Wednesday, May 11, 2011

डोंगरे की 'शादी पर सीधी बात'


शादी ... क्यों ?
लोग शादियां क्यों करते हैं? ये तो वे ही जानें, और मैं शादी क्यों कर रहा हूं। यह आपको ३० अप्रैल के बाद पता चल जाएगा। जब आप थोड़ा पसर्नल डोंगरे से रूबरू हो सकेंगे।

कई यूथ अपनी लाइफ को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते। इसलिए भी अविवाहित रहने का मन बना लेते हैं। यह गल्र्स और ब्वॉयज दोनों पर लागू होता है। फिर सब शादी करके ही कौन-सा तीर मार लेते है। वहीं दूसरा पहलू यह भी है कि ज्यादातर शादीशुदा जोड़े देश की आबादी बढ़ाने में अतिमहत्वपूर्ण सहयोग देना जरूर अपना कत्र्तव्य समझते हैं।
हम शादी क्यों करना चाहते क्योंकि...?
  • शादी व्यवस्था का हिस्सा बनना चाहते हैं.
  • सदियों से चली आ रही शादी की परंपरा को निभाना चाहते हैं.
  • अपने खानदान को चलाने के लिए वंश प्राप्त करना चाहते हैं.
  • या कि सिर्फ शारीरिक सुख, सुरक्षित सेक्स हासिल करने के लिए शादी करना चाहते हैं.
अब सवाल कुछ तीखा ...
  • क्या ज्यादातर शादियां देश की आबादी बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
शादी ... क्यों और किसलिए? क्या इसलिए कि यह एक व्यवस्था है, जिसका हिस्सा हम सबको बनना होता है? या एक परंपरा है, जिसे हमें निभाना पड़ता है, खानदान चलाने के लिए वंश प्राप्त करने का जरिया है। अगर हम थोड़ा बोल्ड होकर कहें तो क्या इसलिए कि यह शारीरिक सुख, सेक्स हासिल करने का परंपरागत तरीका है। इस बारे में सभी की राय अलग-अलग हो सकती है।

क्या एक व्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए शादी की जाए?

तो मुझे नहीं लगता कि हर व्यवस्था का हिस्सा बनना सभी के लिए जरूरी है। और बात जहां तक वंश चलाने के लिए संतान हासिल करने की होती है, तो आज के आधुनिक युवाओं के लिए यह कोई इश्यु नहीं रह गया है। अविवाहित रहने वाले ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं सोचते। इनमें से कुछ लोग बच्चों को गोद ले लेते हैं। बिना शादी के भी आप माता-पिता होने की जिम्मेदारी निभा सकते है।

अब हम बात सेक्स या शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए शादी की करते हैं। ?

तो ज्यादातर युवा इन दिनों शादी से पहले या बाद में सेक्स के लिए शादी की अनिवार्यता को नकारते नजर आ रहे हैं। फिर भी ज्यादातर युवा सुरक्षित सेक्स के लिए शादी करने का ही विकल्प अपनाते हैं। क्योंकि बगैर शादी के सेक्स का रास्ता सभी के लिए उतना आसान नहीं है। बहुत सारे लोग शादी से कतराते हैं। इसका एक कारण यह है कि लड़के किसी अन्य का दायित्व उठाने से बचना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि वे अपनी बीवी के नखरे और डिमांड को पूरा नहीं कर पाएंगे।

उधर, दूसरी तरफ लड़कियों का भी शादी से मोहभंग होता जा रहा है। क्योंकि उनको लगता है कि शादी उनके कॅरियर पर विराम लगा देती है। कई मामलों में यह सच भी साबित हुआ है। मेरा भी कई ऐसी लड़कियों से सामना हुआ है जिन्होंने शादी के नाम से ही तौबा कर ली है। लड़कियां अपनी आजादी को खोना नहीं चाहती। उन्हें इस बात का भी डर होता है कि पता नहीं उनका जीवनसाथी कैसा होगा। उनकी तरक्की में सहायक बनेगा या घर-गृहस्थी और बच्चों में उलझा के रख देगा।

अपनी ही संतान का लेबल लगाने के लिए शादी !?
शादी व्यवस्था का जन्म अपनी ही संतान होने का लेबल लगाने के लिए हुआ था।? क्योंकि पति-पत्नी के संबंधों के बाद होनी वाली संतान को पुरुष अपना खून कहता आया है। यानी उसे इस बात का यकीन होता है कि यह संतान उसका अपना ही खून है। अपने वारिस की प्राप्ति के लिए भी शादी की जाती रही है। जाहिर सी बात है कि पुरुष प्रधान समाज ने अपने कायदे-कानून खुद तय किए। इनमें से कुछ आज तक भी चल रहे है।?

