Sunday, July 24, 2016

सुदीप को रायपुर में भी नम आंखों से दी श्रद्धांजलि


  • पत्रकारों को इलाज की सुविधा मुहैया कराने ट्रस्ट बनाने की जरूरत : अनिल पुसदकर
  •  बीमारी के लिए खराब रूटीन जिम्मेदार, अपना और साथियों का ख्याल रखें : जिनेश जैन
रायपुर। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि से पढ़ाई करने वाले पत्रकार सुदीप सिन्हा की याद में रायपुर के प्रेसक्लब में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस मौके पर पत्रिका छत्तीसगढ़ के स्टेट एडिटर श्री जिनेश जैन और प्रेस क्लब के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल पुसदकर विशेष तौर पर मौजूद थे।

इस मौके पर पत्रिका में सुदीप के सहकर्मी रहे मिथिलेश मिश्र, अभिषेक राय, संतराम साहू, दयानंद यादव, सुनील नायक, जितेंद्र दहिया, विजय देवांगन ने श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके अलावा आईबीसी-24 से राजीव कुमार, प्रज्ञा प्रसाद, दैनिक भास्कर से रामकृष्ण डोंगरे, पंकज साव, पुष्पम कुमार, शेखर झा समेत पत्रकार साथी मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन रामकृष्ण डोंगरे ने किया।

रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष पुसदकर ने कहा कि बीमारी के चलते युवा पत्रकार सुदीप सिन्हा की असामयिक मौत काफी दुखद है। हमें पत्रकारों को इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ट्रस्ट बनाने की पहल करना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि हम पत्रकार पूरे समाज का ख्याल रखते हैं। उनके मुद्दे उठाते हैं मगर खुद अपना या अपने साथियों की खबर नहीं रखते। आखिर में हमें उनकी अर्थी उठाने जैसी नौबत आ जाती है। हमें मिलजुल रहना चाहिए। एक-दूसरे का ख्याल रखना चाहिए।

पत्रिका ने स्टेट एडिटर जिनेश जैन ने सुदीप के जज्बे और लगन को याद करते हुए बताया कि एक बार उन्होंने उससे कहा था कि तुम जहां-जहां जाओगे, मैं वहां-वहां तुम को मिलूंगा। इसके पीछे वजह यह थी कि पत्रिका के जयपुर, भोपाल और रायपुर में सुदीप उनके साथ काम करते रहा।

वे सुदीप सिन्हा की मौत जैसी घटनाओं के लिए पत्रकारों के अनियमित रूटीन को जिम्मेदार मानते हैं। उन्होंने कई बातें शेयर की। बताया कि किस तरह से सुदीप समर्पण के साथ काम करता था। सब मुद्दों पर डिस्कस करता था, गाइडेंस मांगता था। सीनियर साथियों से चर्चा करता था। श्री जैन ने कहा कि सुदीप से उनका 9 साल पुराना परिचय था मगर उसने अपनी बीमारी के बारे में कभी खुलकर नहीं बताया था।

उन्होंने कहा कि जिस दिन सुदीप की मौत की खबर मिली वे गमगीन हो गए। वे कहते हैं कि पत्रकारों को अपने रूटीन का खास ख्याल रखना चाहिए। यानी हमेशा घर से ही खाना खाकर बाहर निकलना चाहिए। चाहे जो भी घर में बना हो। वर्ना बाहर जाने के बाद खाना मिलेगा, कब मिलेगा कुछ भी पक्का नहीं होता।





श्री जैन ने कहा कि सुदीप कभी अपनी बीमारी का बहाना बनाकर कामचोरी नहीं करता था। उसने जिद करके रायपुर पत्रिका में स्टेट ब्यूरो में रिपोर्टिंग करने की जिम्मेदारी मांगी। उसे पूरी तरह से निभाया भी। उन्होंने सुदीप के बारे में कई और बातें शेयर की।

