Thursday, January 28, 2021

किसानआंदोलन2020 : क्या आप किसान परिवार से नहीं हो?

©® पत्रकार और ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे 
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दिल्ली और किसान आंदोलन… पिछले 2 माह से दिल्ली के आसपास किसानों का आंदोलन चल रहा है. तीन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर 27 नवंबर 2020 से चल रहे इस आंदोलन में 26 जनवरी को दिल्ली का घटनाक्रम लोगों के लिए आश्चर्यजनक रहा। एक तरह से किसान आंदोलन से मुंह फेरने जैसा रहा। 

असलियत तो यही है कि देश में किसानों का मुद्दा है और रहेगा और इसे लेकर चल रहा आंदोलन भी सही है। अब बात करते हैं कि 26 जनवरी को दिल्ली में क्या हुआ… 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली की जो योजना बुजुर्ग किसान नेता ने बनाई थी, उसमें कहीं कोई गड़बड़ी नहीं थी। युवाओं ने, युवा जोश ने उस दिन का माहौल खराब कर दिया। वे रैली निकालने के लिए जल्दबाजी में थे। इसके अलावा तय रूट को छोड़कर अन्य रास्तों से आगे बढ़ना चाहते थे। और किन्हीं 1-2 खुराफाती युवाओं के दिमाग में यह बात आई होगी कि दिल्ली के लाल किले तक चलते हैं. और इस तरह आंदोलन को बिगाड़ने की कोशिश की गई. 

… जैसा कि सभी जानते हैं देश में दो विचारधाराएं काम करती है. एक हमेशा सत्ता पक्ष का सपोर्ट करती है। और दूसरी विपक्ष के साथ खड़ी नजर आती है। सत्ता पक्ष के पास अपना गणित है, वह अपना स्वार्थ देखते हैं. उन्हें हर उस बात से नाराजगी है जो सरकार से सवाल करें या सरकार के खिलाफ बोले। 

वहीं विपक्ष किसानों या आम लोगों के साथ है। जहां तक किसानों का मुद्दा था, ज्यादातर मध्यमवर्ग किसानों के साथ ही है। लेकिन विचारधारा के खूंटे से बंधे कुछ लोग, जो स्वयं देश की सबसे बड़ी आबादी किसान परिवार से आते हैं, बावजूद इसके वे किसानों के साथ खड़े नहीं होना चाहते। 

अब लोग कहते हैं कि जो दिल्ली में किसान आंदोलन चल रहा है, उसमें हमारे यहां का किसान नहीं है तो हम उनके साथ क्यों खड़े हो। तो असलियत सब जानते है कि दिल्ली के किसान आंदोलन में पंजाब, हरियाणा, यूपी और राजस्थान के सबसे ज्यादा किसान हैं। इसकी वजह है दिल्ली के आसपास होना। और बाकी राज्यों के किसानों की तुलना में उनकी मजबूत आर्थिक स्थिति। …क्योंकि इस आंदोलन में बहुत पैसा खर्च हो रहा है। इतना समय और पैसा खर्च करने की हैसियत सच कहे तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के छोटे किसानों में नहीं है। 
2 महीने से जारी किसान आंदोलन में जिस तरह से रोज खबरें आ रही थी, देश का हर नागरिक इसकी तारीफ ही कर रहा था। शांतिपूर्ण ढंग से, बिना किसी शोर-शराबे के किसानों का धरना जारी था। वार्ता चल रही थी। सरकार बातचीत कर रही थी। हां एक बात यह है कि किसान कृषि बिलों की वापसी के अलावा किसी और बात पर तैयार नहीं है। और सरकार भी बिल वापस नहीं करना चाहती। यहीं पर पेंच फंसा हुआ है। इतना सब होने के बाद भी लोग किसान के साथ है और किसान के साथ रहेंगे। 

… गांव से निकलकर शहर में पहुंचने वाला हर कोई शख्स जानता है कि उसके माता-पिता ने उसे शहर क्यों भेजा। गांव में क्या दिक्कत है। किसानों की क्या समस्या है। सब जानते हैं लेकिन भक्त बनकर अपने तथाकथित भगवान के लिए तालियां बजाना, किसे अच्छा नहीं लगता। तो जिसे अच्छा लगता है। वो बजाते रहे। लेकिन सच्चाई यही है कि किसानों की समस्याएं विकराल है। और उसका हल कोई नहीं निकालना चाहता। इसीलिए हमारे किसानों को इतना बड़ा आंदोलन चलाना पड़ रहा है। 
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Wednesday, January 27, 2021

साईं सिमरन सोसाइटी में 72 वें गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण

