अकबर (पत्रकार एमजे अकबर और मोदी सरकार के पूर्व विदेश राज्य मंत्री) वाकई इंसान है। लेकिन सेक्स का भूखा...। उसके लिए लड़कियों की इच्छा कोई मायने नहीं रखती। वो सिर्फ उन्हें इस्तेमाल की चीज समझता हैं। इसी का परिणाम है कि देश और दुनिया में जारी मी टू मुहिम #MeToo #metooindia #MeToomoment में अपनी आपबीती लिखकर अब तक 20 महिलाएं उसको नंगा कर चुकी है। आगे और भी महिलाएं सामने आएंगी।
जो मर्द कहते फिरते हैं कि लड़कियां तो खुद अपने शरीर का इस्तेमाल करके कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ना पसंद करती हैं। वे जरा अपनी बेटियों, बहनों और बीवियों से ये सवाल पूछकर देखें। है हिम्मत तो। वर्ना सभी महिलाओं को एक चश्मे से देखना बंद करें।
सेक्स की जरूरत हर इंसान को होती है। लेकिन ये जरूरत जब भूख से ज्यादा बढ़ जाती है तो इंसान इंसान नहीं रहता। वो दरिंदा बन जाता है। भेड़िया बन जाता है। फिर अपने आसपास दिखने वाली हर लड़की या महिला को शिकार की नजर से देखता है।
ऐसा नहीं है कि ये भूख, हवस सिर्फ मर्दों में ही होती है। कई औरतें भी सेक्स की भूखी होती है। वे भी अपने आसपास मौजूद पुरुषों या लड़कों को शिकार बनाती है।
अकबर होगा बहुत बड़ा पत्रकार लेकिन मेरी नजर वो एक अच्छा इंसान बिल्कुल नहीं हो सकता। इंसान वो होता है जो दूसरों की इच्छा का ख्याल करें। जोर जबरदस्ती या सीधे हमले करने वाला सिर्फ भेड़िया ही हो सकता है।
मी टू मुहिम से दुनियाभर के एक एक करके सभी भेड़िए सामने आने चाहिए।
//धन्यवाद मी टू मूवमेंट //
त्वरित टिप्पणी...
*रामकृष्ण डोंगरे*
_*पेशे से पत्रकार और एक अच्छा इंसान भी_
Wednesday, October 17, 2018
त्वरित टिप्पणी : अकबर वाकई इंसान है, लेकिन...
Tuesday, September 11, 2018
दैनिक भास्कर : फेक न्यूज जान लेती है
*फेक न्यूज़ जान लेती है...*
WhatsApp, Facebook या किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर की जा रही फेक पोस्ट, फेक न्यूज़, फेक वीडियो किसी की जान भी ले सकती है.
*अगर इस बात को आप जान जाएंगे* तो फारवर्ड करने से पहले सौ बार सोचेंगे...
सोचिए और इन्हें फॉरवर्ड करने से करने से पहले थोड़ा सा वक्त निकालकर Google या YouTube या जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वापस सर्च कीजिए. आपको उनकी सच्चाई - असलियत पता चल जाएगी
... कि क्या आखिर यह पोस्ट, यह खबर हमारे शहर से जुड़ी है. क्या यह असली है. क्या यह गलत न्यूज़ है. यह कितने साल पुरानी है. तमाम बातें...
फेक न्यूज़ को को रोकना सिर्फ सोशल मीडिया एप्स कंपनी और मीडिया का ही काम नहीं है. ऐसी चीजों को रोकने में हर आम आदमी भी अपना योगदान दे सकता है. अगर वह चाहे तो...
*इसके लिए आपको यह करना चाहिए*
👉 सबसे पहले अगर आप WhatsApp इस्तेमाल करते हैं तो WhatsApp पर ऑटो डाउनलोड का ऑप्शन बंद कीजिए
👉 इससे कोई भी इमेज या वीडियो, ऑडियो अपने आप डाउनलोड नहीं होगा, जिससे आप या आपके परिवार आपके परिवार का कोई भी सदस्य देख सुन या पढ़ नहीं पाएगा.
