पहली तस्वीर में मां, दूसरी में दादी और तीसरी फोटो में परदादी
मुझे यह बताने में गर्व महसूस होता है कि हमारा परिवार शायद कई पीढ़ियों से मातृसत्तामक ही रहा है। जहां तक मुझे जानकारी है मेरे पिताजी स्व. श्री संपतराव डोंगरे की दादी मां यानी श्रद्धेय पूनी बाई ने अपनी पाई-पाई जमा की गई रकम से हमारी पुस्तैनी जमीन खरीदी। जहां आज हमारे परिवार रहते हैं। उसी जमीन को हमारी दादी मां ने अपने सीधे और सज्जन पति स्व. किसन डोंगरे के साथ मिलकर सजाया-संवारा। यानी मरते दम तक खेतों में बैल गाड़ी चलाने से लेकर हर तरह के काम किए।
मेरी सबसे बड़ी प्रेरणास्त्रोत दादी (डोकरी माय) ही थीं। उनकी परंपरा को मेरी मां श्रीमती गौरा बाई और भाभी जी कैकई बाई आगे बढ़ा रही है।
जब भी कोई दुख की घड़ी आती है तो मेरे मुंह से ओ मां ही शब्द निकलते हैं। मां मेरी कमजोरी और ताकत भी है। घर से दूर रहने के कारण बरबस ही मां की याद आ जाती है, आंखों में आंसू झरने लगते हैं। लेकिन तभी मां के वे शब्द कान में गूंजने लगते हैं। बेटा- तुम दोनों भाइयों को बाहर निकलकर कुछ करना है। अपना और हमारा नाम बढ़ाना है।
शायद यही वजह है हम आज भी मुश्किलों से घबराते नहीं, जूझते है और अपने आप को संभाल लेते हैं।
मां से मिली मुझे प्रेरणा, ताकत और भरोसा
ओ मां.... तुझे सौ सौ सलाम
( मदर्स डे, 8 मई 2016)
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Saturday, May 7, 2016
ओ मां... तुझे सलाम
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