उत्कृष्ट कार्यों के लिए रामदुलारी कुमारी और भारती डोंगरे सम्मानित 

रायपुर। शंकर नगर इलाके में भावना नगर स्थित साईं सिमरन सोसाइटी में गणतंत्र दिवस पर अध्यक्ष मुकुल वर्मा ने ध्वजारोहण किया। इस दौरान बेहतर काम के लिए रामदुलारी कुमारी, भारती डोंगरे, सुनीता सिंह, सोसाइटी के कर्मचारी राजू और कमला को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में कुशाग्र, रीति टांक आदि बच्चों ने देशभक्ति गीतों की प्रस्तुति दी। इस मौके पर स्वर्ण सिंह चावला, संजय सिंह, भूपेंद्र परमार, विकास पाठक, प्रसाद कामाविसदार, उज्जवल चक्रवर्ती, चंद्रशेखर पांडेय, वायपीएस परिहार, ज्योति टांक, कविता त्रिपाठी, मौसमी रानी, माधुरी टांक आदि रहवासी मौजूद थे।

Tuesday, January 26, 2021

डायरी : हम आपस में मिलना-जुलना क्यों नहीं चाहते?

*हम लोग एक- दूसरे से बात क्यों नहीं करते?*

*हम आपस में मिलना-जुलना क्यों नहीं चाहते?* 

~~~*पत्रकार व ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे* ~~~ 
---मेरी डायरी के पन्नों से---

जीवन में अगर हम लोगों से मिलेंगे नहीं, बात नहीं करेंगे तो हमारे इंसान होने का क्या मतलब. हम इंसान होने की वजह से एक दूसरे के साथ अपनी फीलिंग को शेयर कर सकते हैं। लेकिन आज के दौर में हम शेयर नहीं कर रहे हैं। 

एक वह दौर था, जब हम चिट्ठी लिखा करते थे. चिट्ठी के जरिए अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाया करते थे. फिर उनके उत्तर का इंतजार करते थे. ऐसे में अगर हमारी दोस्ती हो जाती थी तो हम उनसे मिलने के लिए कई किलोमीटर का फासला तय करते थे. मैं अपनी बात करूं तो मैंने अपने मोहल्ले, गांव या स्कूल के बाहर लोगों से दोस्ती के लिए पहला माध्यम आकाशवाणी यानी रेडियो को चुना. जब हम फरमाइशी प्रोग्राम में चिट्ठी लिखा करते थे तो वहां से हम नए मित्र तलाशते थे. जिनके नाम याद रह जाते थे। उन्हें बार बार याद करते थे। इसके अलावा कार्यक्रमों की प्रतिक्रिया के पत्र पहुंचते थे, और जब लोगों के विचार हमें अच्छे लगते थे, तो हम उनकी तरफ चिट्ठी लिखकर दोस्ती का हाथ बढ़ाते थे. कई चिट्ठियों तक सिलसिला चलने के बाद मिलने का समय आता था.

एक वाकया मुझे याद आता है। ऐसे ही एक रेडियो मित्र, पेन फ्रेंड से मिलने के लिए हमने जिला मुख्यालय छिंदवाड़ा से तामिया के पातालकोट का 60 किमी का सफर यूं ही तय कर लिया था। बिना किसी खास वजह के। पातालकोट पहुंचने के बाद हमें पता चला कि उस मित्र का घर जंगल वाले पैदल रास्ते में कई किलोमीटर दूर है। तो बड़ी मुश्किल से हमने उसका घर खोजा। मिलते ही हमारी सारी थकान दूर हो गई। मित्र ने तुरंत हमें गरमा गरम पकौड़े खिलाएं. 

… तो एक दौर वह था। और आज जब एक मोबाइल हमारे हाथ में है और हमें "कर लो दुनिया मुट्ठी में" कहकर यह मोबाइल थमाया गया है, वाकई पूरी दुनिया हमारी मुट्ठी में है. हम मात्र एक क्लिक से हमारे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर किसी भी अपने परिचित या किसी भी क्षेत्र में सक्रिय या हमारे आदर्श व्यक्ति से हम मैसेज पर बातचीत कर सकते हैं। कॉल भी कर सकते हैं। लेकिन आज के दौर में देखा जा रहा है कि हम किसी से भी दिल से बातें नहीं करना चाहते। मिलना नहीं चाहते। अगर किसी को यूं ही फोन लगा लो तो उधर से तुरंत पूछा जाता है कि कोई काम था क्या। 

ऐसे में मिलने की और रिश्ता बनाने की बात क्या करें। 
ज्यादा दूर की बात ना कि जाए तो शहरी जिंदगी में अपार्टमेंट कल्चर में हम अपने पड़ोसियों से भी करीबी रिश्ता नहीं रख पाते। इसमें कहां कमी है। इस पर हमें विचार करना चाहिए। इसके अलावा अपने दोस्तों से और रिश्तेदारों से भी हमें गाहे-बगाहे बातचीत करते रहना चाहिए। साथ ही किसी ना किसी बहाने मिलना भी चाहिए। 


~~~*आपका दोस्त रामकृष्ण डोंगरे* ~~~
---मेरी डायरी के पन्नों से/26 जनवरी, 2021---