पुरुष मानसिकता में बदलाव लाए बिना मौजूदा शादी व्यवस्था में महिलाओं का विकास संभव नहीं है। चूंकि देखा यही जाता है कि पत्नी को ही तथाकथित त्याग करने के लिए मजबूर किया जाता है। शादी-बच्चे होते ही कॅरियर को तिलांजलि।

Thursday, April 21, 2011

गुड्डू की गूंजेगी शहनाई ....

डोंगरे चला दुल्हनिया लेने ...

डोंगरे दूल्हा बनने जा रहे हैं. वे जल्द ही छिंदवाड़ा से अपनी दुल्हनिया को दिल्ली लेकर आएंगे. हमारे ब्लॉग उल्टा तीर ने उनकी शादी की पल-पल की ख़बरें देने की पहल शुरू की है. एक आम भारतीय यानी रामकृष्ण डोंगरे को भी आपसे रूबरू करवा देते हैं.

ये जनाब अखबार नवीस हैं, दोस्तों के अजीज और दोस्तों की बीच 'डोंगरे डॉन ' के नाम से मशहूर हैं. अखबार से जुड़ने से पहले डोंगरे रेडियो, साहित्य की दुनिया से भी जुड़े रहे हैं. आज भी जुड़े हैं. मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले के एक छोटे से गाँव तन्सरामाल के बाशिंदे हैं.

इनकी होने वाली जीवन संगिनी भारती ने इंदौर शहर में एक साल तक मशहूर फैशन डिजाइनर रॉकी एस के फैशन स्टूडियो में बतौर फैशन डिजाइनर काम करती रही हैं। रॉकी एस फैशन डिजाइनिंग की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है. ये फिल्मों के लिए भी ड्रेस डिजाइनिंग का काम करते हैं. तीस मार खां जैसी चर्चित फिल्म की ड्रेस इनके इंदौर स्टूडियो में तैयार हुई है. जो ड्रेस कैटरीना कैफ ने पहनी थी।

इस आमो-ख़ास शादी में साहित्य, कला, फिल्म, मीडिया जगत की मशहूर हस्तियाँ शामिल होंगी.

इनमें से कुछ नाम- अजय देशमुख (फिल्म निर्देशक, मुंबई), पुष्पेन्द्र पाल सिंह (एचओडी, माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल), दिनेश गौतम (सहारा समय, नोएडा ). अमिताभ दुबे (जी न्यूज़, नोएडा), हरीश देशमुख (लाइव टीवी, नई दिल्ली), इमरान खान (सहारा समय, नोएडा), अमर रामटेके ( कार्यक्रम अधिकारी, आकाशवाणी नागपुर), डॉक्टर हरीश पराशर रिशु (आकाशवाणी झांसी), गीतांजलि गीत (ज्ञानवाणी इंदौर), राजुरकर राज (आकाशवाणी भोपाल), वल्लभ डोंगरे (साहित्यकार, भोपाल), अवधेश तिवारी (वरिष्ठ उद्घोषक, आकाशवाणी छिंदवाडा) एवं समस्त आकाशवाणी छिन्दवाडा परिवार. ... क्लिक करें

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शादी से जुडी ख़बरों के लिए ... उल्टा तीर है ना

