||मैं वेबिनार में हूं||
©® कवि - रामकृष्ण डोंगरे
मुझे ना छेड़ो यारों
मैं वेबिनार में हूं।।
ना मुझे तुम कॉल करो,
ना तुम वाट्सएप करो,
ना ही मुझे मैसेज करो।
समझा करो यारों,
मैं वेबिनार में हूं।।
तुमने सेमिनार का नाम तो सुना ही होगा,
वही जिसमें विद्वान वक्ता 1 घंटे के लेक्चर देते हैं
सेमिनार का समय होता है 11 बजे,
और श्रोता आते हैं 12 बजे तक,
मतलब सेमिनार 12 बजे ही शुरू होता है,
मगर कहने को सेमिनार 11 बजे होता है।
आज भी मैं तैयार हूं.
मैं वेबिनार में हूं।।
अब जमाना ऑनलाइन का है,
वीडियो कॉल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का है,
इसलिए तो सेमिनार नहीं वेबिनार होते हैं,
तो मैं तैयार हूं, हां मैं वेबिनार में हूं।।
देश-दुनिया में बैठकर
आप बोलते हैं,
आपको कोई भी, कहीं से भी
देखता है और सुनता है।
यह नए जमाने का व्यवहार है,
हां यही तो वेबिनार है।।
एक स्क्रीन पर हजारों चेहरे,
सितारों के जैसे जगमगाते हैं।
म्यूट, अनम्यूट का बटन दबाते ही,
ये सितारे तुरंत बोल पड़ते हैं,
हां यही वेबिनार है यारों।
सेमिनार में बैठकर
आप ऊंघते थे, सो भी जाते थे,
कई बार तो उठकर भाग जाते थे।
मगर यह वेबिनार है यारों,
आप गायब हुए तो पकड़े जाओगे,
इसीलिए अटेंशन रहकर बैठे रहो,
क्योंकि यह वेबिनार है यारों।।
©® रामकृष्ण डोंगरे
रचना समय : 18 अगस्त, 2020, भावना नगर, रायपुर
Tuesday, August 18, 2020
मेरी कविता : मैं वेबिनार में हूं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment