यह शोक का दिन नहीं, यह आक्रोश का दिन भी नहीं है। यह युद्ध का आरंभ है, भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध हमला हुआ है। समूचा भारत और भारत-वासी हमलावरों के विरुद्ध युद्ध पर हैं। तब तक युद्ध पर हैं, जब तक आतंकवाद के विरुद्ध हासिल नहीं कर ली जाती अंतिम विजय । जब युद्ध होता है तब ड्यूटी पर होता है पूरा देश । ड्यूटी में होता है न कोई शोक और न ही कोई हर्ष। बस होता है अहसास अपने कर्तव्य का। यह कोई भावनात्मक बात नहीं है, वास्तविकता है। देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री, एक कवि, एक चित्रकार, एक संवेदनशील व्यक्तित्व विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया लेकिन कहीं कोई शोक नही, हम नहीं मना सकते शोक कोई भी शोक हम युद्ध पर हैं, हम ड्यूटी पर हैं। युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है, कोई मुसलमान नहीं है, कोई मराठी, राजस्थानी, बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है। हमारे अंदर बसे इन सभी सज्जनों/दुर्जनों को कत्ल कर दिया गया है। हमें वक्त नहीं है शोक का। हम सिर्फ भारतीय हैं, और युद्ध के मोर्चे पर हैं तब तक हैं जब तक विजय प्राप्त नहीं कर लेते आतंकवाद पर। एक बार जीत लें, युद्ध विजय प्राप्त कर लें शत्रु पर। फिर देखेंगे कौन बचा है? और खेत रहा है कौन ? कौन कौन इस बीच कभी न आने के लिए चला गया जीवन यात्रा छोड़ कर। हम तभी याद करेंगे हमारे शहीदों को, हम तभी याद करेंगे अपने बिछुड़ों को। तभी मना लेंगे हम शोक, एक साथ विजय की खुशी के साथ। याद रहे एक भी आंसू छलके नहीं आँख से, तब तक जब तक जारी है युद्ध। आंसू जो गिरा एक भी, तो शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम। इसे कविता न समझें यह कविता नहीं, बयान है युद्ध की घोषणा का युद्ध में कविता नहीं होती। चिपकाया जाए इसे हर चौराहा, नुक्कड़ पर मोहल्ला और हर खंबे पर हर ब्लाग पर हर एक ब्लाग पर। - कविता वाचक्नवी साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
भरत मिलाप की सुंदर छबि !! मनमोहक सुंदर अप्रतिम ऐसा लगता है आप दोनों को हमेशा के लिए इंडिया गेट की जगह खड़ा कर दिया जाए (जस्ट जोकिंग ). बढ़िया बढ़िया दोउ खड़े दोनों भइया संग ले आओ जाके एक एक लुग्गैया luv u brother amitabh
2 comments:
यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
भरत मिलाप की सुंदर छबि !!
मनमोहक सुंदर अप्रतिम
ऐसा लगता है आप दोनों को हमेशा के लिए इंडिया गेट
की जगह खड़ा कर दिया जाए (जस्ट जोकिंग ).
बढ़िया बढ़िया दोउ खड़े
दोनों भइया
संग ले आओ जाके
एक एक लुग्गैया
luv u brother
amitabh
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