👉 जब किसी वीडियो या पोस्ट के साथ कोई टेक्स्ट मैसेज लिखा होगा तो आप टेक्स्ट मैसेज पढ़ कर एक कर एक मैसेज पढ़ कर एक बार सोचेंगे कि क्या यह असली है या फेक है, इसी के बाद आप उस फाइल को डाउनलोड करेंगे..
दैनिक भास्कर में प्रकाशित इस खबर में पढ़िए दो ऐसे सोशल मीडिया वर्कर या एक्टिविस्ट, *59 साल के अकाउंटेंट श्री रमेश बालानी और 31 साल के असिस्टेंट प्रोफेसर अंशुल गुप्ता की कहानी*... जो अपना कीमती वक्त निकालकर लोगों को फेक न्यूज के प्रति अवेयर कर रहे हैं।
_*थोड़ा सा वक्त निकालकर आप भी पढ़िए दैनिक भास्कर में 10 सितंबर 2018 को प्रकाशित ये मंडे पॉजिटिव स्टोरी...*_
_फेक न्यूज और पोस्ट से क्या आप भी परेशान हैं तो इस पोस्ट को जरूर शेयर कीजिए..._
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Wednesday, September 5, 2018
क्या आप भी कॉपी- पेस्ट-फारवर्ड खेलते हैं?
*मैं भी कल गोल्ड मैडल लाया*
*पर मीडिया वाले*
*दिखा नहीं रहे*
*सब बिके हुए हैं।*
_ऐसे मैसेज, ऐसी इमेज के साथ वायरल किए जाते है। वायरल करने में साथ देने वाले अपने दिमाग़ का इस्तेमाल नहीं करते हैं। सोचने समझने की क्षमता वर्तमान पीढ़ी में बहुत ही कमज़ोर है। वे इसे मात्र हँसी का हँसगुल्ला समझते हैं। ऐसी वाहियात वायरल से किसका भला हो रहा है ! लाखों बार वायरल हो या हज़ारों बार, लेकिन प्रत्येक बार upload और download में हमारे अपने NET-pack में से Data-Loss होता है। हमारी अपनी आदतें ख़राब होती हैं। हमारी अपनी सोचने समझने की क्षमता शनै-शनै क्षीण होते जा रही है। कुछ समय शौक़ से व्हाट्सऐप पर गुज़ारने के बाद भी एक अजीब सी थकान महसूस होती है।_
_क्यों अपना शौक़ पूरा करने के बाद भी तरोताज़ापन महसूस नहीं होता ! कभी सोचते विचारते नहीं हैं। बस कॉपी-पेस्ट के लिए मसाला खोजने विचरते हैं।_
_कभी NET-pack से हुए अपने Data-Loss पर यह विचार नहीं करते कि इस वायरल से फ़ायदा किसे मिलता है ! कौन Profit कमा रहा है ! हमें बेवक़ूफ़ बनाकर कौन हमारा मज़ा ले रहा है !_
_*और*_… _*बात तब भी समझ में नहीं आती है इनको जब बेवक़ूफ़ बनाने वाला डेढ़-श्याना अपनी वाहवाही के क़िस्से गढ़कर, शेयर मार्केट में रजिस्टर होकर, बैंकों से कर्ज़ लेकर, कर्ज़ की रक़म और निवेशकों की रक़म डकारकर विदेश भाग जाता है। इनकी रहनुमायी में, हमारे ही वोटों की बदौलत जीत हासिल किए इनके माई-बाप, हमारी ही छाती पर मूँग दलने नये-नवीनतम् कर-आरोपण के पैकेज लेकर आते हैं। नाम देते हैं इसे "देश उभार का"। टोटली इमोशनल ब्लैकमेलिंग। फिर भी हम ऐसे किस्सों को नमकीन बनाकर वायरल करते फिरते हैं। कॉपी-कॉपी पेस्ट-पेस्ट खेलते हैं।*_
_धन्य हैं हम_, _जो कि हमारे गुरुओं से प्राप्त शिक्षा का सदुपयोग व्हाट्सऐप फेसबुक और इनके जैसी अन्य मुफ़्त सेवाओं पर कॉपी-पेस्ट-फ़ॉर्वर्ड का खेलते हुए अपनी बुध्दि विनशित (विनाश) कर रहे हैं।_
_हम जैसे बेवक़ूफ़ों के लिए भी एक सरकारी तिथि, एक सरकारी छुट्टी घोषित होनी चाहिए।_
_*Bewakoofz Day*_
_फ़र्स्ट एप्रिल *fools day* है जो कि विदेशी है।_
_हमारा अपना *स्वदेशी बेवक़ूफ़्ज़-डे* अलग बनना चाहिए।_
*H*_appy_ *T*_eachers_ *D*_ay_… 🙏🏼
Sunday, August 26, 2018
वाट्सएप ग्रुप में लेफ्ट का विकल्प कोई विकल्प नहीं होता...
