Friday, January 16, 2009

मेल-मिलाप और परिचित का अपरिचित सा वो ख़्वाब

मेल-मिलाप और परिचित का अपरिचित सा वो ख़्वाब

शनिवार की देर रात तक काम करने के बाद मैं रविवार की छुट्टी यानी मस्ती, सोना, घूमना, जो मन करे वो करने का अहसास लिए दिल में अपने रूम तक आया. अगले दिन की छुट्टी है ही तो क्यों देर रात को भी टेलीविजन देख ही लिया जाए. यूँ भी देर रात टेलीविजन देखना एक अलग बात ही है. देर रात टेलीविजन यानी देर रात के कार्यक्रम. आह और ये तन्हाई! आप यकीन करें लोग जो महसूस करते हैं तन्हाई को, लोग जो भीड़ में होके भी अकेले रहते हैं...उनके लिए ये साधन वाकई लाज़बाब है।



सबसे पहले तो "डोंगरे" भाई से माफ़ी चाहूँगा कि उनके कहे मुताबिक मैं यह पोस्ट रविवार को ही न लिख सका. मेरा मन तो था मगर शाम ढलते ढलते दिल किन्हीं और ख़यालों व मुश्किलों की गिरफ़्त में कुछ ऐसा आया कि दिल में फ़िर अहसास भी नहीं पनपे कि कुछ लिखा जाए. लिखने को तो अभी भी दिल बहुत नहीं मग़र बहाव हो पड़ेगा ऐसा मुझे महसूस रहा है. ख़ैर, "डोंगरे" भाई की डायरी...! में लिखना यानी ख़ुद की डायरी की याद भी है. मैं ख़ुद भी अपनी डायरी आजकल नहीं लिख पाता. चाह कर भी नहीं. बस कभी-कभार ही लिख लिया करता हूँ. और आज अपने मित्र की डायरी में लिखने के लिए कलम पकड़ा दी गई है तो माज़रा भी कुछ न कुछ तो खास होगा ही. यूँ भी "डोंगरे" भाई आजकल व्यस्तता के चलते अपनी डायरी ख़ुद नहीं लिख पा रहे. माफ़ करना, थोड़ी सी हंसी आ रही है. सोच रहा हूँ, ये कितना अद्भुत और अलहदा अहसास है कि आप अपनी डायरी ख़ुद नहीं लिख पाते मगर दूसरों की डायरी लिखने का निमंत्रण पाके लिखना ही पड़ता है. बहरहाल, "डोंगरे" भाई की डायरी में लिखने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ तो मैं अब "डोंगरे" भाई की ही बातें लिखूँ तो ज्यादा रोचक रहेगा.
"बकौल डोंगरे जी मेरे शब्दों में"

शनिवार की देर रात तक काम करने के बाद मैं रविवार की छुट्टी यानी मस्ती, सोना, घूमना, जो मन करे वो करने का अहसास लिए दिल में अपने रूम तक आया. अगले दिन की छुट्टी है ही तो क्यों न देर रात को भी टेलीविजन देख ही लिया जाए. यूँ भी देर रात टेलीविजन देखना एक अलग बात ही है. देर रात टेलीविजन यानी देर रात के कार्यक्रम. आह और ये तन्हाई! आप यकीन करें लोग जो महसूस करते हैं तन्हाई को, लोग जो भीड़ में होके भी अकेले रहते हैं...उनके लिए ये साधन वाकई लाज़बाब है. बेशक आँखों का क्षणिक सुख हो. सो, डोंगरे भाई देर रात ड्यूटी से वापस आने के बाद मन की तन्हाई को टेलीविजन का साज़ देते हुए और भी देर कर देते हैं सोने में. रविवार का दिन छुट्टी वाला होने की वजह से अगले दिन ड्यूटी की बाबत कोई चिंता का विषय नहीं है. इसलिए ये रात भी आजाद है और रविवार अर्थ से भी आज़ाद. यह तर्क बहुत ज़्यादा ठीक तो नहीं मग़र काम-चलाऊ तो है ही. चूँकि लोग इस दिन भी किसी न किसी कारण से परतंत्र ही होते हैं.

दिल्ली जैसे शहर में सुबह होते वक़्त चिडियाएँ, कोयल, मुर्गे आवाज़ नहीं करते. बस आपकी घड़ी या फ़िर आपका मोबाइल बताता है कि सुबह हो गई मामू. अब तो जागो! और सर्दियों के मौसम में तो बिस्तर से वाहर आने का मन नहीं होता. मग़र आदत! इंसान को आदतन अपनी तरह चलाती रहती है. अब यह आदत पर डिपेंड करता है कि वो आदत अच्छी है या बुरी.

खैर, सुबह ९ बजे तक "डोंगरे" भाई आदतन जग गए. नित्य-कर्म किए. चूँकि इस रविवार न तो मेरा या किसी अन्य मित्र के साथ कहीं घूमने या फ़िर कोई फ़िल्म वगैराह देखने का प्रोग्राम था न कुछ प्रायोजन ही. तो बड़ा मुश्किल था कि आज क्या किया क्या जाए. ये दिक्कत है उस शख्स के साथ होती होगी जो दूसरे शहरों से दूसरे शहरों में आके किसी भी कारणवश रह रहे हैं. वाकी ५- या ६ दिन तो ऑफिस में गुज़र जाते हैं. शेष बचे हुए एक छुट्टी वाले दिन का अगर आपने प्रोग्राम नहीं सोचा है तो दिमाग पर दिन हावी हो जाता है जैसे छुट्टी के दिन का होना दुश्वारी हो कोई.

बकौल "डोंगरे" भाई के मोबाइल इनबोक्स में दो रोज़ पहले का इक खूबसूरत सँदेस पडा था, संदेश किसी परिचित का था मग़र अपरिचित सा. व्यस्तता इतनी रही कि न तो उस संदेश वाले नंबर पर "डोंगरे" भाई न तो फोन ही कर सके और नाहीं संदेश का जवाब ही तलब कर पाए. संदेश में आज मिलने की बाबत भी लिखा था. रविवार को मेल-मिलाप. खाली दिन खाली दिमाग. कुछ तो सूझेगा ही.

नहा धोके "डोंगरे" भाई यूँ ही रूम से वाहर निकल पड़े, कुछ न सूझा तो मोबाइल में ही घुस गए. एक जानकार लड़की का अनजाना सा संदेश फ़िर से देखकर डोंगरे भाई चौंके...लगा जैसे कोई चमत्कार हुआ है. मोबाइल में. कितने बरस हो गए हैं जब से "डोंगरे" भाई "मैं और मेरी तन्हाई" का आलम लिए फिरते हैं. मग़र को ऐसा अब तक नहीं मिला कि दो पल बाँट ही लेता तन्हाई को. मग़र इस संदेश में तन्हाई के बांटने की संभावना झलक रही थी. मिलन की बात लिखी थी. वाव! दिल खुश हो गया एक अनजान से संदेश का. कहीं ये कोई किसी का मजाक तो नहीं जो तन्हाई पर और भी भरी पड़े. इसी सोचा-विचारी में "डोंगरे भाई" ने मुझे फोन किया. जो भी था सब बताया, संदेश भी भेजा. जुम्मे की रात का ज़िक्र था उसमें...डोंगरे भाई का दिल कुलान्चों से फुदक रहा था. दिल से एक दुआ निकल रही थी...हे, भगवान्, ये सच हो जाए...तो क्या हो जाए! आह! इक मीठी सी आह! उस अपरचित खुशी के अहसास में डूब पडी...जिसके अहसास ने "डोंगरे भाई" को भिगो दिया.

मुझे सुबह ही पहले तो संदेश मिला फ़िर कुछ देर बाद (किसी कारणवश जब मैंने कोई जवाब तलब न किया तो) "डोंगरे" भाई ने मुझे फोन ही कर डाला...और लगे तन्हाई का रोना...इस बीच पूछ ही लिया "सागर" भाई क्या किया जाए...कहीं ये मजाक तो नहीं...जो हम पर हंस रहे हैं...उन्हें और हंसनी की कोई नई खुराक तो नहीं...मैं भी सोच में पढ़ गया...दरअसल, नव वर्ष के अगले दिन यानी २ जनवरी २००९ को मुझे भी एक खूबसूरत सा संदेश आया...नव वर्ष की वधाइयां थी, साथ में ई-मेल पता भी लिखा था. पर मैंने संदेश का जवाब मोबाइल से संदेश कर के नहीं दिया. मैंने कोशिश की जो भी ये अपरिचित है, क्यों न इनसे बात की जाए...दो बार नंबर मिलाया...१ बार फोन काट दिया गया तो दूसरी बार किसी ने फ़िर उठाया ही नहीं. ये आलम था कि फ़िर हमने भी सोच लिया, दिए गए ई-मेल पर नव वर्ष की वधाई व शुक्रिया कहा जाए और फ़िर कभी इस नंबर पर बात करने की कोशिश न की जाए. ये वाकया मुझे "डोंगरे" भाई के संदेश के कारण सहज ही याद आ गया. मैंने फोन पर ही "डोंगरे" भाई को इस बाबत बताया भी. और अंततः मैंने सलाह दी: आपको फोन ही कर लेना चाहिए. बात होगी तो बस हो ही पडेगी...फ़िर जो होगा..अच्छा होगा. इसी सिद्धांत पर डोंगरे भाई ने फोन कर ही डाला. वाव! मैं इंतज़ार में था...देखें तो सही क्या हुआ...?

बहुत देर के बाद "डोंगरे" भाई का फोन आया. "डोंगरे" भाई की आवाज़ से ही पता चल रहा था कि जो भी हुआ है बड़ा सुखद हुआ है. "डोंगरे" भाई की खुशी का कोई ठिकाना नहीं लग रहा था. बहुत खुश! अरे क्या हुआ भाई! "डोंगरे" भाई ने बताया- मेरी उस लडकी से बात हो गई...अरे यार में उसको अच्छी तरह जानता हूँ. अब मेन बात ये है कि वो लड़का तलाश रही है और मैं लडकी...

इस पर मैंने जो दो मिसरे लिखे वो कुछ यूँ हैं:
यूँ जो आपसे मुलाक़ात हुई सहरा में जैसे बरसात हुई
---
"डोंगरे" भाई के लिए तमाम दुआएं...
आगे-आगे जो ही मग़र हमें ज़रूर बताएं.
होनी हो अच्छे तो हो जाए शुरुआत अभी,
हो जो भी मग़र तन्हाइयां कट जाएँ
--
आपका;
अमित के सागर
उल्टा तीर मौजे-सागर

2 comments:

Udan Tashtari said...

हम भी डोंगरे जी को शुभकामनाऐं दिये देते हैं, शायद हमारी शुभकामनाऐं ही काम कर जायें. :)

Shamikh Faraz said...

online dairy ke lie lakh lakh badhai.