Wednesday, March 9, 2011

एक-सा था बाबा और पिताजी का नाम

बाबा धरणीधर के जन्मदिन पर खास
  • सतपुड़ा केपुरखा साहित्यकार बाबा संपतराव धरणीधर का जन्मदिन
  • मेरे खास दोस्त 'रेडियो' के जरिए हुई थी बाबा से मुलाकात
  • जब मिला तब बाबा धरणीधर पार कर चुके थे ७५ बसंत
ऐसी ही किसी मुलाकात में बाबा ने मेरे सामने अपना पत्र लेखक बनने का प्रस्ताव रखा। मैंने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया। इसके बाद मैं लगभग रोजाना बाबा के पास जाने लगा। पहले सात नंबर और बाद में ग्यारह नंबर कमरे में।
बाबा का कविता पाठ, इंटरव्यू मैंने आकाशवाणी छिंदवाड़ा से सुना था। जिसमें उनकी बातचीत और कविताओं ने मुझे आकृषित किया था। इसके साथ ही यह बात भी मुझे उनकी तरफ खींच रही थी कि वे मेरे गांव तन्सरामाल के नजदीकी कस्बे मोहखेड़ के रहने वाले थे। इसके अलावा बाबा का नाम और मेरे पिताजी का नाम भी एक-सा था। यानी बाबा संपतराव धरणीधर और श्री सम्पतराव डोंगरे। आज हमारे बीच न तो बाबा है और न मेरे पिताजी। मेरे मित्र अमिताभ दुबे कई बार मुझे बाबा का मानस पुत्र कहते हैं।


आज है १० मार्च। बाबा का जन्मदिन। यानी सतपुड़ा के पुरखा लेखक, साहित्यकार, पत्रकार और कवि बाबा संपतराव धरणीधर का। 'मुझे फांसी पर लटका दो ... कि मैं भी एक बागी हूं' वाले बाबाजी। 'किस्त-किस्त जिंदगी' के रचियता। जब मैं बाबा से मिला वे ७५ बसंत पार कर चुके थे। बाबा से मेरी मुलाकात मेरे खास दोस्त 'रेडियो' के जरिए ही हुई। बाबा का कविता पाठ, इंटरव्यू मैंने आकाशवाणी छिंदवाड़ा से सुना था। जिसमें उनकी बातचीत और कविताओं ने मुझे आकृषित किया था। इसके साथ ही यह बात भी मुझे उनकी तरफ खींच रही थी कि वे मेरे गांव तन्सरामाल (उमरानाला) के नजदीकी कस्बे मोहखेड़ के रहने वाले थे। इसके अलावा बाबा का नाम और मेरे पिताजी का नाम भी एक-सा था। यानी बाबा संपतराव धरणीधर और श्री सम्पतराव डोंगरे। आज हमारे बीच न तो बाबा है और न मेरे पिताजी। मेरे मित्र अमिताभ दुबे कई बार मुझे बाबा का मानस पुत्र कहते हैं।

उस समय मैं छिंदवाड़ा शहर में ही रहकर कॉलेज की पढ़ाई कर रहा था। आकाशवाणी जाने का सिलसिला मेरा लगातार जारी था। यही मेरी मुलाकात कार्यक्रम अधिकारी श्री अमर रामटेके जी से हुई। वे उन दिनों बस स्टेशन केपास यादव लॉज में रहते थे। उनसे वहां कई मुलाकातें हुई। एक मुलाकात केदौरान मैंने उनसे बाबा के बारे में पूछताछ की। उन्होंने जिला अस्पताल के कमरा नं. पांच में जाने को कहा। अस्पताल पहुंचने में मुझे पता चला कि वे अब दूसरे कमरे में है। काफी मशक्कत केबाद बाबा से मुलाकात हो गई। फिर मेरी उनसे लगातार मुलाकात होने लगी। ऐसी ही किसी मुलाकात में बाबा ने मेरे सामने अपना पत्र लेखक बनने का प्रस्ताव रखा। मैंने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया। इसके बाद मैं लगभग रोजाना बाबा के पास जाने लगा। पहले सात नंबर और बाद में ग्यारह नंबर कमरे में।

बाबा के पास जाने से मुझे छिन्दवाड़ा के साहित्यिक परिदृश्य को समझने में आसानी हुई। बाबा के कमरे में पाठक मंच (किताबों की समीक्षा के लिए प्रदेशभर के जिलों में गठित इकाई) की बैठक होती थी। उन दिनों से ही पाठक मंच केसंयोजक श्री ओमप्रकाश 'नयन जी थे। इसकेअलावा कई कवि गोष्ठियां बाबा के कमरे में होती थी। बाहर से आने वाले उनकी पीढ़ी के कई वरिष्ठ कवि, साहित्यकार भी गोष्ठियों में शामिल होते थे। जिनमें इंदौर के स्वर्गीय नईम जी का नाम मुझे याद आ रहा है।

