एक आदर्श विभूति डॉ. प्रभुदयालु जी
सुविख्यात साहित्यकार एवं अनेक भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य डॉ. प्रभुदयालु अग्निहोत्री का 5 जून 2008 की देर रात देहावसान हो गया। पेश है उन पर लिखा मेरे मित्र परवेज़ मसूद का आत्मीय लेख .
वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी साहित्य रत्न आचार्य श्री प्रभुदयालु अग्निहोत्री जी राष्ट्र की अनमोल धरोधर हैं। उम्र के इस कठिन और दुष्कर पड़ाव में भी वह अपने सहज एवं विनम्र व्यवहार से मिलने-जुलने वालों को विस्मित कर देते हैं। साधारणतः वृद्धावस्था में व्यक्ति के सोचने-समझने की शक्ति जवाब दे जाती है और स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है लेकिन इसके विपरीत बाबूजी आश्चर्यजनक रूप से नौ दशक का फासला पार करके भी मृदुभाषी, विनोदप्रिय और सरल तबीयत के बने हुए हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति, वैचारिक प्रतिबद्धता, अनवरत कर्म का संकल्प तथा जीवन-मूल्यों को आगे ले जाने की चाह, उनकी आँखों में स्पष्ट नजर आती है।
आजादी की लड़ाई में सपत्नीक योगदान देने वाले बाबूजी को आज के अव्यवस्थित हालात भीतर तक पीड़ित करते हैं। अव्यवस्था से संक्रमित वर्तमान परिदृश्य और मानवता पर कोड़े बरसाती निर्दयी राजनीति पर जब चर्चा चलती है तो अंग्रेजों से जूझने वाले इस नायक का मन रोष से भर उठता है। साम्प्रदायिकता, अशिक्षा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आतंकवाद ये ऐसे दुखद पहलू हैं जो बाबूजी को व्यथित कर देते हैं। टीवी देखना, रेडियो सुनना और अखबार पढ़ना उनकी दिनचर्या में शामिल हैं, परन्तु मनोरंजन या समय व्यतीत करने के लिए नहीं, बल्कि देश दुनिया की मौजूदा परिस्थितियों पर नजर रखने के लिए वह इन संचार माध्यमों से रूबरू होते हैं।
अपने बीते समय की यादों और अनुभवों को जब वे बाँटते हैं तो ऐसा लगता है कि बाबूजी उसी कालखण्ड में पहुँचकर वहां से आवाज लगा रहे हों। अतीत जैसे उनकी आँखों में जीवन्त हो उठता है। बचपन, लड़कपन एवं विद्यार्थी जीवन की रोचक बातें, स्वाधीनता संग्राम की रोमांचक घटनाएँ, साहित्य सम्बन्धी उपलब्धियाँ और विभिन्न शिक्षण संस्थाओं, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों से जुड़े गरिमापूर्ण अनुभव, सब कुछ उनकी स्मृति में क्रमवार अंकित है। अपने पैतृक गाँव से लेकर सुदूर विदेश-भ्रमण तक की बातें वह बहुत उत्साह और तन्मयता से सुनाते हैं। कभी ऐसा भी होता है कि अपने गुजरे समय की बहुत-सी बातें बाबूजी कुछ-कुछ दिनों के अन्तराल पर फिर से सुना देते हैं। तब मैं उन्हें टोकना उचित नहीं समझता। इस प्रकार कई बार अभिव्यक्त हो चुके अनुभव मैं पुनः सुन लेता हूँ। वास्तव में उनकी स्मृति में संग्रहित प्रसंग बार-बार और हर बार सुनना अच्छा लगता है। सुगंधित फूलों की सुगंध जितनी मर्तबा ली जाए, मन प्रसन्न होता है।
