Sunday, July 12, 2015

वो क्रांतिकारी पत्रकार ! रहन दें अपनी क्रांति


क्रांति और पत्रकारिता। दोनों अलग-अलग है। क्रांति अलग। पत्रकारिता अलग। कभी रहे होंगे दोनों साथ-साथ। मगर अब नहीं। आजकल बात-बात में एक जुगला चलता है- वो क्रांतिकारी पत्रकार ! रहन दें हमें कोई क्रांति नहीं करनी है।

पत्रकारिता के अब तब के सफर काफी कुछ देखा-सुना है। यूपी में एक जमाने में, मायावती के टाइम पर रोज पेजवन पर स्टेट पेज माया मेडम का फोटो छपता था। एमपी में उमा भारती के जमाने में सब उमा की मर्जी से होता था।

कोई क्रांतिकारी पत्रकार अगर फील्ड में झक मारके बड़ी खबर लेकर आ भी जाए तो पब्लिश होते तक उसका कचूमर निकलना तय होता है। अगर मैनेजमेंट तक बात पहुंच गई तो। कई किस्से है। भोपाल में नामी अखबार की एक रिपोर्टर का रो-रोकर बुरा हाल था....क्योंकि उसकी रिपोर्ट को पैसों का लेन-देन करके रोक दिया गया था। सवाल पूछने पर उठता उसे ही प्रताड़ित किया गया।

पहले अखबार में सबसे बड़ा क्रांतिकारी संपादक ही होता था। उसने सोच नहीं तो क्रांति को पैदा होने होने से कोई नहीं रोक सकता। भोपाल में मेरा दूसरा अखबार सांध्य दैनिक अग्निबाण था। संपादक थे दबंग पत्रकार अवधेश बजाज सर। मेरी एक खबर पर मुझे धमकी मिल रही थी। मैंने बजाज सर ये बात डिस्कस की। उन्होंने कहा -जो लिखना है लिखो। किसी से डरने की जरूरत नहीं है। संपादक तो ऐसा ही होना चाहिए।
लेकिन अब माहौल बदल रहा है। संपादक सिर्फ संपादक नहीं रहा। मैनेजिंग एडिटर हो गया है। अब आपको हर चीज मैनेज करके काम करना है। इसी का परिणाम है कि एक ही शहर में सेकंड नंबर का अखबार क्रांति कर सकता है। दूसरा बड़ा अखबार न्यूट्रल हो जाता है। जहां आपकी कंपनी के हितों की बात आ जाए वहां कुछ और। आप सोच भी कैसे सकते है।

हमने तो पहले ही कहा- क्रांति और पत्रकारिता। दोनों अलग-अलग है जनाब। आप जमाने में रहते हैं। क्रांति कहीं नहीं है। अगर कहीं है तो केजरी बाबू की डिक्शनरी में।
.....जारी है

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