ग्लोबल विलेज की तरफ कदम बढ़ाते हुए इस पोस्ट को जरूर पढ़े और विचार कीजिए...
*सोशल मीडिया खासकर वाट्सएप पर हमारा व्यवहार कैसा हो....*
गाँव और ग्रुप छोड़े नहीं जाते -
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दाल में कंकड़ की तरह नहीं, दाल की तरह रहें -
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ग्रुप हो या समाज, आपकी चरित्रावली भी लिखता है
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गाँव और ग्रुप छोड़े नहीं जाते।
गाँव में कुछ अच्छे तो कुछ ख़राब लोग भी होते हैं ,पर कुछ खराब लोगों के कारण हम अपना गाँव नहीं छोड़ देते।
गाँव की तरह ही ग्रुप में भी सब एक जैसे लोग नहीं होते।उसमें कुछ साक्षर ,कुछअर्द्ध शिक्षित ,कुछ शिक्षित , कुछ उच्च शिक्षित होते हैं। ग्रुप चाहे कर्मचारियों या शासकीय कर्मचारियों का ही क्यों न हों ,उसमें भी हर स्तर और हर प्रकार के कर्मचारी और अधिकारी होते हैं। स्पष्ट है सबका स्तर ,सबकी सोच ,सबका विचार रखने का तरीका एक सा नहीं हो सकता। हर सदस्य की शिक्षा ,पद ,अनुभव ,कार्य क्षेत्र ,कार्य अनुभव अलग अलग होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में हर सदस्य से स्तरीय पोस्ट की अपेक्षा करना न्यायसंगत और तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। कुछ भाग्यशाली सदस्यों के पास स्मार्ट मोबाइल पहले से हैं और वे पहले से व्हाट्सप्प पर सक्रिय है,अतः स्वाभाविक है वे उन पोस्ट से गुजर चुके हैं जिनसे नए सदस्य आज गुजर रहे हैं। अतः ऐसी स्थिति में पोस्ट का दोहराव स्वाभाविक है। और पुराने सदस्यों का इस स्थिति में संयम बनाये रखना जरुरी है। पुराने जब नए का स्वागत करते हैं तो नए सम्मान की संस्कृति सीखते हैं और पुराने उनसे सम्मान पाते रहते हैं। जो ऐसी स्थिति में सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं वे टिक जाते हैं और जो दाल में कंकड़ की तरह उनपके और अनघुले रह जाते हैं वे बाहर फिक जाते हैं।
इसे और अधिक स्पष्ट समझने के लिए इस वृतांत से गुजरना सुखद और समीचीन होगा -
एक 20 वर्ष का लड़का ट्रैन की खिड़की से बाहर झाँककर खेत ,पहाड़ ,नदी ,नाले ,पशु -पक्षी,आसमान ,बादल ,बारिश देखता और ख़ुशी से छोटे बच्चे की तरह उछल पड़ता। उसकी हरकत देखकर बर्थ पर बैठे अन्य लोग लड़के के पिता से बोले- 20 साल का लड़का अभी भी किसी छोटे बच्चे की तरह हरकत कर रहा है इसका इलाज क्यों नहीं कराते ? लड़के का पिता बोला -जी ,इसका इलाज करा कर ही आ रहा हूँ। यह जन्म से देख नहीं पाता था। सौभाग्य से इलाज (ऑपरेशन) सफल रहा और आज यह पहली बार अपनी आँखों से देख पा रहा है। पहली बार आँखों से देखने की ख़ुशी वह अपने व्यवहार से साँझा कर रहा है। जीवन में कई बार हमारे साथ भी ऐसा होता है हम बिना कुछ जाने विचारे किसी को कुछ कह देते हैं और जब वास्तविकता का पता चलता है तब हम माफ़ी माँगते हैं। पर कई बार माफ़ी भी काफी नहीं होती क्योंकि दिवार में ठोकी गई कील निकाले जाने पर भी दिवार में छेद तो छोड़ ही जाती है।
