तारीखें याद आती है...
9 अगस्त : मेरे जीवन की क्रांति का दिन
आज है 9 अगस्त...। 9 अगस्त यानी अगस्त क्रांति का दिन। और यही नौ अगस्त मेरे जीवन में भी क्रांति का दिन है। मुझे अच्छी तरह याद है साल 2000 का 9 अगस्त। जिस दिन मेरी आवाज रेडियो के जरिये छिन्दवाड़ा जिले में गूंजी थी ... जी हां, आकाशवाणी के छिन्दवाड़ा स्टेशन से।
आकाशवाणी यानी रेडियो मेरी लाइफ में खास जगह रखता है। कह सकते हैं कि इसी से प्रेरणा लेकर मैं जीवन पथ पर आगे बढ़ता गया। जिसकी बदौलत मैं आज कुछ बेहतर स्थिति में हूँ । रेडियो से मेरा इंटरव्यू बॉडकास्ट होने के साथ ही मेरा रेडियो से नाता जुड़ता ही चला गया। इंटरव्यू के बाद इंटरव्यू ... रेडियो की गतिविधियां बढ़ती गई ... और फिर मेरा रेडियो रूपक भी आकाशवाणी छिन्दवाड़ा से रिले हुआ। जिसके लिए मैं कार्यक्रम अधिकारी आदरणीय डॉ। हरीश पराशर रिशु सर का हमेशा आभारी रहूंगा। और देखा जाए तो रिशु सर जैसे लोगों के मार्गदर्शन केचलते ही मैं एक छोटे से क़स्बे से निकलकर दिल्ली जैसे बड़े शहर तक आ पाया।
रेडियो से जुड़े संस्मरण, किस्से, यादें और बातें तो मेरे पास कई है, मगर यहां मैं खासतौर पर 9 अगस्त से जुड़े बातें आपके साथ शेयर करना चाहूंगा।
कैसे मिला रेडियो पर इंटरव्यू देने का मौका
आकाशवाणी से यूथ केलिए एक खास प्रोग्राम होता है युववाणी। जिसमें अलग-अलग दिन कई दिलचस्प और जानकारी से लबरेज कार्यक्रम होते हैं। ऐसा ही एक कार्यक्रम सात सवाल मेरा पसंदीदा प्रोग्राम हुआ करता था। इसे मैं 1995 से लगातार सुनता आ रहा था। सात सवाल बेसिकली सामान्य ज्ञान के सवालों पर आधारित प्रोग्राम है।
उस ह$ ते के प्रोग्राम केसभी सातों सवालों का जवाब देना वाला मैं एकमात्र श्रोता था। इस प्रोग्राम के विजेता को पुरस्कार के बदले युववाणी के लिए एक इंटरव्यू देना का मौका मिलता था। मुझे भी इसीलिए मौका मिला। इससे पहले भी विजेता रहा था, मगर झिझक के चलते मैं आकाशवाणी नहीं आ पाया।
पहले इंटरव्यू का अनुभव
मेरा पहला इंटरव्यू मशहूर एनाउंसर आदरणीय अवधेश तिवारी जी ने लिया था। मुझे अच्छी तरह याद है, इसकेलिए उन्होंने कई बार रीटेक किया था। पहली दफा आकाशवाणी आना, स्टूडियो देखना और इंटरव्यू देना मेरे लिए रोमांचक अनुभव था।
अवधेश तिवारी जी मेरा इंट्रोडेक्शन कुछ इस अंदाज में दिया था- छिन्दवाड़ा में एक छोटा-सा गांव है तन्सरामाल ... और यहां रहते हैं एक उत्साही नौजवान रामकृष्ण डोंगरे...। इस पहले इंटरव्यू के बाद मैंने और भी इंटरव्यू इस प्रोग्राम के लिए दिए ...। पहला इंटरव्यू तो मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा ही मगर एक और इंटरव्यू मेरे लिए खास है।
उस इंटरव्यू में मुझसे दो लोगों ने बातचीत की थी। एक थे एनाउंसर धीरेन्द्र दुबे और दूसरे थे एक सीनियर कार्यक्रम अधिकारी ... जिनका नाम मैं भूल रहा हूं। शायद शशिकांत व्यास सर थे. इस लंबे इंटरव्यू में कई सवाल थे, और मेरी कुछ कविता भी शामिल थी।
मेरी यही दीवानगी बाद में मेरे काम आई...
अंत में फिर से 9 अगस्त के इंटरव्यू का जिक्र करना चाहूंगा ... उस दिन हमारे नये घर का काम चल रहा था। मैं जल्दी काम पूरा करके उमरानाला पंहुचा और उस इंटरव्यू को रिकार्ड करवाया। जब मैं इंटरव्यू को रिकार्ड को रिकार्ड करवा रहा था, उस वक्त दूकान पर लोगों की भीड़ मेरा ... तन्सरामाल... उमरानाला ... का नाम सुन रही थी ... मुझे कांटों तो खून नहीं।
.... रेडियो के प्रति मेरी दीवानगी का ये आलम था कि इसे मैं अपना पहला प्यार कहता था... सात सवाल के उत्तर खोजना मेरे लिए जीवन-मरण और प्रतिष्ठा का प्रश्न होता था... एक- एक सवाल के उत्तर के लिए मैं अपनी सारी किताबें, नोटबुक और डायरियां उलट-पुलट डालता था। इसके अलावा सारे मित्रों-पड़ोसियों के यहां भी खाक छानता फिरता था।
मेरी यही दीवानगी बाद में मेरे काम आई...।