©® पत्रकार और ब्लॉगर रामकृष्ण डोंगरे
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दिल्ली और किसान आंदोलन… पिछले 2 माह से दिल्ली के आसपास किसानों का आंदोलन चल रहा है. तीन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर 27 नवंबर 2020 से चल रहे इस आंदोलन में 26 जनवरी को दिल्ली का घटनाक्रम लोगों के लिए आश्चर्यजनक रहा। एक तरह से किसान आंदोलन से मुंह फेरने जैसा रहा।
असलियत तो यही है कि देश में किसानों का मुद्दा है और रहेगा और इसे लेकर चल रहा आंदोलन भी सही है। अब बात करते हैं कि 26 जनवरी को दिल्ली में क्या हुआ… 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली की जो योजना बुजुर्ग किसान नेता ने बनाई थी, उसमें कहीं कोई गड़बड़ी नहीं थी। युवाओं ने, युवा जोश ने उस दिन का माहौल खराब कर दिया। वे रैली निकालने के लिए जल्दबाजी में थे। इसके अलावा तय रूट को छोड़कर अन्य रास्तों से आगे बढ़ना चाहते थे। और किन्हीं 1-2 खुराफाती युवाओं के दिमाग में यह बात आई होगी कि दिल्ली के लाल किले तक चलते हैं. और इस तरह आंदोलन को बिगाड़ने की कोशिश की गई.
… जैसा कि सभी जानते हैं देश में दो विचारधाराएं काम करती है. एक हमेशा सत्ता पक्ष का सपोर्ट करती है। और दूसरी विपक्ष के साथ खड़ी नजर आती है। सत्ता पक्ष के पास अपना गणित है, वह अपना स्वार्थ देखते हैं. उन्हें हर उस बात से नाराजगी है जो सरकार से सवाल करें या सरकार के खिलाफ बोले।
वहीं विपक्ष किसानों या आम लोगों के साथ है। जहां तक किसानों का मुद्दा था, ज्यादातर मध्यमवर्ग किसानों के साथ ही है। लेकिन विचारधारा के खूंटे से बंधे कुछ लोग, जो स्वयं देश की सबसे बड़ी आबादी किसान परिवार से आते हैं, बावजूद इसके वे किसानों के साथ खड़े नहीं होना चाहते।
अब लोग कहते हैं कि जो दिल्ली में किसान आंदोलन चल रहा है, उसमें हमारे यहां का किसान नहीं है तो हम उनके साथ क्यों खड़े हो। तो असलियत सब जानते है कि दिल्ली के किसान आंदोलन में पंजाब, हरियाणा, यूपी और राजस्थान के सबसे ज्यादा किसान हैं। इसकी वजह है दिल्ली के आसपास होना। और बाकी राज्यों के किसानों की तुलना में उनकी मजबूत आर्थिक स्थिति। …क्योंकि इस आंदोलन में बहुत पैसा खर्च हो रहा है। इतना समय और पैसा खर्च करने की हैसियत सच कहे तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के छोटे किसानों में नहीं है।
2 महीने से जारी किसान आंदोलन में जिस तरह से रोज खबरें आ रही थी, देश का हर नागरिक इसकी तारीफ ही कर रहा था। शांतिपूर्ण ढंग से, बिना किसी शोर-शराबे के किसानों का धरना जारी था। वार्ता चल रही थी। सरकार बातचीत कर रही थी। हां एक बात यह है कि किसान कृषि बिलों की वापसी के अलावा किसी और बात पर तैयार नहीं है। और सरकार भी बिल वापस नहीं करना चाहती। यहीं पर पेंच फंसा हुआ है। इतना सब होने के बाद भी लोग किसान के साथ है और किसान के साथ रहेंगे।
… गांव से निकलकर शहर में पहुंचने वाला हर कोई शख्स जानता है कि उसके माता-पिता ने उसे शहर क्यों भेजा। गांव में क्या दिक्कत है। किसानों की क्या समस्या है। सब जानते हैं लेकिन भक्त बनकर अपने तथाकथित भगवान के लिए तालियां बजाना, किसे अच्छा नहीं लगता। तो जिसे अच्छा लगता है। वो बजाते रहे। लेकिन सच्चाई यही है कि किसानों की समस्याएं विकराल है। और उसका हल कोई नहीं निकालना चाहता। इसीलिए हमारे किसानों को इतना बड़ा आंदोलन चलाना पड़ रहा है।
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