अनुज श्री बलवंत कडवेकर ,श्री राजेश बारंगे ,श्री महेंद्र डिगरसे ,श्री रमेश भादे और इन जैसे और भी कई सजग सदस्य ग्रुप को एक गाँव, बल्कि कहें कि ग्लोबल गाँव बनाने में लगे हुए हैं तो कृपया उनके इस प्रयास को वृतांत के उस लड़के की तरह गलत लेने से बचने का अनुरोध है ताकि ग्रुप बचा रह सके। ग्रुप बचा रह सका तो निश्चित ही भविष्य में कुछ सार्थक कर दिखाया जा सकेगा। लेफ्ट का विकल्प कोई विकल्प नहीं है। लेफ्ट हमारी कमजोरी है कि हम सामंजस्य बिठा पाने में सक्षम नहीं है। लेफ्ट करने वालों को आने वाले समय में ग्रुप के सदस्य जो जवाब देंगे उसकी आपके मन में कल्पना भी नहीं होगी। ग्रुप हो या समाज आपकी चरित्रावली भी लिखता है। सादर।
*वल्लभ डोंगरे ,सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।*
Saturday, June 9, 2018
डब्बू अंकल एंड बॉलीवुड
बीते जमाने के एक हीरो के आमंत्रण पर डब्बू अंकल ऐरोप्लेन से मुम्बई पधारे। इस हीरो को भी आखिरकार MP के पॉलिटिशियन्स की तरह VDV(viral dance video) स्टार डब्बू अंकल का सहारा लेना पड़ा ताकि खड्डे में पड़ा उसका फ़िल्मी कैरियर डब्बू नामकी रस्सी के सहारे बाहर आ सके। डब्बू अंकल के आते ही जुहू के उन बंगलों के बाहर भी ट्रैफिक जाम होने लगा जिनमें बहुत पुराने जमाने के हीरो रहते हैं और उनके लॉन मे चिड़िया भी बीट करने नही आती। ये सब इस चहलकदमी से खुश हैं। इन्हें लग रहा है कि इनकी किस्मत बदलने के लिए किसी नए डांसर बाबा का अवतरण हुआ है। भाड़े पर दी गयी प्रॉपर्टी से घरखर्च चलाने वाले और झुर्रियों भरा चेहरा लेकर अभी भी हीरो बनने का ख्वाब देखने वाले इन बहुत पुराने जमाने के हीरोज़ को कौन समझाये की जमाना अब हीरो का नही VDV स्टार का है।
FB न्यूजफीड पे डब्बू अंकल के बम्बई लैंडिंग की खबर सुनते ही लाखों की तादाद में मौजूद स्ट्रगलर्स को अपनी रोज़ी रोटी की चिंता सताने लगी है। इन्हें लगता है कि जनसंख्या में हुई इस अस्वाभाविक वृद्धि से उनके रोज़ के दारू मुर्गे में बेतहाशा कमी पैदा हो जाएगी। कुछ को तो चिंता के मारे मिर्गी के दौरे पड़ गए है, कुछ को जूता सुंघा कर होश में लाना पड़ा है। कोलीवाड़ा में दो-दो हाथ के कमरों में सदियों से रह रहे कुछ एक्टर तंग, बदबूदार, मच्छी-मुर्गे के मांस और गंदगी से बजबजाती गलियों से निकल कर वर्सोवा बीच पहुच गए हैं। इनका मानना है कि डब्बू अंकल की बॉलीवुड एंट्री ने उनके सपनों पर ग्रहण लगा दिया है। इसलिए अब उनके पास गंदगी से भरपूर इस कॉस्मोपॉलिटन दरिया मे अपने सपने को सुसाइड