Sunday, November 27, 2016

युवा कवयित्री विभूति दुग्गड़ मुथा की नोटबंदी पर कविताएं : 1

युवा कवयित्री विभूति दुग्गड़ मुथा
बदलाव भी चाहते हैं और बदलना भी नहीं चाहते
ये कैसी चाहत है,

सालों के बाद एक नेता आया
जो बोला, वो कर दिखाया
125 करोड़ लोग हैं 125 नहीं

हां, तो मैं क्या कह रही थी
सालों बाद एक नेता आया जो बोला वो कर दिखाया
देश तो ठीक ही था 60 साल पहले भी
लोग बदल जाते तो बात होती
खुद को सम्मान दो तो सम्मान मिलेगा
गलत को सही बता के कब तक खोटा सिक्का चलेगा

चलता है थोड़ा बहुत ऊपर नीचे
चला लेंगे कुछ ले देके
आदत सी पड़ गई थी काले धन की
ऊपर की इनकम की
झटका मिला देश हिला
पर अब भी सब परेशां हैं
सफाई की कीमत दे के
सब हैरां हैं

न चाहते हुए भी धन जला रहे हैं लोग
नोटों की गड्डियां गंगा में बहा रहे हैं लोग

बदलाव भी चाहते हैं
और बदलना भी नहीं चाहते, ये कैसी चाहत है

मन नहीं, मानसिकता बदलनी होगी

बदलाव की कीमत हमें भी कुछ तो चुकानी होगी

(भारतीय मूल की दुबई निवासी युवा कवयित्री की कविता के संपादित अंश) 

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 17 दिसंबर 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!