Tuesday, July 19, 2016

सुदीप कुमार सिन्हा को श्रद्धांजलि : तुम्‍हारा यूं अचानक चले जाना


भोपाल, जयपुर और पटना में तुमसे कई बार मिला. पत्रकारिता के प्रति तुम्‍हारा जुनून और तुम्‍हारी मासूमियत भुलाए न भूलेगी. आई नेक्स्ट के सीनियर रिपोर्टर सुदीप सिन्हा का सोमवार सुबह कंकड़बाग स्थित साईं अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. अंतिम संस्कार बांस घाट पर किया गया. छोटे भाई प्रीतम ने मुखाग्नि दी. सुदीप के बड़े भाई प्रदीप सिन्हा ने बताया कि वे कुछ दिन से बीमार चल रहे थे. 16 जुलाई की शाम को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. असामयिक मौत से पिता गोपाल कृष्ण सिन्हा, मां माधुरी सिन्हा और बहन कंचन सिन्हा समेत पूरा परिवार सदमे में है. मूल रूप से सहरसा के रहनेवाले सुदीप ने माखनलाल विवि से 2005-2007 एमजे करने के बाद पत्रकारिता में करियर की शुरुआत दैनिक जागरण भोपाल से की थी. उसके बाद राजस्थान पत्रिका ‪#‎जयपुर‬ ‪#‎भोपाल‬ ‪#‎रायपुर‬ के अलावा हरिभूमि भोपाल से भी जुड़े रहे. वर्तमान में आई नेक्स्ट पटना में बतौर सीनियर रिपोर्टर कार्यरत थे. ‪#‎डायबिटीज‬ ने एक युवा पत्रकार को हमसे छीन लिया. हमारे लिए यह सबक भी है. हालांकि सुुदीप अपनी सेहत का ध्‍यान रख रहा था. Sudeep की आत्‍मा को ईश्‍वर शांति प्रदान करे.
          - चंदन शर्मा
 बस दो महीने पहले आपके ऑफिस में मिला था आपसे...पता नहीं था ये आखिरी मुलाकात होगी। मुझे याद है उसदिन पटना के आसपास हाईवे पर लंबा जाम लगा था, आप उस खबर के पीछे पड़ गए...खूब सारा फोन लगाया...और निकल गए रिपोर्टिंग पर। आपके एनर्जी लेवल की तारीफ करता रह गया मैं। एनर्जी के साथ खबर बनाने का सबसे आसान तरीका था आपके पास।
मुझे याद है...हरिभूमि में आपके साथ काम करने का मौका मिला था। मैं नया था...आपने हमेशा मेरी मदद की। एक ही बीट पर थे हम दोनों लेकिन कभी मनमुटाव नहीं होने दिया आपने....तब आपसे सीखा कि कैसे मीटिंग खत्म होते ही फटाफट खबर कंप्लीट करते हैं।
अचानक चले गए आप...ऐसे नहीं जाना था। बहुत अखर रहा है। कुछ लिखा नहीं जा रहा। बड़ी हिम्मत करके याद कर रहा हूं आपको...आपकी याद आएगी।