कराने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। इनमे से कुछ मरियल सिर्फ वड़ापाव के बल पर सालों से जिंदा है। पर्याप्त न्यूट्रिशन के बिना ज़िंदा रह कर इन लोगों ने मेडिकल साइंस को अचम्भे में डाल रक्खा है। इनसे गिरती सेहत के बारे में पूछने पर जवाब मिलता है कि जनाब एक फ़िल्म के लिए रोल प्रिपेयर कर रहे हैं। अरे ऐसा कौन सा रोल जिसकी प्रिपरेशन दस साल चलती है और ये बक*** अपना जीना मरना भूल सिर्फ उसी में लगा है।
कई बार तो इन्हें देख ऐसा लगता है कि ये अभी-अभी हेल हिटलर के यातना कैम्प से निकल कर बाहर आये है। कोलीवाड़ा के लोगों को इनके लिए सरकार से एक आंगनवाड़ी केंद्र खोलने की मांग करनी चाहिए, ताकि इन्हें दोनों वक़्त वडापाव की बजाय पर्याप्त मात्रा में पोषित आहार मिले और ये दुनिया के सबसे स्वस्थ और स्वच्छ देश के ऊपर कुपोषित होने का धब्बा न लगा पाएं। इन्हें देख मुझे कई बार खुद के ऊपर भ्रम होने लगता है लेकिन ये लोग न जाने किस फौलाद के बने है कि दशको की मुफलिसी भी मार ना पाई। इतनी गरीबी तो कालाहांडी में कई पीढ़ियाँ खा जाती है। इतना स्ट्रगल UPSC की परीक्षा में कर लोग IAS बन जाते है। और वो भी नही तो कम से कम अपने शहरों के छोटे-मोटे स्टीव जॉब्स तो हो ही जाते हैं।
खैर इतने सालों से इस शहर और इन एक्टरों के बीच रहने के बाद एक बात तो मुझे अच्छे से समझ मे आ गयी है कि इनकी इस दुर्दशा के पीछे कुछ खास लोगों का हाथ है। इन खास लोगों में से मैं सबके नाम नही ले पाऊंगा क्योंकि कुछ परलोकवासी हो गए है और परलोकवासियों से मुझे बहुत डर लगता है। न जाने कब ये अपनी अलौकिक शक्तियों का प्रयोग कर मेरे दस साल पुराने लैपटॉप की हार्डडिस्क उड़ा दें, जिसमे मुझे अमर बनाने वाली अनगिनत कहानियां सेव हैं। इसलिए मैं सिर्फ उन खास लोगो के नाम लूंगा जो ज़िंदा है। क्योंकि इस मायावी शहर में एक मच्छर भी खास लोगों को उनकी औकात दिखा देता है। यहां अब लोग भाई से नहीं मच्छरों से डरते हैं इसलिए मैं भी अब खुद को मच्छर मानकर उन खास लोगों के नाम लेता हूँ जिनकी वजह से इस शहर में लाखों की तादाद में मौजूद एक्टरों का बेड़ा गर्क हुआ है।
सबसे पहले तो बच्चन साब, नवाज़ुद्दीन, कंगना, अनुष्का, प्रियंका और राजकुमार राव सरीखे एक्टरों ने देशभर के लाखों करोड़ों नौजवानों को एक्टर बनने का सपना देकर भरमाया फिर रही सही कसर SRK ने ये कह कर पूरी कर दी कि अगर शिद्दत से किसी को चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने को साजिश में जुट जाती है। इसी साजिश का नतीजा है ये बेतहाशा भीड़ और भाड़ा, कोलीवाड़ा का। जिस कमरे की औकात 5000 रु महीने की नही, इस भीड़ की वजह से वो 12 हजार रुपये महीना मिलता है। पूरी कमाई भाड़े में घुस जाएगी तो आदमी खायेगा क्या, वड़ापाव!!!
