मेरी प्यारी भतीजी निधि। |
ये है निधि। मेरी प्यारी भतीजी। शुरू-2 में फोन पर बात करने में हिचकिचाती थी। बाद में खूब बात करने लगीं। फोन पर अगर मैंने पूछा- 'क्या कर रही हो?' तो तुरंत जवाब देगी- 'खेल रही हूं।' उससे बात करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। बहुत छोटी थी तब मेरी गोद में नहीं आती थी। इसकी वजह यह रहती थी कि महीनों बाद मेरा घर जाना होता था। इसके चलते मुझे पहचान नहीं पाती थी। फिर धीरे-2 मेरे पास आने लगी। उसके जन्म के साल मैं भोपाल में था। इस साल जून की 23 तारीख को छह साल की हो जाएंगी।
बड़े भैया के तीन बच्चों में निधि सबसे छोटी है। दो भाइयों की एक बहन। वहीं, मेरी दीदी के भी तीन बच्चे है। तीनों ही लड़के है। इस नाते हुईं पांच भाइयों की इकलौती बहन। यहां दिलचस्प बात यह है कि बड़े भैया के दो बच्चों होने के बाद मेरी जिद थी कि अब बस किया जाए। मगर एक लड़की की चाहत, एक बहन की चाहत ने निधि को हमारी दुनिया में ला दिया। इसके लिए हम सब ईश्वर के शुक्रगुजार है। कई परिवारों में लड़के की चाहत देखी जाती है और लड़कों की इस चाहत में लड़कियों की लाइन लग जाती है। एक-दो-तीन-चार...। लेकिन इसके उलट हमारे घर में शुरू से ही लड़कियों की चाहत रही है। हमारे पापा इकलौते थे, यानी उनकी कोई बहन (हमारी बुआ) होने का सवाल ही नहीं था। हम तीन भाइयों की एक ही बहन है। इस तरह हमें लड़की की चाहत शुरू से ही रही।
समाज या परिवार के दबाव में आकर महिलाएं भी अपना बच्चा लड़की नहीं सिर्फ लड़का चाहती हैं। मैंने जब इसके तह में जाने की कोशिश की तो क्या पता चला? एक लड़की को, एक औरत को दुनिया में काफी कुछ सहना पड़ता है इसलिए वह लड़की को पैदा नहीं करना चाहती। अगर ऐसा ज्यादातर महिलाएं सोचती है तो इसका कारण क्या है। हम। हमारा समाज। हमारा परिवेश। हमारी मान्यताएं। यानी इस समस्या के लिए हम सब जिम्मेदार है।