- मनीष चंद्र मिश्रा
अपनी लेखनी से हर खबर में जान डालने वाले आई नेक्स्ट के युवा सीनियर रिपोर्टर सुदीप सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहे. सोमवार की सुबह पटना के कंकड़बाग स्थित साईं अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. बीमारी तो काफी दिनों से पीछा कर रही थी लेकिन वह हर पल उसे मात दे रहे थे. यही कारण था कि डायबिटीज जैसी बीमारी भी उनकी मुस्कान के सामने पस्त हो जाती थी. वह उसे अपनी हंसी में छिपा लिया करते थे, लेकिन सोमवार को बीमारी भारी पड़ गई और वह दुनिया को अलविदा कह गए.
- दुलार बाबू ठाकुर 
दोपहर को बेहद दुखद खबर मिली। सुदीप हमें छोड़कर चला गया। विश्वास ही नहीं हुआ कि वो यूं अचानक कैसे अलविदा कह सकता है.. साल 2005 में भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए जाने के दौरान सुदीप पहली बार मुझसे ट्रेन में मिला था और फिर उसके साथ वो सफर कब बीत गया ये पता भी नहीं चला। भोपाल पहुंचने पर हम एक साथ होटल में रुके.. एक साथ रूम सर्च किया और फिर एक साथ ही रहे। सुदीप, मिथिलेश और मैं क्लास के बाद घंटों एक दूसरे से बातचीत करते थे। सुदीप बहुत ही अलहदा था। जोश से भरपूर, साफ दिल और एकदम एक्टिव। कोर्स खत्म होने के बाद हम अलग अलग शहरों में जॉब के लिए चले गए। इस बीच फोन पर कभीकभार बात होती रही। बीते साल 25 फरवरी को रायपुर में सुदीप से आखिरी मुलाकात हुई थी मेरी। सालों बाद मिलने के बाद दोनों ने कई घंटे साथ बिताए और फिर मिलने का वादा कर वो चला गया। सुदीप इसके बाद पटना चला गया और फिर वाट्सएप के जरिए जुड़ा रहा। सुदीप की एक खासियत थी कि वो कभी भी अपनी परेशानी जल्दी शेयर नहीं करता था। इतनी कम उम्र में अचानक उसकी मौत की खबर स्तब्ध कर देने वाली है। पत्रकारिता के क्षेत्र उसकी कमी अपूरणीय है और मेरे लिए ये निजी क्षति है।
 तुम हमेशा याद आओगे सुदीप।
- राजीव कुमार, आईबीसी-24, रायपुर
अरे साला उसको हम देख लेंगे... ये डॉयलॉग आज सुबह से कान में गूंज रहा है...तस्वीर भले मामूली लडके की लगती है...लेकिन अखबार के दफ्तर में घाग रिपोर्टरों के बीच हौंसला बढाने के लिए सुदीप का देख लेंगे काफी था..4 साल सुदीप ओर मैंने एक दूसरे के साथ दिन रात और साथ ना हुए तो फोन पर...बिताए... अजय तुम वो खबर कर लेना हम ये देख लेंगे...सुदीप की हर बात पर हां निकलता था...आज सुबह से आंखे भर रही है जब मालूम पडा की सुदीप ने साथ छोड दिया... वो पूरी टीम मेरे डेस्क इंचार्ज राहुल जी, अतुल भाई, नितिन मेरा छोटा भाई, नीलम राजपूत, राकेश तिवारी, गजेंद्र, आज हर कोई परेशान होगा, क्योंकि सुदीप की हर बात हमारे कानों में गूंज रही होगी...एक ख्वाहिश पूरी ना कर सका सुदीप तुम्हारी वो.. बच्चन सहाब से मुलाकात की...मेरी मुलाकात के बाद तुमने मुझे बोला था अजय मुझे मिलना है...लेकिन दुर्भाग्य जब वक्ता आया था तो तुमने बोला अजय रायपुर में हूं...लेकिन तुम वक्त ना निकला पाए भाई...माफ करना...तुम बहुत याद आओगे...मेरी bollywood की रिपोर्टिंग के तुम मुरीद थे भाई क्या क्या लिखू कुछ समझ नहीं आ रहा है... बस यादें सुदीप
                         - अजय शर्मा 
आज जो खबर मिली है। उस पर यकीन नहीं हो रहा है। Sudeep Sinha सर नहीं रहे। वो हमें छोड़कर चले गए। उन्हें डायबटीज थी जो भोपाल में रहते हुए हुई थी। आज सुबह 10 बजे असामयिक उनकी मौत हो गई। मौत की वजह वायरल और फेफड़े में पानी भर जाना बताया जा रहा है। उन्हें डायबटीज भले थी लेकिन वो खुद का काफी खयाल रखने वालों में से थे। अब इस रोग को अखबारी पेशे की देन कहिये। जो शायद अस्त-व्यस्त दिनचर्या से हुआ। भोपाल में जब इसका उन्हें पता चला था तो बेहद उदास हुए थे, लेकिन खुद को सम्भालते हुए उन्होंने बेहद सख्त परहेज और दवाएं लेना भी शुरू कर दिया था। वो छोटी-छोटी बातों से खुश हो जाते थे और खाना खिलाना उन्हें बेहद पसन्द था। रचना नगर भोपाल के उस कमरे में न जाने कितनी बार दावतें हुईं। इधर काफी दिनों से उनसे मुलाकात न हो पाने का अफ़सोस है। उनका जाना हम सबके लिए किसी सदमे से कम नहीं। वो जो उन्हें जानते हैं, जिन्होंने साथ काम किया है। उन सबकी ये व्यक्तिगत क्षति है जिसे पूरा करना अब सम्भव नहीं है। ये तस्वीर भी पत्रिका के चेतक ब्रिज वाले पुराने कार्यालय में काम करते वक्त की है। शायद 7 से 10 साल पुरानी होगी। अभी सुदीप सर पटना आई नेक्स्ट में सीनियर रिपोर्टर थे। माखनलाल विवि में 2005-07 में एमजे करने के बाद उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत जागरण भोपाल से की थी। उसके बाद राजस्थान पत्रिका जयपुर, भोपाल, रायपुर के अलावा हरिभूमि भोपाल से भी जुड़े रहे।
- दीपक गौतम आवारा, 

Monday, July 18, 2016

श्रद्धांजलि : बीमारी से हार गया मेरा दोस्त सुदीप कुमार

"और रामकृष्ण".... यही वो शब्द थे,
जिससे सुदीप मुझसे बातचीत की शुरुआत करते थे।

आखिरी बार जब बात हुई तब 26 जून के पहले की कोई तारीख रही होगी। हम एक सीनियर स्व. विनय तरुण की याद में होने वाले कार्यक्रम की तैयारी में लगे थे। रायपुर में इस कार्यक्रम के लिए आने के बहाने वह सबसे मिलना चाहता था।
बाएं से स्व. सुदीप कुमार के साथ।

उसने कहा था- 'रामकृष्ण, मैं आने की कोशिश करूंगा। ताकि इस बहाने सभी से मुलाकात हो जाए।

सुदीप कुमार सिन्हा। एमजे-2005-07। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि का छात्र रहा।

जागरण भोपाल में इंटर्नशिप के दौरान ही उसकी कई खबरें सराही गई। फिर उसने वही से अपने करियर की शुरुआत की। सिटी इंचार्ज रवि खरे सर के साथ उसकी अच्छी ट्यूनिंग हो गई थी।

कोर्स पूरा के बाद उसने राजस्थान पत्रिका जयपुर, भोपाल और रायपुर में भी काम किया। इसके अलावा कुछ समय तक हरिभूमि भोपाल से भी जुड़ा रहा। वे वर्तमान में आई- नेक्स्ट पटना में सीनियर रिपोर्टर के तौर पर पदस्थ थे।

मेरे एक दोस्त और क्लासमेट दुलार बाबू ठाकुर भी उनके साथ आई-नेक्स्ट में काम कर रहे है। उन्होंने बताया कि वे आखिरी बार 12 जुलाई को आफिस आए थे। लगातार बारिश और ठंडे-गरम मौसम की वजह से उन्हें वायरल इंफेक्शन हो गया। वे जल्दी ही आफिस से चले गए थे।

वे इन दिनों अपनी मम्मी और भाई के साथ पटना में रहते थे। डायबिटीज के मरीज थे। खान-पान का खास ख्याल रखते थे। 2-3 दिन तक वे घर पर ही इलाज कराते रहे। अस्पताल चलने के लिए तैयार नहीं थे। फिर भाई ने जिद करके उन्हें 16 जुलाई की शाम को पटना के कंकड़बाग स्थित साईं अस्पताल में भर्ती कराया।

निमोनिया का असर था। कमजोर होने के कारण बीमारी में शरीर साथ नहीं दे रहा था। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की बहुत कोशिश की मगर 18 जुलाई की सुबह करीब 7 बजे अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से 35 वर्षीय सुदीप की मौत हो गई। सोमवार दोपहर पटना के बांस घाट पर उन्हें छोटे भाई प्रीतम ने मुखाग्नि दी। असामयिक मौत से पिता गोपाल कृष्ण सिन्हा, मां माधुरी सिन्हा, बड़े भाई प्रदीप सिन्हा और बहन कंचन सिन्हा समेत पूरा परिवार सदमे में है.

उनकी मम्मी को काफी आघात पहुंचा है। सुदीप घर का सबसे छोटा बेटा था। शायद उससे छोटी एक बहन है। भोपाल में जॉब के दौरान उसकी मम्मी और बहन रचना नगर वाले रूम में साथ ही रहती थीं।

सुदीप के बारे में याद किया जाए। या कुछ कहा जाए।
. .. तो वह बेहद एक्टिव रहता था। उसके काम में, बातचीत में फुर्ती नजर आती थी। पढ़ाई के दौरान हम होशंगाबाद गए थे। शायद उसी ने टूर प्लान किया था। जहां हमने एमजे डिपार्टमेंट के साप्ताहिक विकल्प के लिए स्टोरी की थी। मेरी शादी के दौरान वह छिंदवाड़ा भी आया था। दो-तीन दिन हमारे घर पर रहा था। पूरा परिवार उसे पसंद करने लगा था।

एक अच्छे रिपोर्टर की तरह खबरों के पीछे भागना उसे सबसे ज्यादा प्रिय था। पत्रिका में नौकरी के दौरान रायपुर में वह मेरे साथ वाले कमरे में रहता था। हमारे एक सीनियर और मित्र राकेश मालवीय जी और सुदीप अक्सर बैठा करते थे। कई बातें होती थी। अपनी दीदी की शादी के मौके पर लंबी छुट्टी पर घर गया था। फिर कुछ समय बाद पटना में ही टिक गया।

लिखने के लिए बहुत कुछ है। मगर जो लिखा जाएगा वो कम ही होगा। इंसान बीमारी से हार जाता है। सुदीप को कई बार बीमारी ने घेरा। मगर अपनी जिंदादिली और जूझने की क्षमता की वजह से वह हर बार ठीक हो जाता था।

मगर... इस बार हंसने और हंसाने वाले सुदीप कुमार को बीमारी ने हरा दिया।
अलविदा मेरे दोस्त... तुम हमेशा याद आओगे।


गंगाधर के बाद शायद सुदीप मेरा दूसरा दोस्त था, जो मुझे अचानक छोड़कर चला गया। दुनिया में जो आया है, उसका जाना भी तय है। किसी अपने के चले जाने पर जो दुख होता है, उसको रोका नहीं जा सकता।

किसी की मौत को न यूं दिल से लगाया जाए,
रास्ते में जो भी मिले, उसे अपना बनाया जाए।

श्रद्धांजलि ! नमन  !!!

सुदीप सिन्हा का फेसबुक पेज- https://www.facebook.com/sudeep.sinha.7?fref=pb&hc_location=profile_browser