इस साजिश में सिर्फ ये खास लोग शामिल नहीं है, इसमे इनके माँ-बाप, यार-दोस्त, चाचा, ताऊ, मामू भी बराबरी के हिस्सेदार हैं। बच्चा जरा सा गोरा क्या हुआ ये लोग उसे अंग्रेज समझने लगते हैं। भले ही उसकी नाक पकोड़ा हो और आंखे एक दूसरे को तिरछी रेखा में काटती हों लेकिन ये लोग तुरंत उसकी तुलना हीरो हेरोइन से कर बैठते हैं। अब ऐसा बच्चा जिसे बचपन से ही स्टारडम की लत लग गयी हो उसका मन भला स्कूल की बासी किताबों में लगेगा?? उसका मन तो अभिषेक, जैकी, कुमार गौरव, लव, मिमोह, आर्य, ईशा, उदय, अध्यन, तुषार, फरदीन, हरमन की तरह स्टारडम के पीछे ही भागेगा। सोते जागते जब उसे यही सुनने को मिले भाई तू अभी तक मुम्बई नहीं गया!! तो क्या वो अपने गांव में बैठ लिट्टी चोखा खायेगा??? उसका मन तो किसी अवार्ड सेरेमनी में गूंज रही तालियों की गड़गड़ाहट में अटका होगा।
बंबई आते ही सबसे पहले ये लोग एक्टिंग सीखने के लिए जिम जॉइन करते हैं। सालों साल लगातार एक्टिंग सीखने के दौरान माँ बाप की मोटी सेलरी कब पेंशन में बदल जाती है, लोखंडवाला की चमचमाती लेन्स से भागकर ये कब कोलीवाड़ा की बदबू मारती गलियों में पहुच जाते है, ज़िन्दगी कैसे सड़ा-गला मिस्सल बन जाती है इन्हें पता ही नहीं चलता। इनमे से कई आजीवन ब्रम्हचारी रह कर त्याग की भावना से ओतप्रोत रहते हैं। कई बहुत सारे रिलेशन और डिवोर्स के बाद बलिदानी की भूमिका में अदा करते हैं। फिर एक ऐसा वक़्त आता है जब ये घर के रहते है ना घाट के, तब ना शरीर साथ देता है ना मुखड़ा। तब इनमें एक अलग तरह का आत्मज्ञान जाग्रत होता है जो दबी कुचली आवाज़ में कहता है कि तू इस पके बाल और झुर्रीदार थोबड़े को किस मुह से अपने यार-दोस्तो, चाचा, ताऊ, मामू को दिखायेगा। पूरी लाइफ के स्ट्रगल के बाद यहीं हमारा हीरो हार मान जाता है। वो निराशा के समंदर में डुबकियां लगाते हुए डब्बू अंकल जैसे VDV स्टार से जलने लगता है। उसके मन मे इस उभरते हुए स्टार के लिए बुरी भावनाएं पनपती है जिन्हें वो रोकने में नाकामयाब रहता है, फिर वो सार्वजनिक तौर पर VDV स्टार्स का विरोध शुरू कर देता है।
ऐसे ही एक्टरों के एक दल ने बीते जमाने के उस हीरो के साथ अपने यूनियन की शरण ली है जिसके डांस की कॉपी कर डब्बू अंकल VDV स्टार बने हैं। इस हीरो का कहना है कि उसे भी डब्बू अंकल की पॉपुलैरिटी और कमाई में से कुछ हिस्सा मिलना चाहिए क्योंकि ओरिजिनल वो है, डब्बू उसका डुप्लीकेट। अब इन नामुरादों को कौन समझाए की ओरिजिनल/डुप्लीकेट कुछ नहीं होता। होती बस एक चीज़ है - एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और सिर्फ एंटरटेनमेंट।
VDV स्टार अमर रहे। डब्बू अंकल अमर रहें!!!!
