Friday, March 29, 2019

रीतेश के साथ...आठ साल के बाद

दिल्ली में साथ रहते थे। दिल्ली छूटी तो करीब 8 साल के बाद अब रायपुर में हम दोनों की मुलाकात हुई।

माखनलाल विवि भोपाल में एमजे के साथी रहे और छोटे भाई रीतेश पुरोहित इन दिनों भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल में पीआरओ के तौर पर कार्यरत है।

दुनिया में आप कहीं भी रहो। मिलजुल रहने के मौके हर जगह मिलते हैं। स्कूल कॉलेज और आफिस में भी। जहां आपको हर स्टेट के, जाति धर्म के लोग मिलते हैं। सब मिल-जुलकर रहते हैं। बिछड़ने के बाद भी आप उन्हें याद करते हैं।

रीतेश रायपुर आए थे 2 फरवरी 2019 को शुक्रवार रात 9 बजे। हमारी मुलाकात हुई शनिवार दोपहर करीब 2 बजे। और शाम 6-7 बजे हम विदा हो गए।

इन चंद घंटों में रीतेश की भोपाल की यादें ताजा कर दी। अरेरा कॉलोनी के उस छोटे से रूम की। जो बामुश्किल 3 बाय 6 रहा होगा। जिसमें मैंने दो साल गुजारे थे।

अपनों से मिलने की चाहत
रीतेश में साफ दिख रही थी।
बार बार एक ही सवाल - क्या एमजे से कोई और है रायपुर में

चर्चा 'ओ धर्मनाथ' की निकली।
रबिंद्र सर की निकलीं और

अंत में हमेशा के लिए बिछुड़कर दुनिया छोड़ चुके साथी सुदीप कुमार पर आकर खत्म हो गई।

कितना कम समय है आपके पास।
फिर भी लोग विचारधारा, प्रांत, जाति-धर्म के चक्कर में हमेशा लड़ते और झगड़ते रहते हैं।

मिल जुलकर रहिए
दोस्त बनाते रहिए...

|| दोस्त बनाओ, दुनिया बनाओ ||
 — with Ritesh Purohit atSmart-City-Raipur.

