर "'अनुकंपा नियुक्ति '" पर पदस्थापित कर अपने प्रदेश के योग्य उम्मीदवारों के साथ कपट नीति अपना कर मनमर्ज़ी करी है।_
→ _नेताओं द्वारा नेताओं के विरुद्ध प्रतियोगितापूर्ण लांछनों, द्वेषों युक्त बयानबाजियों पर भी अंकुश होगा।_
→ _प्रत्येक योजना के ब्लूप्रिंट पर सहमति होने से, योजना के व्ययों पर निगाह होने से देश हित में आर्थिक सुस्पष्टता होने के अलावा भ्रष्ट बटवारों पर अंकुश होगा।_
→ _नेताओं के भ्रष्ट±दृष्ट आचरणों पर ''संगठन '' की निगाह होने से शासकीय विभागों में भी भ्रष्टाचार पर अंकुश होगा।_
→ _अन्य सार्थक सुझाव यथा *Right to Recall Any Such Freebies* सहित अन्य, जो आपके द्वारा सुझाए गये हैं भी यथोचित हैं।_
*अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगती है तो अपनी प्रतिक्रिया जोड़ते हुए इसे आगे बढ़ाते रहे।*
Sunday, May 5, 2019
क्या मोदीजी खुद को प्रधानमंत्री नहीं मानते
भाजपा की मुश्किल ये है कि उसके पास भी कोई बड़ा नेता नहीं है। जो भीड़ जुटा सके। वोट दिला सकें।
आप कहेंगे मोदी जी है ना।
मैं कहूँगा... ये तो सही है कि मोदी जी है।
... लेकिन दुर्भाग्य ये है कि मोदी जी खुद को भाजपा का बड़ा नेता और स्टार प्रचारक से ज्यादा कुछ और मानने को तैयार ही नहीं है।
जबकि पूरा देश जानता है कि भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री का नाम नरेंद्र मोदी है। और ये भी विश्वास करता है प्रधानमंत्री को क्या बोलना चाहिए। क्या नहीं बोलना चाहिए।
मोदीजी भूल जाते हैं। बार बार कि वे अभी प्रधानमंत्री है। खैर कोई बात नहीं।
मोदीजी आप तो लगे रहिये...
क्योंकि आखिर आप तो पहले भाजपा नेता। स्टार प्रचारक है। प्रधानमंत्री आप कुछ समय के लिए बने हो। हमेशा के लिए थोड़ी ना।
आपको क्या करना है ये याद रखकर कि प्रधानमंत्री को क्या बोलना होता है। और क्या नहीं।
सितंबर 2013। यह वही समय था जब भाजपा ने आपको प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था।
फिर चुनाव के ऐलान के साथ आपकी रैलियां शुरू हो गई। खूब चर्चे थे आपके। भीड़ जुटाने में माहिर। स्टार प्रचारक। पार्टी में नंबर।
यूपीए के 10 साल के शासन के बाद जनता बदलाव चाह रही थी। और मोदीजी आपको इसका खूब फायदा हुआ। जैसे पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में। जहां भाजपा की सरकारों से मुंह मोड़कर जनता ने कांग्रेस को सत्ता की चाबी सौंपी है। वैसे ही आपकी पार्टी भाजपा को 2014 में जबरदस्त सीटें मिली। खैर...। ये सब देश जानता है।
... लेकिन मोदीजी अब देश, देश के जागरूक और जिम्मेदार नागरिक ये भी जानने लगा है कि आप क्या बोलते हैं। आपकी भाषा क्या है।
आप तथ्य गलत रख दो। ये भी नहीं होना चाहिए। क्योंकि आप प्रधानमंत्री हो।
फिर भी ये चल जाएगा।
लेकिन आप मर्यादा का ख्याल न रखो। घटिया बयानबाजी करो। घटिया टिप्पणी करो। ये पूरा देश देख रहा है।
हम ये भी मानते हैं कि राजनीति। हमारे देश की राजनीति वाकई खराब है। हर नेता लगभग ऐसी ही भाषा बोल रहा है। कोई कम, कोई ज्यादा। हर नेता चुनावी मंच से विरोधी पार्टी के नेताओं के लिए जहर उगलता है।
लेकिन जब ये नेता लोग आपस में मिलते हैं तो कहते हैं कि हम तो सिर्फ राजनीतिक विरोधी है। और जनता। मासूम जनता आपके बयान पर लड़ पड़ती है।
आप जैसे नेता लोग तो सिर्फ राजनीति करते हैं। अपनी पार्टी की। पार्टी की सीटें बढ़ाने के लिए घटिया बयानबाजी करते हैं। और देश की भोली-भाली जनता आपस में लड़ पड़ती है। वो मेरा प्रिय नेता है। फिर चुनावी जुमले दोहराने लगती है।... आएगा तो...।
जनता भूल जाती है कि ये चुनावी नारे है। किसी पार्टी के है। फिर वो औरों से भी अपने प्रिय नेता को वोट देने की अपील करने लगती है। जबकि वोट किसे देना है ये हर नागरिक का व्यक्तिगत मामला है।