सन् ९५ मैंने कविता लिखना शुरू कर दिया था। कविता क्या थी तुकबंदी ज्यादा हुआ करती थी। इसकेअलावा दो और चार लाइनें। जिन्हें हम शायरी कहकर मुगालते में रहते थे। पहली मुक्तछंद की कविता मैंने २००१-२००२ में लिखी होगी। बाबा से मिलने केबाद मैंने एक कविता बाबा पर ही लिख डाली। जो डीडीसी कॉलेज की मैग्जीन में छपी थी। बाबा से मैंने अपनी आतंकवाद वाली कविता के लिए बातचीत की थी।

बाबा को जब कभी भी बाहर किसी कार्यक्रम में जाना होता था हम यानी राम (बाबा का सहायक) और मैं लेकर जाते थे। हम अक्सर बाबा को लेकर हिन्दी प्रचारिणी और टाउन हॉल जाया करते थे। बाबा से अक्सर मिलने वालों में बाबा हनुमंत मनगटे जी, सलीम जुन्नारदेवी जी, लक्ष्मीप्रसाद दुबे जी, राजेद्र राही जी, ओमप्रकाश नयन जी, नेमीचंद व्योम जी और कई नाम शामिल थे।

बाबा का व्यक्तित्व ऐसा था, जो छोटे-बड़े सभी को अपनी ओर आकृर्षित करता था। बाबा सभी से बहुत दोस्ताना अंदाज में मिलते और बतियाते थे। बाबा की यादों को मैं कभी भी बिसरा नहीं सकता। मुझे इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा कि मैं उनके अंतिम समय में उनकेपास नहीं था।

रामकृष्ण डोंगरे 'तृष्णा'

Monday, March 7, 2011

महिला दिवस पर बधाई

महिला दिवस पर विशेष
साथ ही
सभी को बधाई,

आज अन्तराष्ट्रिय शक्ति दिवस है .
इस दिवस पर संकल्प लें कि महिलाओं का सदैव सम्मान करेंगे.
घर और बाहर उन्हें उनका अभिष्ट जरुर दिलाने का प्रयास करेंगे.
ऐसा करके हम अपने को ही पुष्ट कर रहे होंगे.
वल्लभ ड़ोंगरे
पेश है
वल्लभ ड़ोंगरे की एक कविता चाहता हूं मैं

नहीं चाहता मैं
जानी जाओ तुम
ऐसे संबोधनों से
कि तुम हो
फलां की बेटी
फलां की बहन
फलां की पत्नी
फलां की मां।


चाहता हूं मैं
जानी जाओ तुम
अपने से, स्वयं से
हो तुम्हारा अपना वजूद
हो तुम्हारी अपनी पहचान

और जाने जाएं तुमसे
हम सब कि
गीता के पिता हैं आप
गीता के पति आप
गीता के बेटे आप

और फक्र हो हम सबको
होने में तुम्हारा
पिता, भाई, पति, बेटा।

(ये कविता प्रसिध्द कवि, लेखक श्री वल्लभ डोंगरे के कविता संग्रह 'पत्नी' से ली गई है। डोंगरे जी इससे पहले पिता और मां पर भी संग्रह निकाल चुके हैं। इस कड़ी में उनका अगला प्रयास बेटी पर कविता संग्रह निकालने का है । )

इसे भी देखें --- मेरी कविता

Thursday, February 10, 2011

हैप्पी वैलेंटाइन डे


wishing you all a happy & memorable valentine's day....


वैलेंटाइन डे पर सभी दोस्तों को मेरी ओर से बधाई। प्यार के रंग हजार होते है. आप जिस रंग में रंगे हो, बस प्यार कीजिये. एक बात और ... अगर कोई आपका प्यार स्वीकार ना करें तो उसे दोस्त बना लीजिये।

दोस्ती ता- उम्र बरक़रार रहे,
या खुदा जब तक ये संसार रहे।
हैप्पी वैलेंटाइन डे... मेरा वैलेंटाइन कौन है ... कहाँ है ... ये सवाल आपके मन में जरूर होगा . इसका जवाब तो मेरे पास हैं और कुछ लोगों के पास भी । इस बार मैं अपने वैलेंटाइन के पास ही रहूँगा ...

हैप्पी वैलेंटाइन डे

आपका दोस्त ...
तृष्णा
तंसरी

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Valenlines day प्यार : इक शै के रंग हजार

जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ

पूछता है दिल बार -बार

तुम कल जहाँ थी

प्यार का पहला ख़त