10 रुपए से लेकर 10 हजार तक के महंगे शादी के कार्ड
खर्चीली, भड़कीली यानी ताम-झाम से लबरेज शादियां थमने का नाम नहीं ले रही है। शुरुआत- महंगे-महंगे शादी के कार्ड से होती है। इनकी कीमत अब 5, 10 रुपए से लेकर 8 या 10 हजार तक पहुंच गई है। इसके बाद शुरु होता है लंबा सिलसिला। लाखों के गहने, कपड़े, दहेज का साजो-सामान, फोर व्हीलर गाड़ी, मैरिज हॉल, कैटरिंग,बारात की गाड़ियां की लंबी कतारें, डीजी... आदि-आदि।
और ये सब किसलिए। शादी को सामाजिक मान्यता के लिए...। कम खर्चों में कोई परिवार अगर साधारण तरीके से शादी करना चाहे तो सब कहते है- समाज क्या कहेगा। समाज के लोग, नाते-रिश्तेदार, दोस्त-भाई ताने देंगे। क्या इनके घर में पैसे नहीं है।
साधारण शादी की पहल पर कोई साथ नहीं देता
अगर कोई परिवार में कोई लड़का या लड़की सिम्पल शादी की बात अपने माता-पिता से कहता है तो कोई तैयार नहीं होता। मैं स्वयं और मुझ जैसे कई लोग हो सकते हैं जो साधारण शादी की पहल करने को तैयार थे। मगर माता-पिता या रिश्तेदारों ने उनका साथ नहीं दिया।
एसएमएस, ई-मेल, वाट्सएप फिर भी निमंत्रण कार्ड
कम्युनिकेशन के तमाम साधनों के बावजूद हम हजारों-लाखों के कार्ड छपवाकर, उस पर भी लाखों का पेट्रोल फूंककर, कीमत समय बर्बाद करके अपना बड़प्पन दिखाने के लिए घर-घर कार्ड पहुंचाना जरूरी समझ रहे हैं। इसे आप क्या कहोगे। जबकि आज हाथ में मोबाइल है। कुछ पैसों में बात हो जाती है। एसएमएस भेज सकते हैं। ई-मेल, वाट्सएप, फेसबुक तमाम सुविधाएं मौजूद है। फिर भी पचासों साल पुरानी घर-घर निमंत्रण कार्ड बांटने की परम्परा को निभा रहे हैं।
ऐसे तमाम सवाल हमारे सामने खड़े हैं। इन्हें हम कब तक नजरअंदाज करते रहेंगे।
हम भारतीय शादियों में इतना ज्यादा खर्च करते है जिसका कोई हिसाब नहीं। शादी को लेकर किस तरह का उत्साह रहता है, सब जानते हैं। रहना भी चाहिए, मगर क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यह अंधी दौड़ कहां जाकर थमेगी। हालांकि कुछ अच्छी शुरुआत की खबरें भी अब तक आ रही है। जैसे- कई परिवार के लोग भी अपने बच्चों की शादियां सामूहिक विवाह समारोह में कराने लगे हैं। इसके अलावा कई परिवारों में दहेज में कई गाड़ियां भरकर लाखों का साजो-सामान देने की बजाय लड़की का एकाउंट खुलवाकर माता-पिता और रिश्तेदार पैसे जमा करने लगे है। इन सब सकारात्मक पहल से सभी को प्रेरणा लेना चाहिए।
- रामकृष्ण डोंगरे तृष्णा
खर्चीली, भड़कीली यानी ताम-झाम से लबरेज शादियां थमने का नाम नहीं ले रही है। शुरुआत- महंगे-महंगे शादी के कार्ड से होती है। इनकी कीमत अब 5, 10 रुपए से लेकर 8 या 10 हजार तक पहुंच गई है। इसके बाद शुरु होता है लंबा सिलसिला। लाखों के गहने, कपड़े, दहेज का साजो-सामान, फोर व्हीलर गाड़ी, मैरिज हॉल, कैटरिंग,बारात की गाड़ियां की लंबी कतारें, डीजी... आदि-आदि।
और ये सब किसलिए। शादी को सामाजिक मान्यता के लिए...। कम खर्चों में कोई परिवार अगर साधारण तरीके से शादी करना चाहे तो सब कहते है- समाज क्या कहेगा। समाज के लोग, नाते-रिश्तेदार, दोस्त-भाई ताने देंगे। क्या इनके घर में पैसे नहीं है।
साधारण शादी की पहल पर कोई साथ नहीं देता
अगर कोई परिवार में कोई लड़का या लड़की सिम्पल शादी की बात अपने माता-पिता से कहता है तो कोई तैयार नहीं होता। मैं स्वयं और मुझ जैसे कई लोग हो सकते हैं जो साधारण शादी की पहल करने को तैयार थे। मगर माता-पिता या रिश्तेदारों ने उनका साथ नहीं दिया।
एसएमएस, ई-मेल, वाट्सएप फिर भी निमंत्रण कार्ड
कम्युनिकेशन के तमाम साधनों के बावजूद हम हजारों-लाखों के कार्ड छपवाकर, उस पर भी लाखों का पेट्रोल फूंककर, कीमत समय बर्बाद करके अपना बड़प्पन दिखाने के लिए घर-घर कार्ड पहुंचाना जरूरी समझ रहे हैं। इसे आप क्या कहोगे। जबकि आज हाथ में मोबाइल है। कुछ पैसों में बात हो जाती है। एसएमएस भेज सकते हैं। ई-मेल, वाट्सएप, फेसबुक तमाम सुविधाएं मौजूद है। फिर भी पचासों साल पुरानी घर-घर निमंत्रण कार्ड बांटने की परम्परा को निभा रहे हैं।
ऐसे तमाम सवाल हमारे सामने खड़े हैं। इन्हें हम कब तक नजरअंदाज करते रहेंगे।
हम भारतीय शादियों में इतना ज्यादा खर्च करते है जिसका कोई हिसाब नहीं। शादी को लेकर किस तरह का उत्साह रहता है, सब जानते हैं। रहना भी चाहिए, मगर क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि यह अंधी दौड़ कहां जाकर थमेगी। हालांकि कुछ अच्छी शुरुआत की खबरें भी अब तक आ रही है। जैसे- कई परिवार के लोग भी अपने बच्चों की शादियां सामूहिक विवाह समारोह में कराने लगे हैं। इसके अलावा कई परिवारों में दहेज में कई गाड़ियां भरकर लाखों का साजो-सामान देने की बजाय लड़की का एकाउंट खुलवाकर माता-पिता और रिश्तेदार पैसे जमा करने लगे है। इन सब सकारात्मक पहल से सभी को प्रेरणा लेना चाहिए।
- रामकृष्ण डोंगरे तृष्णा
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