दिल्ली में साथ रहते थे। दिल्ली छूटी तो करीब 8 साल के बाद अब रायपुर में हम दोनों की मुलाकात हुई।
माखनलाल विवि भोपाल में एमजे के साथी रहे और छोटे भाई रीतेश पुरोहित इन दिनों भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल में पीआरओ के तौर पर कार्यरत है।
दुनिया में आप कहीं भी रहो। मिलजुल रहने के मौके हर जगह मिलते हैं। स्कूल कॉलेज और आफिस में भी। जहां आपको हर स्टेट के, जाति धर्म के लोग मिलते हैं। सब मिल-जुलकर रहते हैं। बिछड़ने के बाद भी आप उन्हें याद करते हैं।
रीतेश रायपुर आए थे 2 फरवरी 2019 को शुक्रवार रात 9 बजे। हमारी मुलाकात हुई शनिवार दोपहर करीब 2 बजे। और शाम 6-7 बजे हम विदा हो गए।
इन चंद घंटों में रीतेश की भोपाल की यादें ताजा कर दी। अरेरा कॉलोनी के उस छोटे से रूम की। जो बामुश्किल 3 बाय 6 रहा होगा। जिसमें मैंने दो साल गुजारे थे।
अपनों से मिलने की चाहत
रीतेश में साफ दिख रही थी।
बार बार एक ही सवाल - क्या एमजे से कोई और है रायपुर में
चर्चा 'ओ धर्मनाथ' की निकली।
रबिंद्र सर की निकलीं और
अंत में हमेशा के लिए बिछुड़कर दुनिया छोड़ चुके साथी सुदीप कुमार पर आकर खत्म हो गई।
कितना कम समय है आपके पास।
फिर भी लोग विचारधारा, प्रांत, जाति-धर्म के चक्कर में हमेशा लड़ते और झगड़ते रहते हैं।
मिल जुलकर रहिए
दोस्त बनाते रहिए...
|| दोस्त बनाओ, दुनिया बनाओ ||
— with Ritesh Purohit atSmart-City-Raipur.माखनलाल विवि भोपाल में एमजे के साथी रहे और छोटे भाई रीतेश पुरोहित इन दिनों भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल में पीआरओ के तौर पर कार्यरत है।
दुनिया में आप कहीं भी रहो। मिलजुल रहने के मौके हर जगह मिलते हैं। स्कूल कॉलेज और आफिस में भी। जहां आपको हर स्टेट के, जाति धर्म के लोग मिलते हैं। सब मिल-जुलकर रहते हैं। बिछड़ने के बाद भी आप उन्हें याद करते हैं।
रीतेश रायपुर आए थे 2 फरवरी 2019 को शुक्रवार रात 9 बजे। हमारी मुलाकात हुई शनिवार दोपहर करीब 2 बजे। और शाम 6-7 बजे हम विदा हो गए।
इन चंद घंटों में रीतेश की भोपाल की यादें ताजा कर दी। अरेरा कॉलोनी के उस छोटे से रूम की। जो बामुश्किल 3 बाय 6 रहा होगा। जिसमें मैंने दो साल गुजारे थे।
अपनों से मिलने की चाहत
रीतेश में साफ दिख रही थी।
बार बार एक ही सवाल - क्या एमजे से कोई और है रायपुर में
चर्चा 'ओ धर्मनाथ' की निकली।
रबिंद्र सर की निकलीं और
अंत में हमेशा के लिए बिछुड़कर दुनिया छोड़ चुके साथी सुदीप कुमार पर आकर खत्म हो गई।
कितना कम समय है आपके पास।
फिर भी लोग विचारधारा, प्रांत, जाति-धर्म के चक्कर में हमेशा लड़ते और झगड़ते रहते हैं।
मिल जुलकर रहिए
दोस्त बनाते रहिए...
|| दोस्त बनाओ, दुनिया बनाओ ||
No comments:
Post a Comment