"महिलाएं काम के मामले में बहुत सिंसियर, ईमानदार होती है। वे हर टास्क को सिंसेरली पूरा करती है। जबकि पुरुष वर्ग के कई साथी हमेशा लापरवाही करते नजर आते हैं।" -
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हिंदी के एक बड़े समाचार पत्र समूह ने ऐलान किया है कि अगले 1 वर्ष में प्रिंट और डिजिटल के लिए 50 महिला पत्रकारों की नियुक्ति करेगा। पत्रकारिता में महिला की स्थिति बाकी फील्ड की तरह ही है। मतलब उंगलियों पर गिनने लायक नाम। और कुछ जगह तो एक बड़ा शून्य…।
लगभग दो दशक के अपने पत्रकारिता सफर के आधार पर ही इस पर चर्चा करता हूं। 2003-04 में आकाशवाणी छिंदवाड़ा के इंटरव्यू के दौरान का किस्सा है। वहां एनाउंसर, कंपेयर के रूप सबसे ज्यादा महिलाओं का ही सलेक्शन हुआ था। यह अच्छा संकेत माना जा सकता है कि लगभग 40 नियुक्तियों में 36 महिलाएं थी।
जब मैंने 2003 में लोकमत समाचार छिंदवाड़ा ज्वाइन किया। वहां पर भी कोई महिला पत्रकार नहीं थीं। लोकमत ब्यूरो में लगभग 8-10 लोगों का स्टाफ था। भोपाल के स्वदेश समाचार पत्र में भी साल 2004 के दौरान कोई महिला पत्रकार नहीं थीं। अगले संस्थान सांध्य दैनिक अग्निबाण में जरूर एकमात्र महिला पत्रकार आरती शर्मा थीं।
इसके बाद मेरे अगले संस्थान 'राज्य की नई दुनिया भोपाल' में एक महिला पत्रकार स्नेहा खरे की एंट्री हुई, इसमें छोटी सी भूमिका मेरी भी रही। मुझसे कहा गया था कि एक महिला पत्रकार चाहिए। उस वक्त स्नेहा किसी छोटे अखबार या मैग्जीन में थीं। इन दिनों वे मध्यप्रदेश के किसी सरकारी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर है। सबसे बड़े समाचार पत्र दैनिक भास्कर में उन दिनों दो महिला पत्रकार काफी सीनियर थीं, जिनमें नीलम शर्मा और रानी शर्मा का नाम है। इसके अलावा दिव्याज्योति पाल जैसे और भी कुछ नाम है। साल 2007 में मैंने अमर उजाला नोएडा ज्वाइन किया। यहां कुछ साल बाद दिव्याज्योति पाल ने भी ज्वाइन किया था। इस बड़े संस्थान में आधा दर्जन के करीब महिला पत्रकार रही होगी। इधर दैनिक भास्कर रायपुर में फिलहाल एक महिला पत्रकार लक्ष्मी कुमार है, जो कि सिटी भास्कर में कार्यरत है। और मेरे नए संस्थान में कोई महिला पत्रकार नहीं है।।
… तो महिला पत्रकारों की संख्या मीडिया में, खासकर प्रिंट मीडिया में काफी कम है। जब उन्हें मौका ही नहीं दिया जाएगा तो उनकी तादाद कैसे बढ़ेगी। महिला पत्रकारों को हमेशा हेल्थ बीट, एजुकेशन बीट या लाइफस्टाइल या आर्ट एंड कल्चर कवर करने के लिए ही कहा जाता है। बहुत कम नाम ऐसे होते हैं छोटे शहरों में, जिन्हें क्राइम बीट या पॉलिटिकल बीट या बड़ी और बीट भी दी जाती हो।
दूसरा उन्हें समय-समय पर प्रमोशन भी नहीं मिलता। अगर वह देर तक काम करने को खुद तैयार हैं तो उन्हें इसकी भी इजाजत नहीं दी जाती। जबकि हम समानता की बात करते हैं तो आज के समय में महिला - पुरुष में कोई अंतर नहीं है। जितना श्रम पुरुष करते हैं, उतना ही श्रम महिलाएं भी कर सकती है। और करती ही है। अमर उजाला नोएडा में हम जब 2:30 बजे रात को ऑफिस से घर के लिए निकलते थे, तो हमारे साथ दो-तीन महिला पत्रकार हुआ करती थीं। बकायदा उनको सबसे पहले ड्रॉप किया जाता था।
महिलाओं का ख्याल रखना। या महिलाओं की सुरक्षा का ध्यान रखना, यह सब तो जरूरी है ही लेकिन उन्हें अवसर प्रदान करना और उनकी योग्यता का यथोचित सम्मान करते हुए उन्हें आगे बढ़ाना भी जिम्मेदारी बनती है सभी संस्थानों की। लेकिन पत्रकारिता फील्ड ही क्यों, सभी सेक्टर इसमें पीछे ही रहते है। महिलाओं को पुरुषों के समान वेतन भी नहीं दिया जाता। और मौके तो क्या ही दिए जाएंगे।
महिलाओं के नाम से कुछ सीनियर्स को 'डर' भी लगता है। इस वजह से भी उन्हें मौके नहीं दिए जाते। दूसरा महिलाओं पर इस तरह के आरोप भी लगाए जाते हैं कि वे आगे बढ़ने के लिए 'दूसरे' रास्ते अपनाती है। जबकि यह अपवाद ही होगा। आगे बढ़ना तो हर व्यक्ति चाहता है। लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि कौन या सिर्फ महिला गलत रास्ते अपनाती है। पुरुष भी इस मामले में पीछे नहीं हैं, जो कि अपने बॉस, सीनियर्स की 'अनावश्यक तारीफ', चापलूसी, टीटीएम करके अपने नंबर बढ़ाने में लगे रहते हैं। जबकि उनका काम देखा जाए तो 'शून्य' होता है। वहीं महिलाएं काम के मामले में बहुत सिंसियर, ईमानदार होती है। वे हर टास्क को सिंसेरली पूरा करती है। जबकि पुरुष वर्ग के कई साथी हमेशा लापरवाही करते नजर आते हैं।
अब हम मीडिया में हाई लेवल पर महिला पत्रकारों की संख्या गिनते हैं। तो पूरे इंडिया में दो-चार या आधा दर्जन नाम ही होंगे है, जो प्रिंट में संपादक के स्तर पर पहुंचे होंगे। लेकिन हम अगर हिंदी पत्रकारिता के प्रमुख राज्य चाहे वह यूपी-बिहार या मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब देखें तो अभी भी कोई बड़ा नाम हमें नजर नहीं आता। जो संपादक लेवल पर हो। हालांकि दैनिक भास्कर समूह ने अच्छी शुरुआत की है भोपाल में उपमिता वाजपेयी को स्थानीय संपादक बनाकर। अब एक साल में 50 महिला पत्रकारों की नियुक्ति के ऐलान ने नई उम्मीद जगाई है। दैनिक भास्कर समूह की यह बेहतरीन पहल दूसरे पत्रकारिता संस्थानों को भी प्रेरित करेगी कि अपने यहां ज्यादा से ज्यादा महिला पत्रकारों को स्थान दें। साथ ही उन्हें आगे बढ़ाने के लिए अवसर भी प्रदान करें। उन्हें पुरुषों के समान वेतन भी दें।
(लेखक रामकृष्ण डोंगरे करीब दो दशक से प्रिंट मीडिया में सक्रिय है। आपने पत्रकारिता की शुरुआत मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के लोकमत समाचार से की थी। इन रायपुर छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित अखबार में डीएनई के रूप में कार्यरत है।)