मेरी पहली मुंबई यात्रा-2

मुंबई... इस शहर में आपको कहीं भी जाना हो तो मुंबई की टैक्सियां मुंबई की लोकल (ट्रेन) और मुंबई के ऑटो सबसे बेस्ट ऑप्शन है, अगर आप कम खर्च में सफर करना चाहते हैं तो। वरना आप चाहे तो प्राइवेट टैक्सी ओला, उबेर भी बुक कर सकते हैं।
मुझे दादर ईस्ट में भोईवाड़ा इलाके में नायगांव जाना था। दादर स्टेशन के ईस्ट गेट से रात करीब 9 बजे बाहर आने के बाद मैंने शेयरिंग टैक्सी वाले से वहां छोड़ने के लिए कहा। वह तैयार हो गया। ₹10 टिकट लगा। पहली बार मुंबई की सड़कों पर निकला था. जिस समय और जिस इलाके से होकर मैं पहुंचा। वहां मुझे कुछ खास बदलाव नहीं लगा।
एक फ्लाईओवर के नीचे से गुजरकर नायगांव पहुंचा. टाटा मेमोरियल या आसपास के किसी और हॉस्पिटल में इलाज के लिए आने वाले मरीज और उनके रिश्तेदार जिन जगहों पर कमरे लेकर, बेड लेकर रुकते हैं. उनका हाल अब आप जानेंगे.
सावली केयर सेंटर… जी हां यही वह नाम था जहां पर रात को मुझे रुकना था और अगले 1 हफ्ते तक भी। यह सेंटर चैतन्य प्रतिष्ठान संस्थान के द्वारा संचालित था। दो मंजिला लेकिन टीन शेड वाला यह मकान अंदर से आपको फुली एसी और किसी होटल की तरह एहसास कराता है। यहां पर रियायती दर पर ₹100 प्रतिदिन के हिसाब से बेड मिलता है। कोई चाहे तो ₹3000 देकर सेपरेट रूम भी ले सकता था। ग्लास का पार्टीशन किए हुए छोटे छोटे रूम बने हुए। आप पूछेंगे वहां पर फैसिलिटी क्या थी। तो साफ सुथरा कमरा। बाथरूम। छोटी सी लाइब्रेरी और छोटा सा किचन। तमाम फैसिलिटी वहां पर थी।
सुबह उठते ही मैंने तैयार होकर टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल का रुख किया। वहां जाने के लिए मुझे बमुश्किल 10-15 मिनट लगे। वह भी पैदल ही। टाटा मेमोरियल तक पहुंचने में मुझे ज्यादा कोई परेशानी नहीं हुई। रास्ते में भोईवाड़ा पुलिस थाना भी आता है। टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की 3 या 4 बिल्डिंग है जिसमें मुख्य भवन, गोल्डन जुबली बिल्डिंग, एनएक्स बिल्डिंग और होमी भाभा शामिल है।
टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की सिक्योरिटी काफी टाइट है. सुबह एंट्री के समय 10 से 12 के बीच और रात को 7:00 बजे के बाद आपकी एंट्री रोक दी जाएगी, अगर आपके पास विजिटर कार्ड नहीं है। बाकी समय में आप एंट्री कर ही लेते हैं। हॉस्पिटल में आपको कहीं भी जाने के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं। हर कदम पर लोग आपकी पूरी हेल्प करते हैं। यहां तक कि दूरदराज से आए लोगों को परेशानी ना हो इसलिए मैप- नक्शा तक बना कर भेज देते कि आपको किसी वार्ड या ऑफिस में कैसे पहुंचना है।
टाटा मेमोरियल की मुख्य बिल्डिंग में सेकंड फ्लोर पर दो जनरल वार्ड हैं। ए विंग और बी विंग। एक विंग में लेडीज पैशेंट और एक में जेंट्स पैशेंट रहते हैं। यहां कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए एक अलग वार्ड है, जिसमें दिल का बहुत मजबूत इंसान ही एंट्री कर सकता है। ऐसा क्यों यह हम आपको बाद में बताएंगे...।
जिस वार्ड में हम थे वहां पर ज्यादातर मरीज गले के कैंसर वाले या मुंह के कैंसर वाले थे। इनमें भी बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल या साउथ के मरीजों की संख्या ज्यादा थी। कुछ यूपी- एमपी से भी थे। मुझे एक खास बात यह लगी कि नर्स, वार्ड बॉय और डॉक्टर, सभी हेल्पिंग नेचर के थे। यहां रहने वाले मरीजों के अटेंडेंट भी लोगों की हर तरह से मदद करते हैं।
आज मेरा हॉस्पिटल में पहला दिन था, इसलिए मैंने पूरा दिन हॉस्पिटल के सिस्टम को समझने में लगाया। जैसा कि मुंबई का सबसे बड़ा हॉस्पिटल है, इसलिए यहां पर तमाम सुविधाएं अत्याधुनिक किस्म की है। यानी दवाइयों के लिए आपको पहले से पेमेंट जमा करनी होती है, हॉस्पिटल के अकाउंट में। उसके बाद आप मरीज का टोकन नंबर या कार्ड नंबर लेकर कभी भी मेडिकल स्टोर से दवाइयां परचेज कर सकते हैं। इसके अलावा दवाइयां लेने के लिए आपको पर्ची लेकर नहीं घूमना पड़ता, दवाइयों की लिस्ट ऑनलाइन कर दी जाती है। आप मेडिकल स्टोर में जाकर आसानी से दवाइयां ले सकते हैं।
*अगली किस्त में आप पढ़ेंगे…*
👉 आखिर कैसी है मुंबई की लाइफ.
👉 मुंबई में लोकल ट्रेन के सफ़र की कुछ बातें
👉 और कैंसर पीड़ितों के लिए संचालित ट्रस्ट, धर्मशाला और संस्थान की बातें…
_*तो पढ़ते रहिए मेरी पहली मुंबई यात्रा…*_
शुक्रिया
_*रामकृष्ण डोंगरे*_