Sunday, March 30, 2008

पवारी कविता : ओत्ता दूर मत ब्याहनूं भाऊ !

ओत्ता दूर मत ब्याहनूं भाऊ !

म s ख s ओत्ता दूर मत ब्याहनूं भाऊ !
जहाँ तुमी जा नी सक्य
पाय पाय।

ब्याहनूं इत्ता दूर कि
भेज सकहे तुम चीक , सेंगा , आम्बा ,
अउर नंगापचय की रोटी ,
आवन जान वाला का हाथ।

ब्याहनूं इत्ता दूर कि
सबेरे जा s ख स लोट सक्हे तुम
शाम तक अपनो घर।

मत ब्याहनूं ओका संग
जू डूब्यो रहये कर्जा म s
बठयो रहये महू का झाड़ प s
या पल्हे दूसरा का टुकडा प s


ब्याहनूं असो घर - वर ख s
कि नाम नाम्ना उड्हे तुमरो दूर -दूर
अउर हम रहय सक्हे
एक चना दो पवारी साई।


ब्याहनूं पवारी दूर कि
मिल सक्हे तुम अउर गाँव वाला ।
हाट बजार मेला ठेला म
ते पूछ सक्हे एक दूसरा की खबरमात ।

- वल्लभ डोंगरे , भोपाल
एच आई जी - 6 , सुखसागर विला , फेस - 1 ,
भेल , भोपाल - 462021

( पवारी साहित्य से एक कविता। रचनाकार है समाजसेवी , शिक्षाविद और सतपुड़ा संस्कृति संस्थान के प्रमुख वल्लभ डोंगरे जी। परिचय के रूप में बहुत कुछ लिखा जा सकता है । )

1 comment:

अमिताभ said...

sundar atisundar srvottam

is kavita me mati ki khushboo hai
aapka pryas sundar hai jari rakho