Thursday, August 22, 2019

दोस्तनामा : महोदय अपनी गाड़ी लेकर आएं...और मैं देखकर दंग रह गया...

बाएं से रामकृष्ण और संजय। नागपुर के येवले चाय शॉप पर 20 अगस्त 2019 को। 
भोपाल, सन 2004, मैं मप्र विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी परिषद (मेपकास्टमें काम करता था. अप्रैल का महीना, तीसरे सप्ताह में लगातार चार दिन की छुट्टी थी. न्यू मार्केट (भोपाल का मुख्य बाजार) में घूमते हुये एक बैनर पर नजर रुख गई...कवि सम्मेलन, मुशायरा, नाटक और क्लासिक फिल्म का मंचन, स्थान भारत भवन (कला के प्रति समर्पित, प्रख्यात केंद्र) और मजे की बात सब ‘फ्री’ में... अपनी तो लॉटरी लग गई थी.

शायरी की दुनिया का जाना-माना नाम बशीर बद्र साहब उनको 10 फीट की अंतर से देखना और सुनना ‘अद्भूत’ था, इनके साथ भारत भर से आए और भी कवि, शायर इनसे रूबरू होने को मिलेगा। एक दिन शाम 7 बजे श्री फणीश्वरनाथ रेणुजी का प्रसिद्ध उपन्यास ‘मारे गये गुलफाम’ से प्रेरित श्री बासू भट्टाचार्य जी की राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘तीसरी कसम’ का मंचन हो रहा था. पहले सोचा, रहने दे, रात घर जाने के लिए अाटो या भट नहीं मिलेगा. मैं यहां भट के बारे में बता दूं, ये पुराना तीन पहिया वाला अाटो, जो शोर और धुंआ फेंकते हुए अपनी प्रस्तुति देता था. आज ये वाहन इतिहास की बात है, लगभग सभी शहरों से लुप्त हो गए. फिर हिम्मत करते हुए बैठ गया...देख लेंगे जो भी होगा.

फिल्म रात करीब 11 बजे खत्म हो गई.
वापस घर मतलब किराए के कमरे तक जाने की चिंता सता रही थी
कि एक लगभग ‘पांच’ फीट के सज्जन सामने आकर पूछने लगे... 

भाई साहब, आपको ये फिल्म कैसी लगी? 
हमने भी हमारे ‘फिल्मी’ ज्ञान को प्रस्तुत करना शुरू किया... 
ये भाई साहब के ‘सवाल’ खत्म नहीं हो रहे थे...
आखिर हमने कहा... यार आप तो पत्रकार जैसे सवाल पूछ रहे हो...! 
एक प्यारी मुस्कान के साथ कहा... 
’जी...हम पत्रकार है और नई दुनिया (पत्रिका का नाम मुझे ठीक से याद नहीं) के साथ काम करते है! 

हमने कहा....
बेहतरीन काम है ! फिल्म देखने के पैसे मिलते है आपको...! एक हंसी....!
मुझे अपनी चिंता सताये जा रही थी...घर कैसे पहुंचे....!
हमने पत्रकार महोदय से पूछ लिया... भाई, कहां रहते हो...? 

जवाब मिला...नेहरू नगर...
...अरे मैं भी नेहरू नगर रहता हूं...!
कैसे जाओगे....?
पत्रकार...मेरे पास गाड़ी है...? ओ...हो...
मुझे लिफ्ट दोगे क्या...?
पत्रकार: हां क्यूं नहीं...बस थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी...!
हां...जरूर...!

दरअसल, भारत भवन बड़ी झील के किनारे है और मुख्य सडक तक आने के लिए एक बड़ी चढ़ाई को पार करना पड़ता है. मुझे लगा, पत्रकार महोदय की गाड़ी थोड़ी ‘कमजोर’ होगी, इसलिए थोडी दूर मुझे पैदल चलना पड सकता है. मैं निश्चिंत था, अपना काम हो गया...! सोचा दस रुपये बच गये, तो हमने ‘दो’ आइसक्रीम कोन लेकर ‘पत्रकार’ महोदय के साथ ‘बतियाते’ हुए आइसक्रीम का लुफ्त उठाया...तब तक 11:45 हो गए थे...! महोदय बोले…मैं गाड़ी लेकर आता हूं..! 

मजेदार बात...आगे है...

महोदय अपनी गाड़ी लेकर आएं...और मैं देखकर दंग रह गया...ये और पास आए...तो दोनों भी...खिलखिला कर हंसने लगे... हां भाई यही मेरी गाड़ी है...! ये जनाब ‘साइकिल’ लेकर आए...!

मैं लंबाई में इनसे बड़ा था...तो फ्रंट ‘सीट’ का ‘सम्मान’ मुझे मिला... ये पीछे के सीट (?) पर विराजमान हो गए. दोनों डबल पैडल लागते हुए रात एक बजे नेहरू नगर पहुंचे. महोदय ने बताया ये मेरा कमरा है...! मैं दो तीन गल्ली पीछे रहता था, सो धन्यवाद देकर अपनी रूम तक जाने लगा.

कहानी में ट्वीस्ट...

