दैनिक भास्कर रायपुर, 3 अप्रैल, 2016
दशक बीत गए... बचपन अब भी नंगे पांव
दैनिक भास्कर रायपुर में प्रकाशित फोटो जर्नलिस्ट सुधीर सागर की इस तस्वीर ने तीन दशक पहले बीते बचपन की याद को ताजा कर दिया। खास तौर पर स्कूल के दिन। साल 1985 से 1990 के प्राइमरी स्कूल के दिन। जब कई बच्चे नंगे पांव ही स्कूल जाते थे। मार्च-अप्रैल-मई की लू जैसी गर्मी में धूप से बचने के लिए दौड़ लगाते थे। गुलमोहर के पेड़ के नीचे खड़े होते थे। सड़क के किनारे चलते वक्त धूब यानी घास वाली जगह पर पैर रखकर चलते थे। सिर पर बस्ता भी रखते थे..... कितना मशक्कत होती थी तेज धूप से बचने के लिए। ये सच है कि कई बच्चों को पहनने के लिए जूते-चप्पल तक नहीं मिलते थे। बाद में पैरागाॅन, लखानी की चप्पलें आ गई। ....मगर कितने माता-पिता इन्हें बार-बार खरीदकर दे पाते थे। क्योंकि बच्चे तो चप्पल तोड़ेंगे ही।
तीन दशक बीत चुके हैं कि मगर गांव भी हालत सुधरे नहीं है। फिर गांव चाहे किसी भी राज्य के हो। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ या यूपी-बिहार। इसके लिए कौन जिम्मेदार है। गांव में बचपन आज भी अभावों में बीत रहा है।
Posted via Blogaway
Monday, April 4, 2016
दशक बीत गए... गांवों में बचपन अब भी नंगे पांव
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