Monday, July 27, 2020

मध्यप्रदेश अब मक्का प्रदेश...

मक्का प्रदेश : मध्यप्रदेश में अब हर तरफ मक्का ही मक्का

- सोयाबीन की चार कतारों के बाद 2 कतार में बोया जाता था पहले मक्का...

मध्यप्रदेश अब मक्का प्रदेश...
डूब गया सोयाबीन का सूरज....

मध्यप्रदेश ने खोई सोया प्रदेश की पहचान...

[ मेरी उम्र के मित्रगण अपने बचपन या किशोरावस्था को याद कीजिए। अगर आप कृषक परिवार से हो तो मेरी राय से पूरी तरह से सहमत होंगे। 1980 से पहले तक एमपी के कई जिलों जैसे छिंदवाड़ा- बैतुल में खरीफ की फसलों में ज्वार, बाजरा, मक्का, जगनी, कुटकी, अलसी जैसी फसलें ज्यादातर बोई जाती थी। अचानक से नकदी फसलों में शुमार तिलहन की एक किस्म सोयाबीन का आगमन होता है। फिर देखते ही देखते एमपी को सोया प्रदेश का खिताब मिल जाता है।]

लेकिन इन दिनों सोयाबीन संकट में है, फसल सिमटती गई और चार कतार के बाद दो कतार में बोया जाने वाला मक्का हर तरह छा गया है।

अब विस्तार से पहले सोयाबीन की बात।

माताजी ने बताया कि हमारे यहां 1981 में पहली बार एक कुडो (10 किग्रा) सोयाबीन का बीज लाया था। उसके बाद इसकी बोआई लगातार बढ़ती गई। मुझे ठीक से याद नहीं मगर शायद साल 2010 के आसपास से सोयाबीन का उतार चालू हो गया। यानी उत्पादन कम। खेती कम। कीट का हमला। दाने छोटे बनना। मजदूरी भी महंगी।

जब सोयाबीन का सूरज उग रहा था तभी केंद्र सरकार ने 1986 में तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना की थी। उस दौर की बात करें धीरे-धीरे सोयाबीन ने खरीफ की बाकी फसलों को खत्म-सा कर दिया। जैसे- ज्वार, मक्का, धान, जगनी, अलसी।

हमारे यहां लगभग सभी जगह सोयाबीन बोया जाने लगा था। जगनी, अलसी, ज्वार-तुअर वाले सब खेत में। एक दिलचस्प बात ये है कि उन दिनों में मक्का सिर्फ फिलर (न्यूज की भाषा में) फसल थी। यानी सोयाबीन की 4 कतार के बाद 2 कतार-लाइन मक्के की रहती थी। इसके अलावा बहुत थोड़ी सी जगह, आधे एकड़ में मक्का बोया जाता है। आज देखिए हर तरफ मक्का ही मक्का। सोयाबीन के सूरज डूबने की एक वजह है लगातार घटता उत्पादन। कीटों, इल्लियों का हमला। छिंदवाड़ा जिले में पिछले साल (2015) सोयाबीन का रकबा करीब 90 हजार हेक्टेयर तक बोया गया था।
मगर उत्पादन क्या हुआ। 5 एकड़ के खेत में महज तीन बोरा ही सोयाबीन।

किसान परिवार के लोग इसके मायने समझ सकते हैं।

सोयाबीन का उत्पादन जब ज्यादा हो रहा था तब छिंदवाड़ा में सोयाबीन प्लांट भी लगाया गया था। प्रदेश के कई जिलों में भी प्लांट स्थापित किए गए थे।

सोयाबीन पर, सोयाबीन को लाने वालों पर कई आरोप भी लगते रहे हैं। जैसे- सोयाबीन की फसल लगातार लेने से जमीन उपजाऊ नहीं रह पाती। .... 

सोयाबीन की कहानी काफी लंबी है। जिसे शायद दूरबीन वाली दूरदर्शी नजरों से ही जाना और समझा जा सकता है।

पर ये बात तय है अगर मक्का यूं ही बोया जाता रहा तो भविष्य में एक ही फसल का सिक्का चलेगा... मक्का और सिर्फ मक्का। काश कि छिंदवाड़ा में, मेरे गांव तंसरा में सरसों की भी खूब खेती होती तो आपको मक्के की रोटी और सरसों का साग जरूर खिलाता।

**एक किसान का बेटा**
रामकृष्ण डोंगरे
सीनियर जर्नलिस्ट
(27 जुलाई, 2016)
☆☆ जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान☆☆


Tuesday, July 7, 2020

मेरी फेसबुक पोस्ट : अनबोलापन

अनबोलापन...

ये शब्द सुना तो ही होगा। आजकल ये बीमारी बढ़ती जा रही है।

इसमें गलती किसी एक व्यक्ति की नहीं है। हम सबकी है।  इसे खत्म करना है तो संकोच खत्म करके खुद आगे बढ़कर पहल करना होगा।

वाट्सएप पर दोस्तों को वायरल सामग्री फारवर्ड करके, गुड मार्निंग या गुड नाइट के फोटो भेजकर आप रिश्ते को जिंदा नहीं रख सकते।

सिर्फ अपना नाम ही रिकॉल करवा सकते हो। लेकिन आपके रिश्ते में मिठास तब आएगी जब आप मीठे मीठे बोल बोलोगे। बातचीत करोगे। और इस तरह आप अनबोलापन खत्म हो जाएगा।

संकोच बहुत बुरी चीज होती है।
ये दूरियां बढ़ा देती है। शुरुआत करने से
आप छोटे नहीं बन जाएंगे।....

तो तोड़ दीजिए इस दीवार को....

©® *बाबा डोंगरे*

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