मेरे रूम तक जाने के लिये दो रास्ते थे. पहले रास्ते से गया तो... ‘प्रहरी’ याने गली के 4-5 कुत्ते मेरे पीछे लग गये. मैंने दूसरा रास्ता आजमाकर देखा...मेरे जाने से पहले ‘इनके’ साथी वहां भी मौजूद थे...! मैं वहा से भागा...सीधा पत्रकार महोदय के कमरे पर...
पत्रकार : क्या हुआ भाई...?
यार कुत्ते पीछे लग गये....!
कोई दिक्कत ना हो तो रातभर मैं यही सो जाऊं...?
पत्रकार : हां क्यू नहीं!
पत्रकार जी ने हमारे लिये अपने कमरे में जगह बनाई और हमने उनके लिये हमारे दिल में... हमेशा के लिये..!

रोजी रोटी के चक्कर में 2006 तक भोपाल में रहा, 2007 में अहमदनगर और वहां से दिल्ली...2008 से नागपुर में हूं. वो भी काम के सिलसिले में भोपाल, दिल्ली, छिंदवाडा, रायपुर इत्यादी शहर में अपनी सेवाएं दे चुके है...! फिलहाल रायपुर में है...! कल यानी 20 अगस्त 2019 को नागपुर में मुलाकात हुई...! 

पत्रकार महोदय का नाम है श्री रामकृष्ण डोंगरे जी, प्यार से वो ‘तृष्णा’ कहलाना भी पसंद करते हैं, मैं उन्हें आरके कहना पसंद करता हूं...! बहुत मेहनती, जमीन से जुड़े है, जब भी नागपुर आते हैं...हम मिलते रहते है...! इस दोस्ती के लिए कोई तय दुनियादारी का ‘पैमाना’ नहीं है...प्योर दोस्ती..!

नोट: ये बात मैं पहले कहना चाहता था...पर कलम के जादूगार बाजी मार गए...पहला पोस्ट आरके ने लिखा..!

अनेक – अनेक धन्यवाद...!


आपकासंजय अप्तुरकर


फेसबुक वॉल से साभार
https://www.facebook.com/sanjay.apturkar.9/posts/2430524267030157

Tuesday, August 13, 2019

एक मुलाकात, एक व्यक्तित्व, एक सृजन...

आकाशवाणी के प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव और नाटककार अमर रामटेके जी के साथ...

आकाशवाणी छिंदवाड़ा और आकाशवाणी नागपुर में लंबे अरसे तक काम कर चुके मेरे प्रेरणा स्रोत, लेखक, दलित नाटककार और कार्यक्रम अधिकारी सम्मानीय सर श्री अमर रामटेके जी से हाल ही में मुलाकात हुई। उनकी गिनती प्रमुख दलित लेखकों में होती है।

छिंदवाड़ा आकाशवाणी से उनके ट्रांसफर के करीब 15 साल बाद हुई इस मुलाकात ने कई यादें ताजा कर दी। जब उनसे पहले आकाशवाणी छिंदवाड़ा में मुलाकात हुई। फिर बस स्टैंड के यादव लॉज की कई मुलाकातें। साहित्यिक आयोजनों में। वे हमारे गांव तंसरामाल भी आए थे... तारीख थी 16 मई 2001। जब मैंने इंटरनेट रेडियो श्रोता संघ का उद्घाटन किया था। छिंदवाड़ा से उनकी वापसी के समय का भावुक क्षण कभी भूल नहीं सकता।

वे इन दिनों बेड रेस्ट पर है। 6 साल पहले हुए एक गंभीर हादसे के बाद स्वस्थ होने में उन्हें काफी वक्त लग गया। रामटेके जी लेखक के अलावा एक अच्छे एक्टर भी है। कई नाटकों में उन्होंने यादगार रोल प्ले किए है। उनकी कई किताबें भी प्रकाशित हो चुकी है। मराठी के अलावा हिंदी में भी अपना लेखन करते हैं।

उन्होंने कई शहरों के आकाशवाणी केंद्रों में काम करते हुए कई युवाओं को प्रेरणा दी और आगे बढ़ाया। मध्यप्रदेश में आकाशवाणी छिंदवाड़ा के अलावा आकाशवाणी बैतूल में भी उन्होंने काम किया। जिन शहरों में वे रहे वहां उन्होंने साहित्यिक संस्था बनाकर युवाओं को सार्थक लेखन की ओर अग्रसर किया। फेसबुक पर जो साथी उन्हें जानते हैं वे चीज के गवाह होंगे।

आपका व्यक्तित्व ही आपकी पहचान होता है और इस संसार में कुछ व्यक्तित्व - पर्सनालिटी ऐसी होती है जो अपने आप ही कई लोगों को कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दी जाती है। इसमें सृजन भी शामिल है और जीवन का ध्येय निर्धारित करना भी।

इस दुनिया में हर जगह, हर संस्था में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो आपको डिस्टर्ब कर सकते हैं। परेशान कर सकते हैं। आपको धैर्य के साथ अपना काम करते जाना चाहिए। यही ऐसी पर्सनालिटी हमें सिखाती है।

आकाशवाणी में प्रोग्राम एग्जीक्यूटिव रहते हुए उन्होंने किसानों के लिए कई अच्छे प्रोग्राम बनाए। कई गांवों का दौरा किया, उन गांव तक पहुंचे जहां पहले कभी आकाशवाणी पहुंचा ही नहीं था। आकाशवाणी छिंदवाड़ा से प्रसारित होने वाला किसान भाइयों का 'चौपाल' प्रोग्राम उन दिनों काफी पसंद किया जाता था। रेडियो पर रामटेके जी का अंदाज निराला होता था। उनकी आवाज दमदार और खनक वाली है।

अमर रामटेके जी की प्रमुख कृतियां :
‘गोडघाटेचाळ’, 'ग्रेस नावाचं गारूड ', जखमांचे शहर