वैसे तो बाबूजी के चुने हुए अनुभव तथा यादगार अनुभूतियाँ उनकी आत्मकथात्मक, संस्मरणात्मक पुस्तकों में संकलित हैं। मगर मौखिक रूप से एक विशिष्ट शैली में इस अनुपम अनुभवों को सुनना स्वयं में एक दिलचस्प एहसास है। कभी-कभी वह मजाक में मुझे 'जनरल परवेज मुशर्रफ' कहकर संबोधित करते हैं, तो मैं मुस्कुरा देता हूँ। एक बार मैंने उनसे हँसते हुए कहा कि "मैं तो भारतीय परवेज हूँ'' तो बाबूजी बोले "परवेज मुशर्रफ भी तो भारतीय हैं, दिल्ली में पैदा हुए थे। नाम में क्या रखा है। सब परिस्थितियों के अनुसार अपनी भूमिकाएँ निभाते हैं।'' देस-परदेस की भौगोलिक सीमाओं को लाँघकर उनकी मानवीय दृष्टि ÷वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना पर जा टिकती है। इस प्रकार विश्व के सारे लोग स्वतः उनके अपने हो जाते हैं।
बाबूजी कबीर से अत्यन्त प्रभावित हैं। महात्मा गांधी उनके हृदय में बसते हैं। गाँधी जी के प्रति अपार श्रृद्धा रखने वाले बाबू जी स्वतंत्रता आंदोलन के समय उनसे व्यक्तिगत और भावनात्मक रूप से जुड़े थे। स्वतंत्रता आंदोलन को परवान चढ़ाने के लिए वह गांधी जी से विचार-विमर्श तथा मंत्रणाएँ किया करते थे। अब गांधी जी नहीं रहे और देश स्वतंत्र है, परन्तु राष्ट्रपिता की विचारधारा बाबूजी के मन में निरन्तर प्रवाहित है।
भारतीय जनमानस में व्याप्त धार्मिक संकीर्णता, अंधविश्वास हानिकारक रीति -रिवाज, प्रथाएँ और मान्यताएँ वर्तमान सन्दर्भ में ये सारी बातें बाबूजी को गैर जरूरी लगती हैं। उनके अनुसार आज के इस प्रगतिशील युग में इन सामाजिक बुराइयों को वैज्ञानिक तर्कों और तथ्यों पर कसना चाहिए। इनकी निरर्थकता को पहचान कर परम्परागत भ्रांतियों से मुक्त होना चाहिए।
पारिवारिक संस्कार की यात्रा, स्वतंत्रता यात्रा, साहित्यिक यात्रा तथा विभिन्न पदों से सुशोभित शिक्षण यात्रा के समानांतर ही बाबूजी समाजसेवा से ओतप्रोत इंसानियत की यात्रा भी कुशलतापूर्वक कर रहे है। गहन चिंतन-मनन के दौरान अन्तर्मन में बसी इन सारी यात्राओं पर वह निकल पड़ते हैं, और मानसिक जरूरत के मुताबिक, लोकोपयोगी सामग्री लेकर वापस लौटते हैं। तब लोगों में ज्ञान का प्रकाश फैलाती कृतियों का जन्म होता है।
इस प्रकार आज भी बाबूजी का साहित्य कर्म ईश्वरीय निर्देशानुसार निर्बाध रूप से अनवरत चल रहा है। बाबूजी के जीवन के किसी भी पक्ष को लिया जाए, जीवन के किसी भी हिस्से पर नजर डाली जाए, वहीं से प्रेरणा का प्रकाश फूट पड़ता है। उनके गुजरे समय प्रत्येक पल और वर्तमान का हर एक क्षण इंसान होने का अर्थ समझाता है। अद्भुत प्रेरणास्त्रोत हैं बाबूजी।
( मेरे दोस्त परवेज ने यह लेख लिखा था . हम अक्सर बाबा के पास जाया करते थे .)
http://aaspaas.net/khabar-march07.html
1 comment:
डॉ. प्रभुदयालु जी के विषय में जानकारी पढ़ना सुखकर रहा. आभार आपका.
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