|© *Chinmay Sankrit* |
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10214132234072188&id=1003276729
Wednesday, May 23, 2018
कर्नाटक शपथ ग्रहण के बहाने : राजनीति मेरा प्रिय विषय नहीं है।
राजनीति मेरा प्रिय विषय नहीं है।
फिर भी। आज कर्नाटक में शपथ ग्रहण की तस्वीर अपलोड करके सभी अपने अपने ढंग से लिख रहे हैं। लिख क्या रहे हैं मजे ले रहे हैं। फेसबुक पर ज्यादातर लोग मजे ही लेते हैं।
मजाक बनाते हैं किसी का। किसी सीरियस मुद्दे पर कोई पोस्ट होगी तो उस भी मजाक वाले कमेंट लिखेंगे। खैर।
मसला ये है कर्नाटक में विपक्ष एकजुट हुआ। इस लेकर खूब चटखारे लिए जा रहे हैं। अभद्र और अश्लील तक कमेंट किए जा रहे हैं। पूछिए क्यों। क्या आप भाजपा के कार्यकर्ता हो। आपको बुरा लग रहा है विपक्षी पार्टियों का एकजुट होना। या भक्त हो।
भई आप पहले देश के नागरिक। आप ये भी सोच सकते थे कि अच्छा हुआ विपक्ष एकजुट हो गया। अब सरकार के कामकाज में जहां खामी नजर आएगी। वहां विपक्ष पुरजोर ढंग से आवाज उठाएगा। सवाल करेगा।
लोकतांत्रिक देश के लिए सत्ता पक्ष के साथ - साथ विपक्ष का भी मजबूत होना जरूरी है। अगर ऐसा होता है तो देश के लिए अच्छा ही है। शुभ संकेत है।
मगर.... आप तो ठहरे भक्त। आप राम भक्त या हनुमान भक्त नहीं हो। हो ही नहीं सकते। आप भाजपा के चंद नेताओं के भक्त हो। जो सिर्फ उनकी चाटुकारिता करते हो। उनको अच्छी लगने वाली बातें लिखते हो। पोस्ट। फोटो शेयर करते हो।
अच्छा है भविष्य की जुगाड़ में लगे हो। लगे रहो।
लेकिन कभी चिंतन करो तो ये भी सोचना। देश में व्यक्ति बड़ा नहीं होता। पद बड़ा होता है। वो पद प्रधानमंत्री का। मुख्यमंत्री का। मंत्री का। सांसद या विधायक का हो सकता है।
इस पद पर बैठा व्यक्ति कोई देवता नहीं होता। कि आप उसकी पूजा करने लग जाओ। भक्त बन जाओ। उसकी आलोचना करने से आपके हाथ कांप जाए। कलम सूख जाए। जुबान बंद हो जाए।
... ध्यान रखिए। वो भी आपकी तरफ एक इंसान है। इस देश का एक नागरिक है। उसमें हजार अच्छाई होगी तो चंद कमियां और बुराइयां भी होगी। होती है। हर इंसान में होती है। ये बात अलग है कि आपकी नजर में वो देवता हो तो फिर कुछ नहीं किया जा सकता।
सरकार का काम ही अच्छी योजनाएं बनाना। अच्छा काम करना। अगर कोई सरकार लोगों की भलाई का काम नहीं करती है तो सवाल करना हर नागरिक का अधिकार है। गलत योजनाओं पर आलोचना करना भी जरूरी है।
ये बात अलग है कि आप सरकार की पार्टी से हो तो आपकी मजबूरी हो जाता है। सिर्फ तारीफ करना। क्या कहते हैं उसे चाटुकारिता...।
अब भी समय है।
देश के बारे में सोचिए...
