ओत्ता दूर मत ब्याहनूं भाऊ !
म s ख s ओत्ता दूर मत ब्याहनूं भाऊ !
जहाँ तुमी जा नी सक्य
पाय पाय।
ब्याहनूं इत्ता दूर कि
भेज सकहे तुम चीक , सेंगा , आम्बा ,
अउर नंगापचय की रोटी ,
आवन जान वाला का हाथ।
ब्याहनूं इत्ता दूर कि
सबेरे जा s ख स लोट सक्हे तुम
शाम तक अपनो घर।
मत ब्याहनूं ओका संग
जू डूब्यो रहये कर्जा म s
बठयो रहये महू का झाड़ प s
या पल्हे दूसरा का टुकडा प s
ब्याहनूं असो घर - वर ख s
कि नाम नाम्ना उड्हे तुमरो दूर -दूर
अउर हम रहय सक्हे
एक चना दो पवारी साई।
ब्याहनूं पवारी दूर कि
मिल सक्हे तुम अउर गाँव वाला ।
हाट बजार मेला ठेला म
ते पूछ सक्हे एक दूसरा की खबरमात ।
- वल्लभ डोंगरे , भोपाल
एच आई जी - 6 , सुखसागर विला , फेस - 1 ,
भेल , भोपाल - 462021
( पवारी साहित्य से एक कविता। रचनाकार है समाजसेवी , शिक्षाविद और सतपुड़ा संस्कृति संस्थान के प्रमुख वल्लभ डोंगरे जी। परिचय के रूप में बहुत कुछ लिखा जा सकता है । )
म s ख s ओत्ता दूर मत ब्याहनूं भाऊ !
जहाँ तुमी जा नी सक्य
पाय पाय।
ब्याहनूं इत्ता दूर कि
भेज सकहे तुम चीक , सेंगा , आम्बा ,
अउर नंगापचय की रोटी ,
आवन जान वाला का हाथ।
ब्याहनूं इत्ता दूर कि
सबेरे जा s ख स लोट सक्हे तुम
शाम तक अपनो घर।
मत ब्याहनूं ओका संग
जू डूब्यो रहये कर्जा म s
बठयो रहये महू का झाड़ प s
या पल्हे दूसरा का टुकडा प s
ब्याहनूं असो घर - वर ख s
कि नाम नाम्ना उड्हे तुमरो दूर -दूर
अउर हम रहय सक्हे
एक चना दो पवारी साई।
ब्याहनूं पवारी दूर कि
मिल सक्हे तुम अउर गाँव वाला ।
हाट बजार मेला ठेला म
ते पूछ सक्हे एक दूसरा की खबरमात ।
- वल्लभ डोंगरे , भोपाल
एच आई जी - 6 , सुखसागर विला , फेस - 1 ,
भेल , भोपाल - 462021
( पवारी साहित्य से एक कविता। रचनाकार है समाजसेवी , शिक्षाविद और सतपुड़ा संस्कृति संस्थान के प्रमुख वल्लभ डोंगरे जी। परिचय के रूप में बहुत कुछ लिखा जा सकता है । )
1 comment:
sundar atisundar srvottam
is kavita me mati ki khushboo hai
aapka pryas sundar hai jari rakho
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