ये भी सब पार्टी के आईटी का कमाल होता है। जो देखते देखते हर मोबाइल में फैल जाता है। हर फारवर्ड करने वाले को लगता है कि ये मेरे अपने की अपील है।
अंत में सिर्फ इतना कि भारत में लोकतंत्र है। कई दल है। कई नेता है। जो पार्टी या नेता अच्छा काम करेगा। जनता उसे पसंद करेगी। बार बार मौका भी देगी।
कई बार विकल्प नहीं होने का फायदा भी मिल जाता है।
मोदीजी आप पांच साल प्रधानमंत्री रहे। आगे क्या होगा। कह नहीं सकते। आपका काम है विरोधी पार्टी पर हमला बोलना। सबसे बड़ी विरोधी पार्टी कांग्रेस है। आप उसके मौजूदा नेताओं पर खूब बोलिए।
लेकिन देश के प्रधानमंत्री रहे नेताओं के बारे में बोलते वक्त आपको ध्यान रखना होगा कि आप क्या बोल रहे हैं। क्योंकि फिलहाल आप खुद प्रधानमंत्री के पद पर बैठे है।
©® गैर राजनीतिक पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे की कलम से
Tuesday, April 16, 2019
फेसबुक पोस्ट : गलत कहीं भी हो विरोध कीजिए
देश में दो विचारधारा एक साथ आगे बढ़ रही है। मुझे बताने की जरूरत नहीं है। वे कौन सी है। उनके मानने वाले कौन और कैसे है।
मेरा मानना है कि देश में कई विचारधारा हो सकती है। कोई बुराई नहीं है। एक परिवार में पति - पत्नी, पिता-पुत्र सभी अलग विचारधारा को मानने वाले हो सकते हैं। रहते हैं। इसका ये अर्थ कदापि नहीं होता है कि वे हमेशा लड़ते-झगड़ते रहे।
हम सब देशवासियों को कम से कम कुछ मुद्दों पर तो एक होना चाहिए। जैसे - जो चीज गलत है उसे सभी एक साथ खड़े होकर गलत बोले।
अब सोचिए किसी महिला या बच्ची के साथ जघन्य अपराध होता है। रेप होता है। उस पर भी हम अगर धर्म देखकर फैसला करने लगे तो फिर क्या होगा। ऐसी स्थिति में पीड़ित या आरोपी का धर्म नहीं देखा जाना चाहिए।
पीड़ित के साथ और आरोपी के खिलाफ हमें पूरी ताकत के साथ खड़ा होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो सोचना पड़ेगा कि आखिर हममें इंसानियत नाम की चीज शेष है या नहीं।
*विचार कीजिए। बात आपको बुरी लग सकती है। मगर ये सोचना मौजूदा वक्त की जरूरत बन चुका है।*
#एक_बार_सोचिए
#फेसबुक वॉल से, 16 अप्रैल 2019
Sunday, April 14, 2019
क्या आपने चलाई है कैंची साइकिल
यह दौर था हमारे साइकिल सीखने का और हमारे जमाने में साइकिल दो चरणों में सीखी जाती थी पहला चरण कैंची और दूसरा चरण गद्दी.......
तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस बाबा या ताऊ चलाया करते थे तब साइकिल की ऊंचाई अड़तालीस इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।
"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे ।
और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और "क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की छोरा साईकिल दौड़ा रहा है ।
आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से मरहूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में अड़तालीस इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था।
हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब दरद भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।
अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल इजाद कर ली गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में ।
मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी! "जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं ।
इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए !
और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।
और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी ।
हम आदम की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना दो चरणों में सीखा !
पहला चरण कैंची
दूसरा चरण गद्दी।
©® अभिनय बंटी पंचोली, भोपाल के फेसबुक वॉल से
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