देश की बात कीजिए।
नोट : असभ्य कमेंट लिखकर अपना परिचय मत दीजिए। लोग जान जाएंगे कि आप...।
Saturday, April 28, 2018
पत्थलगड़ी की आग... आखिर सच क्या है
*झारखंड के बाद छत्तीसगढ़ के जिलों में भी फैली*
झारखंड के बाद छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में आदिवासियों के जनाक्रोश को इसी नाम से पुकारा जा रहा है। मामला है आदिवासी गांवों और जिलों में पत्थर गाड़ने और यह लिखने का कि अब हमारे इलाके में सिर्फ ग्रामसभा ही सबकुछ तय करेगी। मतलब सीधे सीधे भारतीय संविधान को मानने से इंकार।
मैंने चंद रोज पहले ही इस शब्द पर गौर किया। जब 22 अप्रैल को जशपुर के एक गांव में पत्थलगड़ी की घटना हुई। मामला झारखंड से निकलकर अब छत्तीसगढ़ तक पहुंचा है। हालांकि यहां 1996 में सबसे पहले पत्थलगड़ी हुई थी।
*आइए देखते आखिर पत्थलगड़ी है क्या*
पत्थलगड़ी शब्द नक्सलबाड़ी जैसा प्रतीत होता है। सभी जानते हैं कि नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है, जहां भाकपा के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 में सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की थी। जो वर्तमान में आतंकवाद जैसा खतरनाक रूप ले चुका है।
बात करते हैं पत्थलगड़ी की। विकिपीडिया के मुताबिक कम से कम ईसा पूर्व 10वीं शताब्दी में पत्थलगड़ी अस्तिव में था। इसके तीन प्रकार माने गए है। जिसमें मृतकों की याद में, आबादी और बसाहट की सूचना देने वाले, अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन और खगोल विज्ञान संबंधी जानकारी देने वाले पत्थर को गाड़ा जाता है, इसे ही पत्थलगड़ी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ में इस घटना ने राजनीतिक रंग ले लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल यानी 17 फरवरी 2018 को अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय ने जशपुर जिले के घोरगढ़ी में पत्थलगड़ी का उद्धाटन किया था। जिसका वीडियो भी वेबसाइट पर उपलब्ध है। हालांकि अब वे कह रहे हैं कि मैंने वहां पूजा-पाठ की थी। मगर मैं नहीं जानता था कि ये पत्थलगड़ी है।
इस मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि भाजपा ने अब इसका विरोध करते हुए उन इलाको में जनजागरण के लिए सद्भभावना यात्रा शुरू कर दी है। इसकी अगुवाई केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता विष्णुदेव साय कर रहे हैं। उन्होंने इसे सरकार के खिलाफ साजिश बताया है। उधर विपक्ष यानी कांग्रेस इसे सरकार की नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश के रूप में देख रही है। शनिवार को सद्भाभावना यात्रा के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं ने पत्थलगड़ी को तोड़ने की कोशिश है। इसके बाद आदिवासी और भाजपा कार्यकर्ताओं में विवाद और झूमाझटकी हो गई।
*तो फिर पत्थलगड़ी का सच क्या है*
यह पता लगाना वैसे पुलिस और प्रशासन का काम है। लेकिन आम नागरिक के नाते है हम इसी किसी घटना का समर्थन नहीं कर सकते । जो भारतीय संविधान के खिलाफ हो। मगर यह पता लगाना भी जरूरी है कि आखिर झारखंड के बाद बार्डर से लगे छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में पत्थलगड़ी की आग क्यों फैल रही है। क्या वाकई में उन गांवों के आदिवासियों के साथ कुछ गलत हुआ है। क्या निजी कंपनियों ने वहां की जमीन पर गैरकानूनी ढंग से कब्जा कर लिया है। या उन इलाकों में प्रशासन के अफसरों की ओर से ज्यादती की जा रही है। या वहां पर विकासकार्य बिल्कुल ठप है। जिस तरह से खबरों में आया कि वहां 2013 के बाद रोजगार गारंटी योजना का पैसा तक नहीं मिला है। आखिर क्या वजह है।
*क्या सच में नक्सलवाद जैसा कुछ है*
सरकार को यह पता लगाना चाहिए कि कहीं इन घटनाओं के पीछे कहीं आपराधिक तत्वों का हाथ तो नहीं है। यानी सीधा सीधा नक्सलियों या नक्सल समर्थक लोगों का। आखिर आदिवासी ग्रामीण क्यों निर्वाचित सरकार के खिलाफ जाने जैसा कदम उठा रहे है। हालांकि उन्होंने ये भी साफ साफ कहा है कि हम सरकार के खिलाफ नहीं है। मगर हम ये भी चाहते हैं कि हमारे गांवों में जो कुछ भी हो, हम से यानी ग्रामसभा की परमिशन के बाद ही हो।
_*पत्रकार रामकृष्ण डोंगरे के फेसबुक वॉल से*_